Book Title: Sramanya Navneet
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 25
________________ चले जायेंगे और दीर्घकाल के लिए वियुक्त हो जायेंगे। मृत्यु बड़ी प्रबल है और वह दूर भी नहीं, क्योंकि हमारा आयुष्य अल्पकालीन है। समुद्र में पड़े हुए रत्न के समान पुनः मनुष्यभव की प्राप्ति दुर्लभ है। मनुष्यभव के सिवाय दूसरे बहुत से भव हैं, किन्तु उनमें दुःखों की बहुलता है। वे मोह रूपी अंधकार वाले हैं,अशुभ कर्मबंध के कारण हैं और चारित्र रूपी शुभ धर्म की आराधना के लिए अयोग्य है। यह मनुष्यजीवन ही ऐसा है जो संसारसागर में ऐसे जहाज के समान है जिसके छिद्र संवर के द्वारा ढंक दिये गये हैं,ज्ञान जिसका कर्णधार (खिवैया) है और जो तपश्चर्या रूपी पवन के वेग से युक्त है। अतः इस मनुष्य भवरूपी नौका को धर्म रूपी आत्मकार्य में नियुक्त करना चाहिए। ___ (यहाँ प्राणातिपात विरमणादि रूप महाव्रत छिद्रों के ढक्कन हैं। श्रुतज्ञान में निरन्तर उपयोग रूप कर्णधार है और अनशनादि द्वादशविध तपश्चर्या का यथाशक्ति सेवनरूप अनुकूल पवन है।) ।।१।। ___मूल - खणे दुल्लहे, सब्वज्जोवमाईए सिद्धिसाहगधम्मसाहगत्तेण। उवादेआ य एसा जीवाणं। जं न इमीए जम्मो, न जरा, न मरणं, न इट्ठविओगो, नाणिट्ठसंपओगो, न खुहा, न पिवासा, न अण्णो कोई दोसो, सव्वहा अपरतंतं जीवावत्थाणं असुभरागाइरहिअं संतं सिवं अव्वाबाहं ति॥२॥ अर्थः माता-पिता को यह भी समझावे कि ऐसा शुभ अवसर मिलना कठिन है। किसी भी कार्य के साथ इसकी तुलना नहीं हो सकती। यह अवसर सिद्धि के साधक सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र का साधक है। सिद्धि ही विवेकवान् जीवों के लिए उपादेय है, क्योंकि उसमें नजन्म है, न मरण है, न इष्ट वियोग है, न अनिष्ट संयोग है, न भूख है, न प्यास है और न कोई दूसरा दोष है। सर्वथा स्वाधीन, समस्त रागादि अशुभ भावों से रहित, शांत, शिवस्वरूप और सब प्रकार की बाधा पीड़ा से रहित है। ऐसी जीवों की वहां अवस्थिति है। (वह अवस्थान क्रोधादि से रहित होने के कारण शांत है, सकल अशिवों (प्लेग आदि रोगों) के अभाव के कारण शिव है और निष्क्रिय होने के कारण व्याबाधा रहित है।) ॥२॥ - मूल - विवरीओ य संसारो इमीए, अणवट्ठिअसहावो इत्थ खलु सुही वि असुही, संतमसंतं, सुविणुब्ब सव्वमालमालं ति। ता अलमित्थ पडिबंधेणी करेह मे अणुग्गही उज्जमह एअं वुच्छिंदित्तए। अहंपि तुम्हाणुमईए साहेमि एअं निधिण्णो जम्ममरणेहि। समिज्ाइ य मे समीहिअं गुरुप्पभावेणं ॥३॥ __ अर्थ ः संसार इससे विपरीत स्वभाव वाला है अर्थात् जन्म, जरा, मरण, इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, पराधीनता आदि अनेक दुःखों का घर है। इसमें कहीं कोई स्थिरता नहीं है। संसार में जो सुखी कहलाता है, वह भी कुछ क्षणों के पश्चात् दुःखी श्रामण्य नवनीत

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