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सवाभावकारी, अविनायागमणो, अणिवारणिज्जो, पुणो पुणोडणुबंधी ॥१२॥
अर्थः तथा पूर्वोक्त मुमुक्षु जीव को धर्म जागरणा करनी चाहिए, वह इस प्रकार - मेरे लिए कैसा अवसर है? कितना मूल्यवान् अवसर मुझे मिला है? ऐसे अवसर पर क्या करना उचित है? इन्द्रियों के विषयों का सेवन करूं? नहीं, वे निस्सार हैं, निश्चित रूप से बिछुड़ने वाले हैं और उनका अन्त परिणाम दुःखदायी होता है। मृत्यु बड़ी भयानक है। वह सब समाप्त कर देती है। वह अचानक आती है और जब आती है तो उसका निवारण करना शक्य नहीं है। वह एक बार आकर नहीं रह जाती परंतु उसका चक्र बार बार चलता ही रहता है ।।१२।।
मूल - धम्मो एअस्स ओसहं, एगंतविसुद्धो, महापुरिससेविओ, सबहिअकारी, निरइआरो, परमाणंदहेऊ।
नमो इमस्स धम्मस्स। नमो एअधम्मपगासगाणी नमो एअधम्मपालगाणं। नमो एअधम्मपरूवगाणी नमो एअधम्मपवज्जगाणं ॥१३॥
अर्थ : इस भीषण मृत्यु का औषध धर्म है। धर्म एकान्त रूप से विशुद्ध है, महापुरुषों ने उसका सेवन किया है, प्राणी मात्र के लिए हितकारी है, निर्दोष है और परमानन्द का कारण है।
इस धर्म को नमस्कार करता हूँ। धर्म प्रकाशकों को नमस्कार करता हूँ। धर्मका पालन करने वालों को नमस्कार करता हूँ। धर्म की प्ररूपणा-व्याख्या करने वालो को नमस्कार करता हूँ। धर्म अंगीकार करने वालों को नमस्कार करता हूँ ।।१३।।
मूल - इच्छामि अहमिणं धम्म पडिवज्जित्तए सम्मं मणवयणकायजोगेहि। होउ समेअं कल्लाणं परमकल्लाणाणं जिणाणमणुभावओ ॥१४॥
इति साहुधम्मपरिभावणा सुत्तं सम्मत्तं ॥ ____ अर्थ : मैं इस धर्म को मन वचन और काया के योगों से अंगीकार करने का अभिलाषी हूँ। परम कल्याणकारी अरिहन्त भगवंतों के प्रभाव से मुझे धर्मप्रतिरुचि रूप कल्याण की प्राप्ति हो ॥१४॥
. साधु परिभावना सूत्र समाप्त ।।
मूल - सुप्पणिहारणमेवं चिंतिज्जा पुणो पुणो। एअधम्मजुत्ताणमववायकारी सिआ। पहाणं मोहच्छेअणमेओ एवं विसुज्झमाणे भावणाए, कम्मापगमेणं उवेइ एअस्स जुग्गयं तहा संसारविरत्ते संविग्गे। भवड़, अममे अपरोवतावी, विसुद्धे विसुज्झमाणभावे ॥१५॥
॥बीअँ साहुधम्म परिभावणा सुत्तं समत्तं ॥ . अर्थ : इस प्रकार विशुद्ध हृदय की एकाग्रता के साथ बार-बार चिन्तन करना श्रामण्य नवनीत
१३.