________________
श्रमण, वर्ष ५८, अंक १ जनवरी-मार्च २००७
जैन जगत्
तिलकधारी महाविद्यालय, जौनपुर में The role of the Yoga philosophy in modern society
विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न जौनपुर। २४-२५ फरवरी, २००७, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा दर्शन विभाग, तिलकधारी महाविद्यालय, जौनपुर के संयुक्त तत्त्वावधान एवं डॉ० रामकुमार गुप्त, वरिष्ठ प्रवक्ता, दर्शन विभाग, टी०डी० कॉलेज के कुशल संयोजकत्व में 'The role of the Yoga philosophy in modern society' विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये विद्वद्वर्यों ने अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया। संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में पधारे अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो० श्रीप्रकाश दूबे, पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, दर्शन विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर ने किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में योग की प्राचीनता को बताते हुए वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आज की समस्याओं का हल योग के माध्यम से संभव है। योग की जितनी भी विधायें हैं वे सभी आत्मतत्त्व के विकास पर ही बल देती हैं। अन्तर मात्र इतना है कि कुछ विधाएं आत्मतत्त्व के उस विकास को ईश्वर का शरणार्थी मानती हैं तो कुछ उसे ईश्वरत्व की श्रेणी में ला खड़ा करती हैं।
संगोष्ठी के प्रथम दिन जिन विद्वानों ने अपना शोध-पत्र वाचन किया उनमेंप्रो० मृदुला रवि प्रकाश, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, डॉ० कंचन सक्सेना, लखनऊ विश्वविद्यालय, डॉ० विजयकान्त दूबे, राजकीय महाविद्यालय, ज्ञानपुर; प्रो० रामलाल सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, डा० डी०एन० द्विवेदी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, डॉजटाशंकर मिश्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रो० एच०एन० उपाध्याय, डॉ० शिवभानु सिंह, डॉ० संजय शुक्ला, डॉ० पी०एन० सिंह आदि प्रमुख हैं।
संगोष्ठी के प्रथम दिन द्वितीय सत्र में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के डाइरेक्टर इंचार्ज, डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने 'पतञ्जलि का अष्टांग योग एवं जैन योग-साधना' विषय पर तथा दूसरे दिन प्रथम सत्र में पार्श्वनाथ विद्यापीठ की प्रवक्ता