Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 33
________________ --0080mman- वात मनाम :-wom-comment (स्वयम्भूस्तोत्र-४३) म : हे भान या दही है इशाप्रकारातील होने से तत्त्व नित्य है और यह ! अन्य है इसप्रकार प्रतीत होने से नित्य नहीं है तथा आपके मत में बहिरङ्ग और । अन्तरङ्ग कारण और कार्य के योग से वह नित्यानित्यात्मक तत्व विरुद्ध भी नहीं है। आत्मा कर्मो और उनके व्दारा उत्पन्न होने वाले विकारों से, (शून्य है परन्तु अपने ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य, सूक्ष्मत्व आदि गुणों से सदैव सम्पन्न रहता है । अतः वह अशून्य भी है । चेतनः सोपयोगत्वात्, प्रमेयत्वादचेतनः । वाच्यः क्रमविवक्षायामवाच्यो युगपदिरः ।।१५।। अर्थ : आत्मा उपयोग के कारण से चेतन है और प्रमेय होने से। अचेतन है । क्रमविवक्षा से आत्मा वाच्य है और युगपद् वचन की। अपेक्षा से अवाच्य है । विशेपार्थ : आत्मा चेतन है कि अचेतन है ? आत्मा वाध्य है कि अयाच्य! है ? अन्यमतावलम्बी शिष्य के व्दारा इसप्रकार के प्रश्न उपस्थित है किये जाने पर आचार्य भगवन्त उत्तरपक्ष प्रस्तुत करते हैं कि उपयोग ! के कारण आत्मा चेतन है और प्रमेय होने के कारण से आत्मा। । अचेतन है । आचार्य श्री अकलंकदेव ने लिखा है - प्रमेयत्वादिभिमरचिदात्मा चिदात्मकः। शानदर्शनतस्तस्माच्येतनाचेतनात्मकः।। (स्वरूप सम्बोधन-३) । । अर्थात् :- वह आत्मा प्रमेयत्व आदि धर्मों के द्वारा अचेतनरूप है है, बान और दर्शनगुण से चेतनरूप है। इस कारण आत्मा चेतन और अचेतनरूप है। आत्मा में अनेक गुण हैं । एक-एक का विवेचन क्रम से

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