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३० : श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७
नवयुग के अनेक विचारशील विद्वानों का मत है कि प्राचीन धर्म अपने युगों की समस्याओं के अनुरूप अनुकूलित थे, पर वे आज की जटिल समस्याओं का अनुकूल समाधान नहीं कर सकते। एतदर्थ एक नये समन्वयवादी सत्य धर्म या मानव धर्म संस्था की आवश्यकता है। सन्दर्भः
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