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श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७
(हिन्दू और जैनों को छोड़कर) अपने धर्म-संस्थापक को ईश्वर-दूत, ईश्वर-पुत्र, ईश्वरीय रहस्य-उद्घाटक या परमेश्वर के समान ही मानते हैं। नये युग में यह धारणा बदल रही है। जैनों के अनुसार, ईश्वरत्व ज्ञान, साधना और तपस्या से कर्ममल या दु:ख दूर कर ही पाया जा सकता है।
१४. महावीर के धर्म में दार्शनिक तत्त्वों या बुद्धिवाद को भी महत्त्व दिया गया है। जबकि ईसा के उपदेशों में यह नहीं पाया जाता। वहाँ तो जन-कल्याण (सेवा एवं अनुग्रह) का ही महत्त्व है। ईश्वर के समान धारणाओं को स्वत:सिद्ध मान लिया गया है।
१५. महावीर के धर्म में पवित्र मृत्यु (सल्लेखना) का विधान है। यह ईसा के धर्म में नहीं है। स्वेच्छा-मृत्यु को भुखमरी या आत्महत्या नहीं कहा जा सकता है। ये दोनों अभाव या मनोवैज्ञानिक क्षोभ के प्रतीक हैं। महावीर के शिष्यों ने धर्मप्रचार की तुलना में पवित्र मृत्यु की प्रक्रिया श्रेष्ठ समझी।
१६. जैन धर्म जन्मना जातिवाद को नहीं मानता। अतः उसके अनुयायियों में जातिगत भेदभाव नहीं है। ईसाई धर्म तो स्पष्टत: दीन एवं अदीन की जाति स्वीकृत करता है। अब तो उनके दीनों में भी एक नई जाति-दलित जाति का उदय हो रहा है जिसके लिये राजनीतिक संरक्षण भी मांगा जा रहा है।
१७. महावीर का धर्म मुख्यतः निवृत्तिवादी माना जाता है, पर यह निवृत्ति नैतिक एवं शुभ प्रवृत्तियों का ही एक रूप है। यह शुभ प्रवृत्तियों को जन्म देती है। श्रमण का अर्थ ही श्रम करना या प्रवृत्ति करना है। इसके विपर्यास में, ईसा का धर्म प्रवृत्तिवादी ही माना जाता है।
महावीर के ३० वर्ष तक दिये गये उपदेश उनकी मृत्यु के बाद भी, सीमित क्षेत्र में ही प्रचारित रह सके। इसके विपर्यास में, ईसा के तीन-साढ़े तीन वर्ष के उपदेश
और कार्य उनकी मृत्यु के बाद तो और भी विश्व के अनेक देशों में उनके धर्म प्रचारकों द्वारा जनसेवा के माध्यम से प्रचारित एवं प्रवाहित हुए। फिर भी, यह एक अचरजकारी तथ्य है कि दोनों महापुरुषों के उपदेश काल में इनके अनुयायियों की संख्या में जो अनुपात १०:१ का था वर्तमान में १:३०० के अनुपात में पाया जाता है। जैनों के लिये यह विषम अनुपात विभिन्न दृष्टिकोणों से विचारणीय है :
१. महावीर का धर्म, प्रारम्भ में, राजकुलों एवं उच्च वर्ग में अधिक प्रचारित हुआ, जबकि ईसा के उपदेश एवं कार्य दीन-दुःखियों में अधिक प्रचारित हुए जो समग्र जनता का तीन-चौथाई से अधिक भाग है। फलत: राजमहल और झोपड़ी का जो अंतर है, वह आज भी बना हुआ है।