Book Title: Sramana 2007 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ १५२ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ हआ जिनमें डॉ० सुधा जैन, डॉ० शारदा सिंह, डॉ० महेन्द्र नाथ सिंह, अन्नपूर्णा त्रिपाठी, सुमन यादव, कु० श्रद्धा, प्रज्ञा पाण्डेय, चन्द्रभूषण, रेनू सिंह, श्वेता सुमन, सुनील कुमार दुबे, कु० बिन्दु, सुमन सिंह, श्रीमती रश्मि सिंह, मंजु कश्यप, मधुरिमा त्रिपाठी, श्वेता गुप्ता, संगीता, राधा, दिनेश कुमार, रजनीश कुमार सिंह, तेजनाथ पौडेल, डॉ० राहुल, राकेश, धनञ्जय पाठक, अमित कुमार उपाध्याय, कृष्ण कुमार सिंह, रमाकान्त चतुर्वेदी, डॉ० नीहारिका, डॉ० उषा कला उपाध्याय, आनन्द कुमार गौतम, अनिल कुमार, डॉ० जाह्नवी शेखर राय, बृजेश कुमार यादव, जयशंकर सिंह, अजय कुमार सिंह, करूणेश त्रिपाठी, प्रतिमा सिंह, डॉ० विश्वनाथ वर्मा थे आदि के नाम सम्मिलित हैं। राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन डॉ० रामजी राय, डॉ० सुदर्शन मिश्र, डॉ० अरुणेश्वर झा, डॉ० श्रीकान्त यादव, डॉ० अशोक कुमार सिन्हा, डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय, डॉ० विजय कुमार, संजय कुमार, लाल बहादुर, श्रद्धा, सुमन आदि ने शोध-पत्र प्रस्तुत किये। समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ० आर०पी० द्विवेदी ने कहा कि वेद को हमलोग भगवान मानते हैं। यदि वेद के गढ़ रहस्य को प्राप्त करना है तो उसके लिये अनवरत साधना की आवश्यकता है। वेद में सभी समस्याओं का समाधान है। उन्होंने कहा कि ज्ञान पाने की जो ललक साधन विहीन लोगों में पहले थी वह आज के साधन सम्पन्न लोगों में नहीं है। विशिष्ट अतिथि अमलधारी सिंह ने वेद को समस्त विद्याओं का भण्डार बताया। उन्होंने कहा कि वेद सीधे-सीधे मानव के सम्पूर्ण जीवन एवं कामनाओं से सम्बद्ध है। वेद समष्टि की कामना करता है। समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ० अरुणेश्वर झा ने अपना विचार व्यक्त करते हुये कहा कि वेद वास्तव में सनातन है। आज इसकी मौलिकता को समझने की आवश्यकता है, तभी हम ज्ञान के भण्डार वेद का पूर्ण लाभ ले सकेंगे। समापन सत्र में आये सभी अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी के संयोजक डॉ० झिनकू यादव और संचालक डॉ० विश्वनाथ ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन पार्श्वनाथ विद्यापीठ के डाइरेक्टर इंचार्ज डॉ० एस०पी० पाण्डेय ने किया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174