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आगमों में अनगार के प्रकार : परिव्राजक, तापस और आजीवक
१०. किल्विषिक - जो ज्ञान केवली, धर्माचार्य और साधुओं का अवर्णवाद करता है और पापमय भावनावाला है, वह किल्विषिक है।
११. तिर्यञ्च - देशविरति श्रावकव्रत का पालन करनेवाले घोड़े, गाय आदि, जैसे नन्दन मणिहार का जीव मेढ़क के रूप में श्रावकव्रती था।
१२. आजीवक जो अपनी पूजा-प्रतिष्ठा के लिए संयम पालन करते हैं उसे आजीवक कहते हैं। लोगों को चमत्कार दिखाकर अपनी आजीविका चलाने वाले साधु भी इसके अन्तर्गत आते हैं।
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१३. आभियोगिक - मंत्र, तंत्र, यंत्र, भूतकर्म, प्रश्नाप्रश्न, निमित्त, चूर्ण आदि के प्रयोग से दूसरों को वश में करनेवाला आभियोगिक साधु है।
१४. दर्शनभ्रष्ट सलिंगी ऐसा साधक जो आगम के अनुरूप क्रिया करता हुआ भी जिनदर्शन से विरुद्ध प्ररूपणा करता है, वह दर्शनभ्रष्ट सलिंगी साधु कहलाता है।
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'ज्ञाताधर्मकथांग' के अनुसार परिव्राजकों का स्वरूप कुछ इस प्रकार है१. चरक - इसका उल्लेख 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' में भी मिलता है जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है।
२. चीरिक - रास्ते मे पड़े फटे कपड़ों को पहनने वाले परिव्राजक ।
३. चर्मखंडिक - चमड़े का टुकड़ा पहनने वाले ।
४. भिक्षांड - केवल भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाले परिव्राजक इस श्रेणी में आते हैं। कहीं-कहीं बौद्ध भिक्षु को भिक्षांड कहा गया है।
५. पण्डुरंग जो शरीर पर भस्म लगाते हैं।
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गोव्रती - जब गाय खाना खाये तो खाना, जब गाय पानी पीये तो पीना, जब गाय सोये तो सोना, जब गाय चले तो चलना, इस प्रकार के आचरण करने वाले साधु गोव्रती परिव्राजक कहलाते थे ।
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६. गौतम - बैल को साथ लेकर चलने वाले। शिक्षित बैल द्वारा करामात दिखाकर जीविका चलाने वाले परिव्राजक इस कोटि में आते हैं।
८. गृहधर्मी - गृहस्थ धर्म को श्रेष्ठ मानने वाले।
९. अविरुद्ध - मोक्ष के लिए विनय को प्रमुख साधन मानना। इस कोटि के परिव्राजक गाय, भैंस, कौवा आदि को प्रणाम करते थे।
१०. विरुद्ध अक्रियावादी या नास्तिक साधु इसके अन्तर्गत आते हैं।