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साहित्य-सत्कार : १७५
हिन्दी अथवा गुजराती अर्थ भी दिया गया होता तो पुस्तक की उपयोगिता और बढ़ गई होती क्योंकि स्याद्वादमञ्जरी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी है। इस कार्य के लिए सम्पादक बधाई के पात्र हैं। पुस्तक सुन्दर और छपाई सुस्पष्ट है।
- डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा श्रीसागरानन्दसूरिशतक, रचयिता-सुमन्तभद्रजी, शब्दार्थ- श्रीमती सुधासुमन्त; आकार-डिमाई, पृष्ठ १२+१००; प्रथम संस्करण- ई० सन् २००२; प्रकाशक- प्रज्ञा पारमिता प्रकाशन, पोस्ट बाक्स नं० १२, चिंचवड़, पूना - ४११०३३; मूल्य ५१/- रुपये।
प्रस्तुत पुस्तक आगमोद्धारक आचार्य सागरानन्दसूरि जी का जीवन-चरित्र है जिसे हिन्दी भाषा में काव्य के माध्यम से श्री सुमन्तभद्रजी ने आचार्यश्री की ५४वीं पुण्यतिथि पर प्रस्तुत किया है। मालवशिरोमणि पंन्यास श्री हर्षसागर जी म० तथा उनके शिष्य श्री विरागसागर जी म० इस रचना के प्रेरक रहे हैं। श्री सुमन्तभद्र जी द्वारा अत्यन्त सरल और सारगर्भित शब्दों में रचित इस काव्य का शब्दार्थ श्रीमती सुधा सुमन्त ने किया है। कृति के प्रारम्भ में प्रकाशकीय के अन्तर्गत श्रीमती सुमन्त ने आचार्यश्री की संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित जीवनी प्रस्तुत की है। इस कृति से जनसामान्य जीवनचरित्र से परिचित होकर निःसन्देह उससे प्रेरणा प्राप्त करेगा। आज इस बात की आवश्यकता है कि इसी प्रकार वर्तमान रूप के अन्य प्रभावक आचार्यों के जीवन के बारे में भी सामग्री प्रस्तुत की जाये। ग्रन्थ की साज-सज्जा आकर्षक तथा मुद्रण सुस्पष्ट है। ऐसे सुन्दर प्रकाशन हेतु इसके लेखक, प्रकाशक तथा प्रकाशन में सहयोगी तीनों ही धन्यवाद के पात्र हैं।
-- शिवप्रसाद अनुसन्धान-१९, सम्पादक- आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरि, आकार-डिमाई, पृष्ठ ४+१६४; प्रकाशनवर्ष- ई०सन् २००२, प्रकाशक- कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम जन्मशताब्दी स्मृति संस्कार शिक्षणनिधि, अहमदाबाद।
प्राकृत भाषा और जैन साहित्य विषयक सम्पादन और संशोधन के क्षेत्र में आज एकमात्र पत्रिका है अनुसंधान। गुजराती भाषा और देवनागरी लिपि में आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरि जी म०सा० के सम्पादकत्व में प्रकाशित हो रही इस पत्रिका का प्रत्येक अंक जैन विद्या के मूर्धन्य मनीषियों के आलेखों से सज्जित हो रही है। इसी कड़ी का यह १९वां अङ्क है। इसमें सर्वप्रथम आलेख के रूप में सुप्रसिद्ध श्रावक कवि ऋषभदासकृत व्रतविचाररास नामक कृति को सम्पादित कर आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरि जी ने प्रस्तुत किया है। स्तवनचौबीसी, गौतमस्वामीन स्तवन और गौतम सुधर्म गणधर भास ये तीनों लघु कृतियाँ है जिन्हें मुनि जिनसेनविजय जी ने सम्पादित किया
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