Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 22
________________ mmmmmmcoo tifirole!IFJaipornosonnecameers : ८ - . . . - अथवा हम लोगों का दुर्भाग्य ? प्रथम पक्ष विश्वास के योग्य नहीं है , क्योंकि ईश्वर के अदृश्य शरीर सिद्ध करने में कोई प्रमाण नहीं है। तथा ईश्वर के माहात्म्यविशेष । । सिद्ध होनेपर उसके अदृश्य शरीर सिद्ध हो, और अदृश्य शरीर सिद्ध होनेपर । माहात्म्यविशेष सिद्ध हो, इसप्रकार इतरेतराश्रय दोष भी आता है। यदि कहो कि हम लोगों के दुर्भाग्य से ईश्वर का शरीर दृष्टिगोचर नहीं होता तो यह भी ठीक नहीं जंचता, क्योंकि बन्ध्यापुत्र की तरह ईश्वर का अभाव होने से उसका शरीर दिखाई नहीं देता, अथवा जिसप्रकार हमारे दुर्भाग्यवश पिशाच आदि का शरीर दिखाई नहीं देता, वैसे ही ईश्वरका शरीर भी अदृश्य है? इस तरह कुछ भी निश्चय नहीं होता। तथा ईश्वर को अशरीरसष्टा मानने में दृष्टान्त और दान्तिक विषम हो जाते हैं, क्योंकि घटादिक कार्य शरीर सहित कर्ता के बनाये हुए ही देखे जाते हैं। फिर आकाश की तरह अशरीर ईश्वर किस प्रकार कार्य करने में समर्थ हो सकता है? (तात्पर्य यह कि 'जगत् अशरीर ईश्वर का बनाया हुआ है, कार्य होने से घट की तरह' इस अनुमान में घट दृष्टान्त और जगत् दान्तिक में समता नहीं है, क्योकि घट सशरीर का बनाया हुआ माना जाता है। तथा जिसतरह अशरीरी आकाश कोई कार्य आदि नहीं कर सकता, उसी तरह अशरीरी ईश्वर भी कार्य करने में असमर्थ है।) इस कारण सशरीर और अशरीर दोनों पक्षों में कार्यत्व हेतु है की सकर्तृकत्व साध्य के साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं होती। बहुत-से ईश्वरों द्वारा जगरूप एक कार्य के किये जानेपर ईश्वरों में मति का भेद उत्पन्न होगा यह कथन एकान्त-सत्य नहीं है, क्योंकि सैकड़ों कीड़ियाँ एक ही वामी को बनाती हैं, बहुत से शिल्पी एक ही महल को बनाते हैं, । बहुत सी मधुमक्खी एक ही शहद के छत्ते का निर्माण करती हैं, फिर भी वस्तुओं की एकरूपता में कोई विरोध नहीं आता। यदि वादी कहे कि वामी, प्रासाद आदि का कर्ता भी ईश्वर ही है, तो इससे ईश्वर के प्रति आप लोगों की निरुपम श्रद्धा ही प्रगट होती है, और इसतरह तो जुलाहे और कुम्भकार आदि को घट और पट आदि का कर्ता न मानकर ईश्वर को ही इनका भी कर्ता मानना चाहिये। यदि आप कहें कि पट घट आदि के कर्ता जुलाहा और कुम्भकार प्रत्यक्षसिद्ध कर्तृत्व का । अपलाप कैसे किया जा सकता है? तो फिर कीटिका आदि को वामी आदि का कर्ता मानने में क्या दोष है? कीटिका आदि ने आप लोगों का क्या अपराध किया । ई है, जो आप उनके असाधारण परिश्रम से साध्य कर्तृत्व को एक चुटकी में ही उड़ा।

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