Book Title: Sramana 2006 07
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 12
________________ प्राकृतिक-महाकाव्यों में ध्वनि-तत्त्व : ५ इसी क्रम में महाकवि प्रवरसेन द्वारा आयोजित अलंकार से वस्तुध्वनि का एक और मनोरम चमत्कार इस गाथा में दर्शनीय बन पड़ा है: ववसाअरइपओसो रोस-गइंददिढसिंखलापडिबंधो। कह कह वि दासरहिणो जअकेसरिपंजरो गओ घणसमओ।। (आश्वास १: गाथा१४) यहाँ राम के वर्षाकाल बिताने का वर्णन है। कविश्रेष्ठ प्रवरसेन ने रूपक अलंकार के द्वारा यह निर्देश किया है कि वर्षाकाल का समय राम के पुरुषार्थरूप सूर्य के लिए मजबूत जंजीर का बन्धन हो गया था। अर्थात्, वर्षावास की अवधि में राम न तो पुरुषार्थ का प्रदर्शन कर सकते थे, न ही अपने रोष को व्यक्त कर सकते थे और न विजय के लिए अभियान ही कर सकते थे। अतएव, महाकवि के इस वर्णन में रूपक अलंकार के माध्यम से राम की किंकर्तव्यविमूढता-रूप वस्तु की व्यंजना हुई है, जो अलंकार से वस्तुध्वनि का उदाहरण है। वाक्पतिराज (प्रा. वप्पइराअ) आठवीं शती के प्राकृत-महाकवियों में पांक्तेय हैं। इनके कलोत्तीर्ण महाकाव्य 'गउडवहो' में ध्वनि-तत्त्वों का भूरिश: विनियोग, विविधता और बहुलता, दोनों दृष्टियों से हुआ है। महाकवि के इस काव्य में अलंकार से वस्तुध्वनि और वस्तु से अलंकारध्वनि की विशेष आयोजना की गई है। यहाँ अलंकार से अर्थशक्त्युद्भववस्तुध्वनि से युक्त एक गाथा उपन्यस्त है: गणवइणो सइ-संगअ-गोरी-हर-पेम्म-राअ-विलिअस्स । दंतो वाम-मुहद्धंत-पुंजिओ जअइ हासो व्व।। (मंगलाचरण : गाथा-सं.५४) यहाँ महाकवि ने निर्देश किया है कि सदा साथ रहनेवाले अपने मातापिता पार्वती और शिव के प्रेम और अनुराग से लजीले गणेश का दाँत उनके मनोहर मुख के कोर पर संचित या पंजीभूत हास की तरह प्रतीत होता है। प्रस्तुत सन्दर्भ में ‘हासो व्व' इस उपमा (अलंकार) द्वारा गणेश की सर्वांगगौरता-रूप वस्तु ध्वनित है। इस क्रम में महाकवि वप्पइराअ की वाक्यगतकविप्रौढोक्तिमात्रसिद्ध वस्तु से अलंकारध्वनि की एक मनोहारी योजना इस गाथा में द्रष्टव्य है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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