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२ जैनागम में रत्नत्रय की संज्ञा प्रदान की गयी है । रत्नत्रय के व्दारा आत्मा को आत्मस्वभाव की प्राप्ति होती है, उससे कर्मों का समूल विनाश हो जाता है ।
कारिका में अविनाभाव लक्षण इस शब्द का प्रयोग किया गया है । इसका अर्थ अभेदरूप से ऐसा करना चाहिये ।
सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र यदि भिन्न-भिन्न हों तो उनसे मोक्ष नहीं होता। तीनों में पूर्णत्व की उपलब्धि ही स्वभाव की प्राप्ति है । जब कुछ प्राप्त होता है, तब कुछ छुटता भी है । स्वभाव की प्राप्ति के समय कर्मों की निवृत्ति हो जाती है । ___ यही बात ग्रन्थकर्ता ने अपनी कारिका में स्पष्ट की है ।।
सति धर्मिणि तद्धर्माः, चिन्त्यन्ते विबुधैरिह ।। भोक्तभावे ततः कस्य, मोक्षः स्यादिति नास्तिकः ।।३।। अर्थ :प नास्तिक मतावलम्बी कहता है कि इस लोक में धर्मी का
सद्भाव होने पर ही धर्म का विचार करते हैं, क्योंकि भोक्ता के अभाव! । में किसे मोक्ष हो सकता है ? अर्थात् किसी को भी नहीं । !विशेषार्थ :
चार्याक मतावलम्बी को नास्तिक कहा जाता है, क्योंकि वे। है परलोक व जीवादि के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं । वे जीव । १ को पंचमहाभूतों से निष्पन्न हुआ मानते हैं । उस मत के अनुसार,
जिसप्रकार मादक पदार्थो से मदशक्ति उत्पन्न होती है, उसीप्रकार ! । पाँच भूतों से जीव की उत्पत्ति होती है । यदि उन भूतों का विनाश
हो जाता है तो चैतन्य का भी नाश हो जाता है । न धर्मी का सम्दाव होने पर ही धर्म का विचार करना उचित है । जब आत्मा नामक धर्मी की सत्ता ही नहीं है, तब धर्म और। अधर्म, पुण्य और पाप आदि धर्मों का अभाव स्वयमेव ही सिद्ध हो । जाता है ।
इस कारिका में चार्वाक मत के शिष्य के व्दारा पूर्वपक्ष towomeson wesomeme-0000 mesonssomeosonam