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सन्दर्भ-सूची
गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण (पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, १९९६), पृ० ९७.
कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउद्दस जीवद्वाणा पण्णत्ता, तं जहा -मिच्छादिट्ठी, सासायणसम्मदिट्ठी, सम्मामिच्छदिट्ठी ।
१.
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४.
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६.
७.
: श्रमण / जनवरी - जून २००२ संयुक्तांक
कि दर्शन के क्षेत्र में तो तर्क की स्वीकृति सहजरूपेण हो जाती है; किन्तु धर्म के क्षेत्र में श्रद्धा का स्थान उच्च है। अतः ये स्थापनाएँ विद्वानों के लिए तो उपयोगी हो सकती हैं किन्तु धर्म श्रद्धालुओं के लिये नहीं। उन्हें तो फिर धर्म-ग्रन्थों पर भी सन्देह होने लगेगा जो व्यावहारिक दृष्टि से पूर्णतः उचित नहीं कहा जा सकता।
८.
अविरयसम्मादिट्ठी, विरयाविरए पमत्तसंजए अप्पमत्तसंजए निअट्टिबायरे अनियट्टिबायरे सुहुमसंपराए - उवसामए वा खवए वा उवसंतमोहे, खीणमोहे, सजोगी केवली, अयोगी केवली । समवायाङ्ग (आगम प्रकाशन, व्यावर), समवाय १४.
मिच्छाद्दिट्ठी सासायणे य तह सम्ममिच्छदिट्ठी य
अविरयसम्मद्दिट्ठी विरयाविरए पत्ते य । ।
तत्तो ये अप्पमत्तो नियट्टि अनियट्टिबारे सुहुमे ।
उवसंतखीणमोहे होइ सजोगी अजोगी य।। आवश्यकनिर्युक्ति, नियुक्ति संग्रह,
पृ० १४०.
तत्थ इमातिं चोद्दस गुणद्वाणाणि
अजोगिकेवली नाम
सेलसीपाडवन्नओ, सो य तीहि जोगेहि मुक्को सिद्ध भवति ।। - आवश्यकचूर्णि (जिनदासगणि) उत्तर भाग, रतलाम, १९२९, पृ० १३३-१३६. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र (सिद्धसेनगणिकृत भाष्यानुसारिणिका समलंकृत... सं० हीरालाल 'रसिकलाल कापड़िया) ९.३५ की टीका.
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श्री तत्त्वार्थसूत्रम् (टीका - हरिभद्र), ऋषभदेव केशरीमल श्वेताम्बर संस्था, रतलाम सं० १९९२, पृ० ४६५.
षट्खण्डागम (सत्प्ररूपणा ) प्रका०, जैन संस्कृति रक्षक संघ, सोलापुर, पुस्तक १, द्वितीय संस्करण, सन् १९७३, पृ० १५४ से २०१.
मूलाचार, पृ० २७३-७९ माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला (२३) मुम्बई ई० सन् १९३०.
९.
भगवती आराधना, भाग - २, (सम्पा० कैलाशचन्द्र शास्त्री), पृ० ९८०. १०. सर्वार्थसिद्धि (भारतीय ज्ञानपीठ) सूत्र १.८ की टीका तथा ९.१२ की टीका.
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