Book Title: Sramanya Navneet
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 55
________________ से बाह्यशौच का प्रतिबंध, संप्रश्न से सावद्य में प्रवृत्ति अनुमोदना, अभिमानादि और देह प्रलोकन से शरीर पर राग-मोहादि होने का संभव आदि विविध दोष हैं। इसमें जूआँ तो महा व्यसन है, विशेष में आर्त्तरौद्र ध्यान का कारण है, छत्र स्वयं को धरने से उष्णपरिषह से पराभव और पर को धरने से लघुतादि दोष,जूते पहनने से जिनाज्ञा का भंग, ईर्यासमिति की विराधना सुखशीलपना आदि दोष, और अग्नि के आरंभ से हिंसा होने के साथ शीत परिषह से पराभव-लघुतादि होती है अथः अनाचीर्ण समजना। दूसरे भी अनेक दोषों का संभव है। शय्यातर पिंड लेने से एषणा समिति में दोष, वसति की दुर्लभता, गृहस्थ का प्रतिबंध या द्वेष आदि,आसन, पलंगादि से लघुता,शासन की अपभ्राजना,सुखशीलपना, हिंसा आदि, गृहस्थ युक्त घर में रहने से ब्रह्मचर्य की विराधना, लघुता, प्रतिबंध और दो घरों के बीच में बैठने की अपभ्राजना, लघुता, चोरी आदि का कलंक विविध दोष और पीठी आदि करने करवाने से मलपरिषह से पराभव, देहशोभा, कामविकार आदि दोष यथामति विचारना। __गृहस्थ की वैयावच्च से अविरति का पोषण-अनुमोदनादि, आजीवक वृत्ति से धर्म की अपभ्राजना-लघुतादि, मिश्रपाणी से हिंसादि और आतुर स्मरण से आर्त्त-रौद्र ध्यान असमाधि आदि विविध दोषों का संभव यथामति विचारना।। मूला,आदु,कंद और मूल ये चारों अनंत कायिक और सचित ईक्षु-शेरडी, फल एवं बीज इन सब को वापरने से अहिंसा व्रत का भंग, विकारक होने से चतुर्थव्रत में अतिचार मन की असमाधि, स्वाद की गृद्धि आदि, परिणाम में पांचों व्रतों की विराधना, यथामति विचारना। प्रत्येक क्षार उस-उस नाम से भिन्न-भिन्न देश में प्रसिद्ध है। सभी सचित वापरने से हिंसा होती है। ये कितनेक क्षार पानी में व कितनेक पर्वतों में पकते हैं। धुम्रपान से अग्निकाय की विराधना एवं विषयों की गृद्धि, वमन, वस्तीकर्म एवं विरेचन से शरीर में रहे हुए कृमि आदि त्रस-संमूर्छिम जीवों की हिंसा, अंजन से शरीर शोभा, नेत्रों का विकार, दातून से वनस्पतिकाय की विराधना की अनुमोदना, विभूषा आदि दोष,शरीरके अवयवों को तैलादि की मालिश करने से सुखशीलता, हिंसादि एवं विभूषा से नववाड़ की विराधना, काम विकार, ब्रह्मचर्य खंडन आदि विविध दोष प्रकट ही हैं। यहाँ चौपन अनाचीर्ण कहे उसमें राजपिंड एवं किमिच्छक पिंड को एवं जुगार एवं नालिका को एक गिनने पर बावन की संख्या अन्य ग्रन्थों में हुई है और प्रसिद्ध भी बावन हैं ऐसा समझना। श्रामण्य नवनीत

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