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अतः उसे अनंतकायिक कहते हैं। इसके उपरांत पृथ्वी आदि के आधार से जीने वाले त्रस जीव भी होते हैं। दिखायी देनेवाली पृथ्वी आदि जीवों के शरीर हैं। ये उनके लक्षणों से स्पष्ट समज में आ जाता है। चेष्टा रूप से दिखायी न देने पर भी एकेन्द्रिय में भी जीव के लक्षण रूप उपयोग, योग, बल, अध्यवसाय, ज्ञान, दर्शन, आठों कर्मों का उदय, बंध, लेश्या, श्वासोच्छवास, कषाय आदि सभी अस्पष्ट भी होता ही है। आहार भी है, उनकी अनुकूल आहार मिलने से वृद्धि एवं आहार न मिले या प्रतिकूल मिले तो शुष्कता, मुरझाना एवं हानि होती है। जैसे मिट्टि के टेकरे पर्वत आदि पृथ्वी के जीव समय-समय पर बढ़तें भी हैं, घटते भी हैं। गर्भ में कलल अवस्था में हाथी का शरीर या पक्षी के अंडे में रस द्रव (प्रवाही) होते हुए वृद्धि होती है,जन्म होता है। अतः जीव है। उसी प्रकार जल भी द्रव-प्रवाही होते हुए सजीव है, दिखायी देनेवाला पानी शरीरों का समूह है। अग्नि भी वायु-काष्ट या तेल आदि आहार मिलने पर बढ़ती है न मिले तो बुझ जाती है। अतः सजीव है। मानव देह में जठर की गरमी होती है। वह जीव होने की निशानी है। जीव जाने पर उसके साथ गरमी चली जाती है। उसका शरीर ठंडा होने लगता है। उसी प्रकार अग्नि की उष्णता भी सजीव की निशानी है। जीव जाने पर कोलसे-राख आदि ठंडे हो जाते हैं। इत्यादि अनेक युक्तियों से अग्नि की सजीवता सिद्ध है। वायु भी सजीव है। अचेतन पदार्थको कोइ प्रेरक जीव न मिले तो वह स्वयंगति नहीं कर सकता। जड़ शरीर में भी हलन-चलन आदि उसमें रहे हुए जीव की प्रेरणा को आभारी है। मनुष्य में उसकी बुद्धि इच्छा संज्ञादिके बल से हलन-चलनादि सभी क्रिया नियत होती है। और वायु में वैसी व्यक्त या बुद्धि न होने से अनियत तिर्छागमन होता है अतः वायु सजीव है। वनस्पतिकाय में तो अनेक लक्षण मनुष्य के समान दिखायी देते हैं। केतकी, आम्रवृक्ष, वड आदि का मूल में से बाहर आना, उसका जन्म है फिर बाल्यादि अवस्थाएँ-क्रमशः प्रकट होती हैं। लजामणी, बकुलवृक्ष आदि में लज्जा स्पष्ट दिखायी देती है। मनुष्य के अवयवों के समान वनस्पति में अंकुरे, पत्र, शाखाप्रशाखा प्रकट होती है। स्त्री की योनि समान वृक्षों के पुष्पों में से संतति सम फल उत्पन्न होते हैं, मनुष्य में निद्रा-जागृतावस्था समान घावडी-प्रपुनाट आदि के पत्र, सूर्य विकाशी कमल आदि सूर्यास्त के समय संकुचित शुष्क एवं उदय के समय प्रफुल्लित होते हैं, घुवड सम, चंद्र विकासी पुष्प रात को प्रफुल्लित एवं दिन में संकुचित होते हैं। शरीर से कटे हुए अवयव शुष्क होते हैं वैसे पत्र-फल-पुष्प शाखादि वृक्ष से कट जाने पर शुष्क होने लगती हैं। मनुष्य सम वनस्पति आहार-पानी से जीवंत है। अनेक प्रकार की हिफाजत रखने पर भी आयुष्य पूर्ण होने पर मानव जी नहीं सकता वैसे वनस्पति का रक्षण करने पर भी स्व-स्वकाल पूर्ण होने पर अचित्त बन जाती है। उसे भी मनुष्य
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श्रामण्य नवनीत