Book Title: Sramana 2007 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 161
________________ १५४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ डॉ० सुधा जैन ने 'तनाव से मुक्ति की प्रक्रिया : कायोत्सर्ग' विषय पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो० रामलाल सिंह, पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद ने की। इस संगोष्ठी में योग शिविर का भी आयोजन किया गया जिसका संचालन डॉ० सुधीर मिश्रा ने किया। भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान के मासिक अध्ययन संगोष्ठी की १७वीं व १८वीं कड़ी सफलतापूर्वक सम्पन्न दिल्ली। भारतीय संस्कृति के शोध एवं अध्ययन हेतु समर्पित भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान के मासिक अध्ययन संगोष्ठी की १७वीं कड़ी में ६ जनवरी २००७ को आयोजित संगोष्ठी में दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ० पुषराज जैन ने 'जैन नास्तिक नहीं हैं' विषय पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया। डॉ० जैन ने कहा कि दार्शनिक जगत् में जैन दर्शन का एक विशिष्ट स्थान है। आस्तिकता बिना सम्यक्-दर्शन के हो ही नहीं सकता। जैन धर्म का मूल सम्यक्-दर्शन है। अन्त में उन्होंने कहा कि सम्यक्-दर्शन से व्यक्ति तीर्थकरत्व को प्राप्त कर सकता है। इस अवसर पर संस्थान के कोषाध्यक्ष श्री देवेन यशवन्त, डॉ० बालाजी गणोरकर (कार्यकारी व संयुक्त निदेशक, बी०एल०आई०आई, दिल्ली), डॉ० अशोक कुमार सिंह (एसो०प्रोफेसर, बी०एल० आई०आई, दिल्ली), दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र-छात्रायें, समाज के अग्रणी जन आदि उपस्थित थे। मासिक संगोष्ठी की १८वीं कड़ी में, ३ फरवरी, २००७ को आयोजित संगोष्ठी में लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद के निदेशक डॉ० जितेन्द्र बी० शाह ने 'वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अनेकान्तवाद की प्रासंगिकता' विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। डॉ० शाह ने कहा कि अनेकान्तवाद के बिना कोई कार्य सम्भव नहीं हो सकता। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर सूरिकृत ‘सन्मतितर्क प्रकरण' का उल्लेख करते हुये उन्होंने कहा कि इस पुस्तक का जीवन में एक बार निश्चयपूर्वक आद्योपान्त अध्ययन करना चाहिए। स्याद्वाद शब्द 'स्यात्' और 'वाद' इन दो शब्दों से निष्पन्न हुआ है। स्यात् शब्द के अर्थ के सम्बन्ध में जितनी भ्रान्ति दार्शनिकों में रही है, सम्भवतः उतनी अन्य किसी शब्द के सम्बन्ध में नहीं रही। डॉ० जैन ने कहा कि व्यावहारिक पक्ष से विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जब तक अनेकान्त की बात नहीं मानते, तब तक ज्ञान अधूरा और ऐकान्तिक है।

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