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साहित्य सत्कार : १६५
चर्चा की गई है। पांचवां अध्याय तप सम्बन्धी है जिससे सम्बन्धित ४४ साहित्य की सूची और उनपर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया है। अध्याय छ संस्कार एवं व्रतारोपण से सम्बन्धित है। इसमें ७० साहित्य की सूची के साथ उनकी विवेचना की गई है। अध्याय सात समाधिमरण से सम्बन्धित है। इसमें कुल ३१ साहित्य-सूची है और उनपर उचित चर्चा की गई है। अध्याय आठ और नौ प्रायश्चित्त सम्बन्धी साहित्य से सम्बन्धित है जिसमें ४७ साहित्य की सूची के साथ उनकी सविस्तार विवेचना की गयी है। अध्याय दस पूजा एवं प्रतिष्ठापरक साहित्य से सम्बन्धित है जिसमें १३३ पूजा एवं ४२ प्रतिष्ठा सम्बन्धी साहित्य के बारे में ससन्दर्भ वर्णन किया गया है। ग्यारहवां अध्याय जैन मंत्र एवं यन्त्र सम्बन्धी साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें तन्त्रमंत्र-यन्त्र-विद्या सम्बन्धी - ८४ साहित्य की सूची दी गई है और उनपर ससन्दर्भ प्रकाश डाला गया है। बारहवां अध्याय ज्योतिष निमित्त-शकुन साहित्य से सम्बन्धित है। इसमें ९० ग्रन्थों की सूची दी गई है जिसमें जैन-ज्योतिष एवं शकुन विद्या सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना मिलती है। त्रयोदश अध्याय में शेष विविध विषयों का संकलन किया गया है जिसमें कुल ३८ पुस्तकों की सूची दी गयी है और उनपर सविस्तार चर्चा भी की गई है।
अन्त में कहा जा सकता है कि साध्वी सौम्यगुणा श्री लिखित जैन विधिविधान साहित्य सम्बन्धी यह ग्रन्थ अपने आप में एक अनूठी रचना है जिसका लाभ जैन विद्या के सुधी पाठकों के साथ-साथ समान्य शोधार्थी भी उठा सकते हैं। निष्कर्षतः यह ग्रन्थ एक बार सभी के लिए अवश्य पढ़ने योग्य है जिससे कि जैन विद्या सम्बन्धित ज्ञान में प्रौढ़ता आये।
डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय