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प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन . : ४७ (३) कुशलाणुबंधिचतुःशरण-वीरभद्र, (४) चन्द्रवेध्यक, (५) तन्दुलवैचारिक, (६) देवेन्द्रस्तव-ऋषिपालित, (७) भक्तपरिज्ञा-वीरभद्र, (८) महाप्रत्याख्यान, (९) वीरस्तव, (१०) संस्तारक, (११) अङ्गविद्या, (१२) अजीवकल्प, (१३) आराधनापताका-वीरभद्र, (१४) गच्छाचार, (१५) ज्योतिषकरण्डक-पादलिप्त, (१६) तिथिप्रकीर्णक, (१७) तीर्थोद्गालिक, (१८) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, (१९) मरणसमाधि, (२०) सिद्धप्राभृत, (२१) अङ्गचूलिका-यशोभद्र, (२२) कवचजिनचन्द्र, (२३) जीवविभक्ति, (२४) पर्यन्ताराधना, (२५) पिण्डविशुद्धि-जिनवल्लभ, (२६) वङ्गचूलिका-यशोभद्र, (२७) योनिप्राभृत-धरसेन, (२८) सुप्रणिधान (वृद्ध) चतुःशरण, (२९) सारावली, (३०) जम्बूचरित्र (जम्बूपइन्ना) पद्मसूरि। जिन प्रकीर्णकों के आगे कर्ता का नाम नहीं है उनके कर्ता अज्ञात हैं। इसी लेख में प्रकाशित प्रकीर्णकों की दूसरी सूची में ऋषिभाषित का नाम भी है पर उसे सामान्य क्रम में नहीं रखा गया है। यदि हम उसे भी मानें तो यहाँ ३१ प्रकीर्णक हो जाते हैं। इनमें से तिथिप्रकीर्णक, अङ्गचूलिका, कवच, पिण्डविशुद्धि, बङ्गचूलिका, योनिप्राभृत एवं जम्बूचरित्र (जम्बूपइन्ना) इन सातों का उल्लेख पइण्णयसुत्ताइं में नहीं है। इन्हें भी शामिल कर लेने पर ३६ + ७ = ४३ उपलब्ध प्रकीर्णक हो जाते हैं।
विषयवस्तु
उपलब्ध प्रकीर्णकों में नन्दनमुनि आराधित आराधना (संस्कृत) प्रकीर्णक के अतिरिक्त समस्त प्रकीर्णक प्राकृत भाषा में रचे गये हैं, आकार की दृष्टि से सबसे छोटा आराधनाकुलक है जिनमें मात्र ८ गाथाएं हैं और सबसे बड़े आकार का अङ्गविद्या है जिसमें ९००० ग्रन्थांक एवं ६० अधिकार हैं। इनमें आतुरप्रत्याख्यान नाम के तीन प्रकीर्णक हैं तथा चतुःशरण, आराधनापताका और मिथ्यादुष्कृतकुलक शीर्षक से दो-दो प्रकीर्णक हैं।
प्रकीर्णकों की विषयवस्तु को देखा जाये तो अधिकांश प्रकीर्णक समाधिमरण को प्रतिपादित करते हैं पर समाधिमरण के अतिरिक्त निमित्त, मुहूर्त, खगोल, भूगोल, जैन इतिहास, शरीरविज्ञान, गुरु-शिष्य सम्बन्ध आदि पर प्रकाश डालने वाले भी प्रकीर्णक हैं। यहाँ हम उपलब्ध प्रकीर्णकों की विषयवस्तु का संक्षिप्त उल्लेख करेंगे। इसे दो भागों में विभक्त किया गया है। पहले समाधिमरण से सम्बन्धित प्रकीर्णकों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है।
१. समाधिमरण-- आगममान्य दस प्रकीर्णकों में यह सबसे बड़ा है। इसमें ६६१ गाथाएँ हैं। ग्रन्थकार के अनुसार (१) मरण विभक्ति, (२) मरण विशोधि, (३) मरण समाधि, (४) संल्लेखनाश्रुत, (५) भक्तपरिज्ञा, (६) आतुरप्रत्याख्यान, (७) महाप्रत्याख्यान और (८) आराधना, इन आठ प्राचीन श्रुतग्रन्थों के आधार पर प्रस्तुत प्रकीर्णक की रचना हुई है। इसमें अन्त समय की आराधना का वर्णन है। इसके रचनाकार अज्ञात हैं। मरणसमाधि का उल्लेख नन्दी एवं पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है। इसमें मरण के अतिरिक्त आचार्य के ३६ गुणों,
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