Book Title: Sramanya Navneet
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 23
________________ चाहिए। साथ ही, इस धर्म का सेवन करने वाले सन्तों-मुनिराजों के प्रति विनीत होकर उनकी आज्ञा में रहना चाहिए। मुनिवरों की आज्ञा का पालन मोह को छेदने का परम उपाय है। इस तरह भावना से विशुद्ध होता हुआ,तदावरणीयकर्मों के हट जाने पर साधु धर्म की योग्यता प्राप्त कर लेता है। फिर संसार के दोषों की भावना करता हुआ संसार से विरक्त और संविग्न हो जाता है। ममता से रहित किसी भी जीव को संताप न उत्पन्न करने वाला, ग्रंथि भेदादि के कारण विशुद्ध और निरन्तर विशुद्ध होते जाने वाले अध्यवसायों वाला बन जाता है ।।१५।। ॥ दूसरा साधु धर्म परिभावना सूत्र समाप्त ।। • काजल की कोटडी में जाना पड़े दाग लगने न दे = महापुरुष। • कक्षाय पर कषाय करे वह चतुर। कंचन को आत्मगुण मंचन माने वही मुनि। • कैंची के समान, दुर्जन की जमात। करूंगा भाग्य के हाथ, करता हूँ अपने हाथ। • लक्ष्मी के लिए कितनी की अपेक्षा कैसी की और लक्ष्य देना गुणकारी। • मत सोचो उसने ऐसा क्यों किया? सोचो उसके कर्म ने करवाया। • खाना और खिलाना दोनों में महत्त्व है खिलाने का। खो जाओ अपने आप में यही अरिहंत का आदेश है। • आत्म रमणता यह तप धर्म, शेष तप क्रिया। (निश्चयनय) . आहारसंज्ञा का दूर होना तप धर्म, शेष क्रिया (व्यवहारनय) - जयानन्द श्रामण्य नवनीत

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