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स्वतन्नातिनामृतम्:00-more-emor-nepace
..इस ग्रन्थ में कुल ३२ श्लोक हैं । प्रारम्भिक ३१ श्लोक है छुप छन्द में लिखे हुए हैं और अन्तिम छन्द वसन्ततिलका में। या हुआ है । चुंकि पद्मनाभ जी जैन को इसकी एक ही प्रति मत हुई थी । उसी एक प्रति के आधार पर उन्होंने यह कार्य किया। ा ! अतः पाठ की दृष्टि से छन्द में अनेक भूलें प्रतीति में आ रही है। है । अन्तिम छन्द के चतुर्थचरण में दितीय शब्द का हस्व का पाया।
जाना इसी भूल का द्योतक है । पर इस राज्य के विषय को मूलरूप से तीन विभार्गों में विभाजित निया जा सकता है । पहली नौ कारिकाओं में अन्य दर्शनों की मान्यतायें और उनका परिहार स्पष्ट किया गया है । तत्पश्चात १५१ कारिकाओं में अनेकान्त पद्धति से आत्मतत्त्व का विवेचन किया गया। है। तीसरे विभाग में शेष बची हुई ८ कारिकाओं का संग्रह किया। जा सकता है । इनमें मोक्ष के कारणों का विस्तार से विवेचन किया । नया है । संक्षिप्ततः कहा जाये तो इस लघुकाय अन्य में आत्मा को । कर्मबन्ध से मुक्ति दिलाने वाले सम्पूर्ण उपयोगी सिद्धान्तों की प्ररूपणा है सरल शैली में की गयी है ।
अन्य के प्रारंभ में ग्रन्थकर्ता ने मंगलाचरण में निर्दोष से परमात्मा का स्मरण किया है । दितीय कारिका में मोक्ष का लक्षण है
निर्देशित किया गया है । यह कारिका ही इस ग्रन्ध के विस्तार का मूल है । मोक्ष प्राप्त करने की पात्रता आत्मा में है । उस आत्मा का स्वरूप समझना आवश्यक है, क्योंकि आत्मा की आत्मोपलब्धि! ही मोक्ष है । विभिन्न दर्शनों में आत्मा के विषय में प्रकट किये गये अभिप्राय युक्ति के सन्मुख नहीं टिक सकते हैं । यह सिद्ध करने के लिए चाक, बौद्ध, मीमांसक, यौग और अव्दैतवादियों के मत को पूर्वपक्ष बनाकर ग्रन्थकर्ता ने उनके मत की समीक्षा की है । र स्याब्दाद के व्दारा वस्तु के यथार्य स्वरूप का बोध होता है, क्योंकि अनेक धर्मात्मक वस्तु का कथन मुख्य और गौण पद्धति का। अवलम्बन लिये बिना नहीं हो सकता है । वस्तु में रहने वाले परस्पर विरूद्ध धर्मों की सिद्धि नयों के माध्यम से करते हुए ग्रन्थकार ने यह सिद्ध किया है कि सापेक्ष पद्धति का अनुसरण किये बिना रखीकार
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