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Poornawar-wesomरनतरतामृतम-me-message
पर्यायों की उत्पत्ति होती है, भूतकालीन पर्याों का व्यय होता है और
स्वभाव में ध्रौव्यत्व बना रहता है । अतः आत्मा उत्पाद, व्यय और । धौव्य से संयुक्त हैं ।
अस्तिनास्ति स्वभावोऽसौ, धर्मः स्वपरसम्भवैः ।
गुणागुणस्वरूपश्च, स्वविभावगुणैर्भवेत् ।।११।। अर्थ :। वह आत्मा स्वभाव की अपेक्षा से अस्ति है, परभाव के कारण !
से नास्ति है । स्व-स्वरूप की अपेक्षा से गुणी है और विभाव की अपेक्षा से निर्गुणी है । विशेषार्थ :
अन्य एकान्तवादी आत्मा को अस्तिरुप मानते हैं या नास्तिरूप मानते हैं । वे आत्मा को या तो गुणी मानते हैं या निर्गुणी मानते हैं हैं । उनकी ये मान्यतायें वस्तुतत्त्व से अतिशय असंगत हैं । उन्हें । । सम्यग्योध प्रदान करते हुए आचार्य महर्षि समझााते हैं कि - आत्मा है है स्व-स्वभाव की अपेक्षा से अस्तिस्यरूप है और परभाव के कारण से !
नास्तिस्वरूप है । है आत्मा में ज्ञानादि अनन्त गुण पाये जाते हैं । उन स्वाभाविक ! । गुर्गों की अपेक्षा से आत्मा गुणी है । आत्मा में किसी प्रकार का
विभाव नहीं है । परद्रव्य के गुण आत्मा में नहीं रहते हैं । उन। । वैभाविक अथवा परद्रव्य के गुणों की अपेक्षा आत्मा निर्गुणी है ।।
व्यपदेशादिभिर्भिन्नः, सुखादिभ्योऽपरस्तथा ।
प्रदेशैर्बन्धतो मूर्तिरमूर्तस्य तदन्यथा ॥१२।। अर्थ :
नामादि के कारण आत्मा में व गुणों में भिन्नत्व है, क्षेत्र की अपेक्षा से आत्मा सुखादि से अभिन्न है। पुद्गलप्रदेशों से बद्ध होने के कारण आत्मा मूर्तिक है और स्वभाव से अमूर्तिक है ।
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