Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 176
________________ जैन जगत् : १७१ बजे एक श्रद्धाञ्जलि सभा का आयोजन किया गया जिसमें कलकत्ता जैन समाज व विभिन्न संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे। आचार्य विजय इन्द्रदिन्नसूरिजी स्वर्गस्थ ___ तपागच्छीय श्री आत्मवल्लभ समुद्रपट्ट-परम्परा के गच्छाधिपति श्री विजयइन्द्रदिनसूरिजी म.सा० का ४ जनवरी २००२ को अम्बाला में निधन हो गया। आपका जन्म वि०सं० १९८० में बड़ोदरा स्टेट के मालपुरा ग्राम में हुआ था। वि०सं० १९९९ में आपने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० २०३४ में आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया। आपने अपने दीक्षा पर्याय के ६ दशकों तक बड़ी संख्या में परमार क्षत्रियों को जैनधर्म में दीक्षित किया। युगपुरुष भंवरलाल जी नाहटा दिवंगत जैन साहित्य महारथी, युगपुरुष भंवरलालजी नाहटा का ११ फरवरी २००२ को कोलकाता में निधन हो गया। सन १९११ बीकानेर में जन्मे नाहटाजी ने सात दशकों तक जैन-साहित्य के अध्ययन-संशोधन और लेखन के क्षेत्र में नये आयाम प्रस्तुत किये। उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये उक्त कार्यों को जारी रखना ही उन्हें सच्ची श्रद्धाञ्जलि है। श्रमण का प्रस्तुत अंक आपकी स्मृति में प्रकाशित है। आचार्य कलापूर्णसूरिजी महाराज का स्वर्गवास सुप्रसिद्ध अध्यात्मयोगी तपागच्छीय आचार्य विजयकलापूर्णसूरि का १६ फरवरी २००२ को राजस्थान प्रान्त के जालोर जिलान्तर्गत स्थित केशवणा नामक स्थान पर निधन हो गया। आपका जन्म वि०सं० १९८० में फलौदी (राजस्थान) में हुआ था। फलौदी में ही आपने दीक्षा प्राप्त की तथा सं० २०२९ में आचार्य बने। आचार्यश्री के पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार गुजरात प्रान्त के पाटन जिले में अवस्थित शंखेश्वर तीर्थधाम में आगम मन्दिर के निकट सम्पन्न हुआ जिसमें बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित रहे। प्रो० लक्ष्मीनारायण तिवारी का निधन श्रमण संस्कृति के विशेषज्ञ तथा प्राच्य भारतीय भाषाओं के तलस्पर्शी विद्वान् प्रो० लक्ष्मीनारायण तिवारी का दिनांक १० मार्च को निधन हो गया। ज्ञातव्य है आप लम्बे समय तक सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से जुड़े रहे और वहीं से अवकाश भी ग्रहण किया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ से आपका अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध रहा और समय-समय पर यहाँ पधारते रहे। विद्यापीठ परिवार की ओर से प्रो० तिवारी को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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