Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 172
________________ जैन जगत् : १६७ जाता है। चुरु (राजस्थान) में सन् १९१९ में जन्मे श्री मोहन भाई १८ वर्ष की उम्र से ही स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े और देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् उन्होंने समाज सेवा का क्षेत्र चुना एवं बाल शिक्षण व संस्कार को अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया और धीरे-धीरे अपने कठिन प्रयासों से पूरे बीकानेर संभाग को शिक्षा के क्षेत्र में समृद्ध बना दिया। महात्मा गांधी और आचार्य तुलसी को अपना आदर्श मानने वाले श्री मोहनभाई बच्चों को भगवान् के समकक्ष दर्जा देते हुए उन्हें राष्ट्र का भविष्य मानते हैं। वे मानते हैं कि नई पीढ़ी के सही दिशादर्शन के लिये शिक्षकों व अभिभावकों को उचित प्रशिक्षण व प्रेरणा की आवश्यकता है। दिल्ली में ग्रीष्मकालीन अध्ययनशाला सम्पन्न दिल्ली १६ जून : भोगीलाल लहेरचन्द इंस्टिट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली द्वारा प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी प्राकृतभाषा एवं साहित्य, जैन धर्म व दर्शन और पाण्डुलिपि विज्ञान एवं शोध प्रविधि इन तीन विषयों पर अलग-अलग तीन-तीन सप्ताहों की एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का प्रारम्भ २६ मई को हुआ। उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के निदेशक प्रो० व्ही० कुटुम्ब शास्त्री अध्यक्ष तथा प्रो० प्रेम सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उक्त विषयों में देश के विभिन्न भागों से पधारे ३६ प्रतिभागियों ने भाग लिया। दिनांक १६ जून को कार्यशाला की समाप्ति पर समापन समारोह का आयोजन रहा जिसमें भारत सरकार के योजना विभाग के सदस्य माननीय श्री सोमपाल शास्त्री मुख्य अतिथि रहे। इस अवसर पर संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा इससे जुड़े अन्य विशिष्ट जन बड़ी संख्या में उपस्थित थे। भगवान् सुपार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक दिवस समारोह सम्पन्न . वाराणसी २२ जून, भदैनी स्थित भगवान् सुपार्श्वनाथ के दि० जैन मन्दिर में ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी शनिवार तदनुसार २२ जून २००२ को भगवान् सुपार्श्वनाथ का जन्म-तप कल्याणक दिवस मनाया गया जिसमें विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने दर्शन-पूजन का लाभ लिया। जैनधर्म की सर्वोत्तम पुस्तकों पर पुरस्कार की घोषणा भगवान् महावीर फाउण्डेशन, चेन्नई ने भगवान् महावीर के २६००वें जन्म कल्याणक महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में जैनधर्म एवं दर्शन की सर्वोत्तम पुस्तकों पर दो लाख रुपये पुरस्कार स्वरूप प्रदान करने का निर्णय किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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