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तीस वर्ष और तीन वर्ष 1. ११
अपने उपरोक्त कार्यों से वे अत्यन्त लोकप्रिय हो गये और लोग उन्हें इसरायल या यहूदियों का राजा कहने लगे। यहूदी तंत्र को विश्वास था कि आनेवाला देवदूत इसरायल को रोमन आधिपत्य से मुक्त करायेगा। पर वह तो 'पापों' से मुक्ति कराता था और आत्मिक उत्थान की बात करता था। ईसा के जन समर्थन के कारण रोम के राजा को राजद्रोह की आशंका होने लगी। फलत: वहाँ का राजतंत्र और पुरोहित तंत्र उनसे नाराज हो गया। उन पर अनेक आरोप लगाये गये। जिनमें राजद्रोह को भड़काना एवं मायावीपन प्रमुख थे। इन आरोपों के कारण उन्हें शूली पर लटका दिया गया। उनकी मृत्यु ७ अप्रैल २४ को हुई। उनका जीवन काल तेतीस वर्ष का रहा ।
मृत्यु के तीन दिन बाद महात्मा जीसस मृतोत्थित हुए और ४० दिन के बीच तो वे अनेक बार मृतोत्थित होकर शिष्यों के बीच आये, उन्हें उपदेश एवं मार्गदर्शन दिया। इसके बाद वे स्वर्ग के राज्य में स्थायी रूप से अनन्त जीवन का आनन्द ले रहे हैं। संभवतः ईश्वरीय न्याय के दिन वे पुनः अवतरित हों ।
अपने जीवनकाल में प्रमुख शिष्यों को, जो सभी दीन की कोटि के थे। उन्होंने उन्हें अपने उपदेशों के प्रसार की विधि और उसमें आने वाली कठिनाइयों व उनके सहन करने की शिक्षा दी। बाद में उन्होंने सत्तर और धर्म प्रचारक चुने। जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों एवं देशों में धर्म-प्रचार एवं विस्तार का काम किया। वे परम्परागत धर्म में सुधार ही नहीं करना चाहते थे, अपितु वे धर्म, राजनीति और सभी क्षेत्रों में क्रांति के विगुल बजाकर युगानुकूलन करना चाहते थे। उन्होंने अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं बनाया और न ही कोई स्वतंत्र धर्म संस्था की ही स्थापना की। पर उनके समर्थकों ने उनके नाम से ही धर्म संस्था चालू कर दी। उत्तरवर्ती काल में उनके स्वर्ग के राज्य के अभिलाषियों की संख्या इतनी अधिक होती गई कि वह विश्व की प्रथम धर्म-संस्था बन गई।
उनके चार शिष्यों ने पहली सदी के मध्योत्तर काल में अपनी स्मृतियों के आधार पर चार खण्डों की २७ लघु पुस्तकों में पवित्र धर्म-नियमों को प्रस्तुत किया। जिसे नये धर्म-नियम (न्यू टेस्टामेंट) कहा गया। अनेक शिष्यों द्वारा लिखित होने के कारण इसमें पर्याप्त पुनरावृत्ति है, पर सभी उनके उपदेश और मान्यताओं का सार देते हैं। अनेक विद्वानों के अनुसार, ये अत्यन्त संक्षिप्त और असम्बद्ध हैं। पर इन्हें ईश्वर - प्रेरित कहकर ईसाईजन विश्वसनीय मानते हैं, क्योंकि ईसा एकेश्वरवादी थे और अपने को ईश्वरपुत्र कहते थे।
ये धर्म नियम भी यहूदियों में प्रचलित पुराने धर्म नियम की पुस्तक में संयोजित हुए और यह 'होली बाइबिल' कहलाई । सम्पूर्ण बाइबिल में पुराने और नये धर्म-नियमों