Book Title: Sramanya Navneet
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 10
________________ ।। ॐ नमः सिद्धम् ।। पंच सूत्र हिन्दी अर्थ सहित [प्रथम सूत्र ] पापप्रतिघात गुण बीजाघात MVD मूल - णमो वीअरागाणं सव्वण्णूणं देविंदपूइआणं जहट्ठिअवत्थुवाइणं तेलुक्कगुरूणं अरुहंताणं भगवंताणं ॥ १ ॥ अर्थः जो राग- -द्वेष आदि विकारों से सर्वथा रहित हो चुके हैं, जो सर्वज्ञ अर्थात् अखिल विश्व के समस्त भावों को हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष जानते हैं, जो इन्द्रों के द्वारा पूजित हैं, यथार्थ वस्तुस्वरूप के प्रतिपादक हैं और तीनों लोक के गुरु हैं, अर्था अज्ञानान्धकार को दूर करने वाले एवं हित का उपदेश देने वाले हैं, ऐसे अरुहन्त या अर्हन्त भगवन्तों को मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥ मूल - जे एवमाइक्खंति-इह खलु अणाइ जीवे, अणाड़ जीवस्स भवे, अणाइ कम्मसंजोगनिव्वत्तिए, दुक्खरूवे, दुक्खफले, दुक्खाणुबंधे ॥२॥ अर्थः जो अर्हन्त भगवान ऐसा कथन करते हैं कि जीव अनादिकाल से है, जीव का संसार अर्थात् भवभ्रमण, जन्मजरादि अनादिकाल से है, यह भवभ्रमण अनादिकालीन कर्म- संयोग से जनित है। यह संसार जन्म, जरा, मरण, संयोग, वियोग रोग, शोक आदि दुःख स्वरूप है, परिणाम में भी जन्म-मरणादि दुःख उत्पन्न करने वाला है और दुःख की परम्परा का जनक है अर्थात् इसके आगे भी भवभ्रमण एवं दुःखों का प्रवाह चालु ही रहता है ॥२॥ मूल - एअस्स णं वुच्छित्ती सुद्धधम्माओ । सुद्धधम्मसंपत्ती पावकम्मविगमाओ पावकम्मविगमो तहाभव्वत्ताइभावओ ॥३॥ श्रामण्य नवनीत अर्थः इस अनादिकालिन भवभ्रमण का अन्त शुद्ध धर्म की आराधना करने से ता है। शुद्ध धर्म की प्राप्ति पापकर्म के विंगम से होती है । पापकर्म का विगम अर्थात् जिसमें पुनः बन्ध न हो ऐसा क्षयोपशम तथाभव्यत्व आदि कारणों से अर्थात् वैयक्तिक भव्यत्वरूप स्वभाव, काल, नियति, कर्म तथा पुरुषार्थ के अनुकूल योग से होता है ॥३॥

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