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भक्त गृहस्थों का प्रतिबंध ममत्व का वर्जन करे, उसको निरतिचार चारित्र पालन से भाव साधु जानना।
सम्यग्दर्शन होने से मूढ़ता दूर होती है, मूढ़ता के अभाव से तत्त्वातत्त्व का विवेक प्रकटित होता है। उससे अतीन्द्रिय पदार्थों में भी हेय-उपादेय का विवेक करनेवाला ज्ञान, कर्मकलिमल धोने हेतु निर्मल जल तुल्य तप और नये कर्मबंध को रोकने रूप संवर आदि गुणों को पहचाने, उनकी महिमा समजे। इस प्रकार ज्ञान चक्षु से हेयोपादेय का विवेककर इंद्रिय संवर से कर्मबंधको रोककर तप से पूर्व संचित कर्म कलिमल को दूर करे। कर्मरहित बनानेवाले साधनों को पहचानकर उपयोग करे वह भाव साधु। ___आहारादि में अनासक्त भाव, यह सर्वगुणों का बीज है। विनय वही कर सकता है। जिसने आहार संज्ञा एवं रस संज्ञा पर विजय पाया है। इस कारण से मुनि को कुक्षि संबल कहा है। जल भी निष्प्रयोजन लाने एवं रखने को संनिधि दोष कहा है। गृहस्थ ने संयमार्थे दिये हुए आहार में अनासक्त भाव रखने वाला एवं संनिधि दोष का सेवन न करने वाला भाव साधु जानना। ___काया से परीषहों का पराभव करने का आशय यह है कि मन से आर्तध्यान न करे, वचन से दीनता न करे, फिर भी काया से सहन न करे तो परीषह विजय नहीं होता। अतः काया से भी कष्ट सहनकर परीषहों को जीतने वाला संसार से पार होता है। ऐसा तभी बनता है जबजन्म-मरण का तीव्र भय प्रकट हुआ हो। इसलिए प्रारंभ में कष्टकारी प्रांते सर्वकष्टों से दूरकरानेवाले तप का आदरपूर्वक सेवन करे। साधुता योग्य प्रायश्चित विनयादि अभ्यंतर तप के साथ यथाशक्ति बाह्यतप भी करना। शक्ति उपरांत तप करने का एवं तपस्वी रूप में यश प्राप्ति के लिए तप का आगमों में निषेध किया है। अतः कर्म निर्जरार्थ गुप्त तप करे वह भाव साधु। हाथ-पैर को काचबे के समान संकोचकर रखनेवाला, और कारण होने पर जयणा से कार्यकर्ता हाथ पैर का संयमी। अहितकर वचन पर अंकुश के कारण हितकर भाषक वाक्संयमी, विषयों से इंद्रियों को रोकने वाला इंद्रिय संयमी, धर्म-शुक्ल ध्यान में रमणता करने वाला अध्यात्मरक्त, आत्मिक गुण में रमणता करनेवाला आत्म समाधि युक्त, आगमोक्त कथनानुसार गुर्वादि का विनयकर अध्येता वह सम्यक् सूत्र-अर्थ (उभय) का ज्ञाता। हाथ-पैर के संयम से काय योग का, वचन संयम से वचन योग का और अध्यात्म रक्त आत्म समाधि और सूत्रार्थ का ज्ञाता आदिसे मनोयोगका संयम समझना ऐसे तीनों योगों के संयम साधकको भाव साधु जानना।
संयम पालन में वाह-वाह लब्धियाँ या मान-सन्मान आदि प्राप्त करने का ध्येय संसार वर्द्धक होने से छोड़े, ज्ञानादि में रमणतावान हीजड़वृतियों को दूर कर, अध्यात्म
श्रामण्य नवनीत
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