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श्रमण, वर्ष ५८, अंक १/जनवरी-मार्च २००७
क्षेत्र ईसा से पर्याप्त मात्रा में अधिक रहा। (वर्तमान बंगाल से लेकर राजस्थान तक का प्राय: १००० मील का क्षेत्र) इसके विपर्यास में, ईसा का विहार काल काफी कम था।
८. दोनों ही महापुरुष अध्यात्मवाद मानते हैं, पर ऐसा लगता है कि महावीर के उपदेशों में आत्मवाद, व्यक्ति-स्वातंत्र्य एवं कर्मवाद की प्रधानता थी, जबकि महात्मा ईसा के उपदेशों में ईश्वर की दया, करुणा और भौतिकवाद की प्रधानता थी। सामान्य जन अध्यात्मवाद से प्रभावित तो होता है, पर वह उसे अपने जीवन में उतार नहीं पाता। यही कारण है कि महावीर के उपदेश बहु-प्रचारित एवं प्रभावी नहीं हो सके।
९. महावीर ने नरक की स्पष्ट धारणा रखी है। इसके विपर्यास में, ईसा के धर्म में नरक की स्पष्ट धारणा तो नहीं है, पर वे 'शोधन स्थान' तो मानते ही हैं जहाँ पापी अपने पापों के कारण दुःख भोगते हैं।
१०. महात्मा ईसा यहूदी जाति के प्रति विशेष अनुरागी थे, पर महावीर सबके प्रति समभावी थे।
११. पश्चिम में ईसा के जीवन पर १८९७ से ही सिने-फिल्में बनने लगी थीं। इनकी संख्या दो दर्जन से भी अधिक हैं। एक ताजी फिल्म 'पैशन प्ले' तो अत्यन्त प्रभावकारी सिद्ध हुई है। इसके विपर्यास में, महावीर के जीवन और उपदेशों पर कोई अच्छी फिल्म ही देखने में नहीं आई। प्रचार-प्रसार माध्यमों के युग में यह कमी खटकने वाली है।
१२. महावीर का निर्वाण (मृत्यु) सामान्यतः आयु कर्म के क्षय एवं तीस वर्षों के उपदेशों के बाद ७२वें वर्ष में हुआ जिसका उत्सव 'दीपावली' के रूप में मनाया गया। इसके विपर्यास में, राजनीतिक एवं धार्मिक अनुदार प्रवृत्ति के लोगों ने उनके एक शिष्य से जासूसी कराकर ईसा को मृत्युदंड दिया। यह करुण दृश्य बना। फिर भी, उनके अनुयायियों ने इस घटना को जनता में ‘पाप से मुक्ति' के रूप में प्रभावी ढंग से प्रसारित किया। उपदेशों में समानता
भगवान महावीर और महात्मा ईसा के अनेक उपदेशों में समानता पाई जाती है। तथापि, दोनों की अनेक मान्यतायें नाम-रूपेण ही समान लगती हैं, परिभाषात्मक रूप से उनका रूप भिन्न-भिन्न पाया जाता है। इस सम्बन्ध में कुछ बिन्दु निम्नलिखित हैं