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२८ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७ रोकने के लिये कोई विशेष संकेत नहीं मिलता, (संभवत: उनके समय में यह समस्या ही नहीं रही होगी), पर महावीर किंचित् दूरदर्शी थे। उन्होंने सामान्य जन के लिये ऐसे व्रत व नियम प्रस्तावित किये जिनके पालन से पर्यावरण संतुलन प्रत्येक स्थिति में बना रहेगा। उन्होंने सभी जीवों का आदर करो' की धारणा प्रस्तुत कर निम्न व्रतों के परिपालन का उपदेश दिया, जो आज भी युगानुकूल है : १. जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिये
ब्रह्मचर्य व्रत २. चलने-फिरने में सावधानी
अहिंसा व्रत, समितिवाद ३. उपेक्षणीय या निरुद्देश्य कार्य न करने के लिये वन संरक्षण, अनर्थदंड व्रत
(पेड़ काटना, जल-बिजली का अधिक उपयोग,
अकारण यात्रा, प्रकृति का अतिदोहन आदि) ४. अनेक हिंसक व्यवसाय न करने के लिये अहिंसा व्रत ५. कलह या युद्धशमन के लिये
अनेकांतवाद ६. शाकाहारी जीवन पद्धति एवं आवश्यकताओं भोगोपभोग-परिमाण व्रत, का परिमाण करने के लिये
अहिंसा व्रत
परिग्रह परिमाण व्रत ७. उपभोक्तावाद पर नियंत्रण के लिये परिग्रह परिमाण व्रत ८. सामाजिक विषमता दूर करने हेतु
अतिथि संविभाग व्रत ९. कषायों पर नियंत्रण के लिये
मोहकर्म का क्षयोपशम १०.क्षयाभाव की प्रवृत्ति के लिये
शुभ कर्म करना वर्तमान में जो सरकारी और गैर-सरकारी उपाय इस दिशा में किये जा रहे हैं, वे जैन शैली के विस्तारित रूप हैं।
___ महात्मा ईसा ने भी अपरिग्रह तथा संविभाग की चर्चायें की हैं, पर अन्य बातें उनके आदेशों में नगण्य ही हैं। यही कारण है कि पश्चिम महा-परिग्रह होता जा रहा है।
आज की सर्वाधिक जटिल समस्या नैतिक मूल्यों के ह्रास की है। इस विषय में सभी चिंतित हैं। इससे यह भी अनुमान लगता है कि विभिन्न युग के महापुरुषों के उपदेशों का या धार्मिकता का प्रभाव निरन्तर कम हो रहा है। विभिन्न धर्मों के