Book Title: Sramanya Navneet
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 27
________________ तप्पडिबद्धे वच्चिज्जा। तेसिं तत्थ 'नियमघाई पुरिसमित्तासज्झे संभवओसहे महायंके सिआ। तत्थ से पुरिसे तप्पडिबंधाओ एवमालोचिय 'न भवंति एए नियमओ ओसहमंतरेण, ओसहभावे अ संसओ, कालसहाणि अ एआणि' तहा संठविअ संठविअ तदोसहनिमित्तं सवित्तिनिमित्तं च चयमाणे साहू। एस चाए अचाए। अचाए चेव चाए। फलमित्थ पहाणं बुहाणंधीरा एअदंसिणो। स ते ओसहसंपायणेणं जीवाविज्जा। संभवओ पुरिसोचिअमेअं ॥७॥ अर्थ : कोई पुरुष किसी प्रकार जंगल में जा पहुंचा। वह अपने माता-पिता के साथ जा रहा है। उस अटवी में अचानक माता-पिता को ऐसी महा बीमारी आयी जो चिकित्सा के अभाव में निश्चित रूप से उनके प्राणों का घात करने वाली है। औषध के बिना वह महा रोग मिट नहीं सकता अर्थात् अकेला पुत्र कुछ प्रतीकार नहीं कर सकता, मगर समय पर औषध मिल जाने से बिमारी दूर होना संभवित है। ऐसी स्थिति में वह पुरुष विचार करता है - अगर औषध न मिला तो माता-पिता बच नहीं सकते। औषध मिलने पर बचने की संभावना है और ये अभी कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं। ऐसा विचार करके वह उनको औषध के लिए और उनके निर्वाह की व्यवस्था के लिए अगर उन्हें छोड़कर चला जाता है, तो अच्छा ही करता है। मातापिता का यह त्याग अत्याग ही है, क्योंकि इससे उनके जीवन की रक्षा की संभावना है। ऐसे समय उनका त्याग न करना ही वस्तुतः त्याग है, क्योंकि त्याग न करने से उनकी मृत्यु होगी और सदा के लिए त्यागना पड़ेगा। किसी भी प्रवृत्ति का मूल्यांकन उसके फल से होता है। धीर-पंडित पुरुष प्रवृत्ति के फल को ही देखते हैं। वह पुरुष औषध लाकर माता-पिता को बचा सकता है, अतः उसे ऐसा करना ही उचित है ।।७।। मूल - एवं सुक्कपक्खिए महापुरिसे संसारकंतारपडिए अम्मापिइसंगए धम्मपडिबद्धे विहरिउजा। तेसिं तत्थ निअमविणासगे, अपत्तबीजाइपुरिसमेत्तासज्झे, संभवंतसम्मत्ताइओसहे, मरणाइविवागे, कम्मायके सिआ। तत्थ से सुक्कपक्खिए पुरिसे धम्मपडिबंधाओ, एवं समालोचिविणस्संति एए अवस्सं सम्मत्ताइओसहविरहेण, तस्ससंपाडणे विभासा। कालसहाणि अ एआणि ववहारओ।' तहा संठविअ संठविअ इहलोगचिंताए, तेसिं सम्मत्ताइओसहनिमित्तं विसिट्ठगुरुमाइभावेण, सवित्तिनिमित्तं च, किच्चकरणेणं चयमाणे संजमपडिवत्तीए साहू सिद्धीए। एस चाए अचाए तत्तभावणाओ, अचाए चेव चाए, मिच्छाभावणाओ। तत्तफलमित्थ पहाणं। परमत्थओ धीरा एअदंसिणो आसन्नभव्वा। १ नियमव्वाई १८ श्रामण्य नवनीत

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