Book Title: Sramana 2007 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 72
________________ जैन ज्ञानमीमांसा : प्रमाणनयतत्त्वालोक के विशेष सन्दर्भ में : ६५ पाँचों ज्ञानों में से आभिनिबोधिकज्ञान मुझे है, श्रुतज्ञान मुझे है, अवधिज्ञान मुझे है, मनःपर्यवज्ञान भी मुझे प्राप्त है, किन्तु केवलज्ञान प्राप्त नहीं है, क्योंकि केवलज्ञान भगवन्त अरिहन्तों को ही प्राप्त होता है।२४ 'स्थानांग'२५ और 'भगवती२६ में भी ज्ञान के पाँच प्रकारों का वर्णन है। उमास्वाति ने भी 'तत्त्वार्थसत्र' में इन्हीं पाँच ज्ञानों का उल्लेख किया है।२७ वादिदेवसरि 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' में ज्ञान के अवयव को विशिष्ट रूप में स्वीकार करते हैं। यहाँ आभिनिबोधिकज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के अन्तर्गत रखा गया है जिसके इन्द्रिय निबन्धन एवं अनिन्द्रिय निबन्धन नाम से दो रूप है।२८ श्रुतज्ञान परोक्ष ज्ञान के अन्तर्गत है लेकिन श्रुतज्ञान नाम का उल्लेख 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' में नहीं है। परोक्ष ज्ञान के अन्तर्गत आगम प्रमाण को रखा गया है।२९ अवधि, मनःपर्यव एवं केवलज्ञान का विवेचन पारमार्थिक प्रत्यक्ष के अन्तर्गत किया गया है।° अवधि एवं मन:पर्यव विकल प्रत्यक्ष हैं जबकि केवलज्ञान की विवेचना सकल प्रत्यक्ष के अन्तर्गत की गई है।३१ 'भगवती'३२ के अनुसार ज्ञान के पाँच भेद हैं- आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मन:पर्यव, केवल। पुन: आभिनिबोधिक के अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा- ये चार भेद किये गये हैं। 'राजप्रश्नीय' एवं 'भगवती' में अवग्रह, श्रुत, अवधि, मन:पर्यव के दो-दो भेद बताते हुए केवलज्ञान सहित वर्णन 'नन्दीसूत्र के अनुसार जानने का निर्देश दिया गया है। जैसा कि पं० दलसुखभाई मालवणिया ने भी लिखा है कि सूत्रकार ने आगे का वर्णन 'राजप्रश्नीय' से पूर्ण कर लेने की सूचना दी है और 'राजप्रश्नीय' के सूत्र सं० १६५ में निर्देश है कि शेष ज्ञान की पूर्ति 'नन्दीसूत्र' के अनुसार जाने।२४ 'नन्दीसूत्र'३५ के अनुसार ज्ञान का विभाजन निम्नलिखित है ज्ञान आभिनिबोधिक श्रुत अवधि मनःपर्यव केवल प्रत्यक्ष परोक्ष इन्द्रिय प्रत्यक्ष नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष आभिनिबोधिक श्रुत श्रोत्र चक्षु घ्राण जिह्वा, स्पर्श श्रुतनि:सृित अश्रुतनिःसृत अवधि मनःपर्यव केवल अवग्रह ईहा अवाय धारणा ४ व्यंजनावग्रह ६ अर्थावग्रह

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