Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 183
________________ १७८ : श्रमण / जनवरी - जून २००२ संयुक्तांक यह ग्रन्थ जगद्गुरु स्वामी रामानन्दाचार्य की सप्तशताब्दी महोत्सव के सुअवसर पर रचित स्वामी रामानन्द को अवसरानुकूल श्रद्धाञ्जलि है। विश्वास है कि इस रचना का हिन्दी पाठक स्वागत करेंगे। डॉ० शितिकंठ मिश्र हनुमत्कवितावली (कवित्त संग्रह), रचनाकार - डॉ० मंगला प्रसाद 'अपरूप', प्रकाशक- कल्लोल प्रकाशन, नासिरपुर, वाराणसी, (प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय हनुमान संगोष्ठी के अवसर पर वितरण हेतु) प्रथम संस्करण, सन् २००१ ई०, पृ०सं० २६ । इसमें श्रीराम के अनन्य भक्त महावीर हनुमान की स्तुति पचास कवित्तों में की गई है। वे कर्म, ज्ञान और भक्ति मार्गों के परमाचार्य हैं। उनके अलौकिक व्यक्तित्व में तीनों साधनाओं का अनुपम संगम है। उनके उपकार भगवान् राम पर इतने हैं कि वे कहते हैं 'देबो न कछु रिनियाँ हौं, धनिक तु पत्र लिखाउ ।' भगवान् के महाजन भक्त प्रवर श्रीहनुमान देश में दिव्य विभूतियों के भयावह पतन को देखकर भी थके-थके उदासीन भाव से श्रीराम की लीलाभूमि की दुर्दशा चुपचाप कैसे सहन कर रहे हैं ? इसी आशंका से उद्वेलित होकर डॉ० मंगला प्रसाद ने हनुमान को जाम्बवंत की तरह इन कवित्तों के माध्यम से जगाने का प्रयास किया है। प्रारम्भिक शारदा स्तुति की अन्तिम पंक्ति ध्यातव्य है- 'वित्त की कवित्त से है प्रकट तनातनी । ' तृतीय कवित्त में देश की वर्तमान दुर्दशा का मार्मिक चित्र कवि खींचा है 'मान मद मोह मात्सर्य से सताये नर, फिरते हैं कालनेमि जहाँ तहाँ कितने । ' श्री हनुमान को जोश दिलाता हुआ कवि उनके पूर्व अलौकिक कार्यों की राम सुग्रीव मिताई, समुद्र लंघन, सीता खोज, लंका दहन, बाल्यावस्था में सूर्य का निगलना, लक्ष्मण शक्ति के समय संजीवनी लाना, अहिरावण को मारने आदि कार्यों का ओजपूर्ण कवित्त शैली में वर्णन करता है। नवें कवित्त में काव्यरचना में छंद के महत्त्व पर वह लिखता है- 'कविमन व्याकुल है छंद रचना के हेतु फिरती स्वच्छन्द हिन्दी कविता सरस्वती ।' लेखक बचपन से हनुमान भक्त था, बाल्यावस्था में माँ ने भय से मुक्ति का मन्त्र दिया था - 'डरने का बात क्या है ? प्रान! पिता के सपूत, डर लगे, टेर लेना हनुमान भैया ।' वह उपालंभ भी देता है' 'कलि की जवानी में क्या कपि तुम वृद्ध हुए । ' वे बार-बार प्रार्थना करते हैं- 'आधि व्याधि अनगिन घेर है उपाधि कपि, संकट विकट घिरे संकटमोचन हो ।' कवि की कविता में हार्दिक भक्ति है, देश की वर्तमान दुर्दशा का मार्मिक वर्णन है और संकटमोचन से मुक्ति की प्रार्थना है। आशा है आस्तिकजनों में इसका प्रचार होगा। Jain Education International. For Private & Personal Use Only डॉ० शितिकण्ठ मिश्र www.jainelibrary.org

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