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जैन - जैनेतर धर्म-दर्शनों में अहिंसा : ५३
रोकने में यदि कोई समर्थ है, तो वह एकमात्र भगवान् महावीर की अहिंसा ही है। अतः यह कहना सर्वथा उचित होगा कि भगवान महावीर की अहिंसा की जितनी आवश्यकता आज है, उतनी महावीर के काल भी नहीं थी । अहिंसा सम्पूर्ण विश्व के लिए वरदान है, अतएव आज आवश्यकता है पुनः इस मार्ग पर चलने की ।
संदर्भ :
१. आचारांगसूत्र, १/४/१
२.
सूत्रकृतांग, १/१/४/१०
३. आवश्यकसूत्र १/३
४. योगशास्त्र, चतुर्थप्रकरण
५. ऋग्वेद, ६/७५/१४
६.
वही, ५/८५/७
७. यजुर्वेद, ३६/१८
८. यजुर्वेद, ३६ / १७
९. छान्दोग्योपनिषद्, ८/१५/१
१०. प्राणाग्निहोत्रोपनिषद्, चतुर्थ खण्ड
११. छान्दोग्योपनिषद्, ३/१७/४
१२. सिन्हा, बशिष्ठ नारायण, जैन धर्म में अहिंसा, पृ० १२
१३.
अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम् । मनुस्मृति, २/१५९
वहीं,
६/६०
१४. वाल्मीकि रामायण, ६/४४
१५. अनुशासनपर्व (महाभारत), ११५ / २३, ११६/२८-३०
१६. सिन्हा, बशिष्ठ नारायण, जैन धर्म में अहिंसा, पृ० ३३
१७. गीता, १८/१७
१८. मत्स्यपुराण, १०५ / ४८
१९. वायुपुराण, १८ / १३