Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 98
________________ समराइच्चकहा में व्यवसायों का सामाजिक आधार : ९३ ३. वही, ८,७३४-३५; हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० २८४. ४. उत्तराध्ययनसूत्र २५-३१, विपाकसूत्र ४, पृ० ३३, आचारांगनियुक्ति १९-२७, उद्धृत- जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, वाराणसी १९६५, पृ० २२३. ५. समराइच्चकहा, ४, पृ० ३४८. निशीथचूर्णी ३, पृ० ४१३. 'जहा बंभण जाति कुलेसु खत्तिसु सग्ग कुला, आदिसदातो वइस-सुदेसु वि।' यादव, समराइच्चकहा : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ९२. ७. ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत् बाहूराजन्यः कृतः। उरू तदस्य यदवैश्यः पदभ्याम् शूद्रोऽजायत्।। ऋग्वेद, पुरुषसूक्त, १०.९०,१२. ८. 'चातुर्वयं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः'। श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४, श्लोक १३. ९. आदिपुराण, ३८, ४५-४६. १०. आदिपुराण, १६, १८४-८६. ११. समराइच्चकहा, ७.७१७. १२. वही, ७, पृ० ७१७ 'हट्टाओ अहं किंपि भोयणजायं तथा ३, १७२-चेलादिभाण्डं. . १३. वही, ४, पृ० २६८; ५, पृ० ५२३. १४. इपिग्राफिका इण्डिका, २०, पृ० ५५. १५. समराइच्चकहा, ६, पृ० ५०७. १६. वही, २, पृ० १०५, १३-१४, ११६-१७-१८, १२१-२२, १२४, १३२; ३, १७२, ४, पृ० २३७, २४०, ३५९-६०, ७, पृ० ६६८. १७. वही, ५, पृ० ४०३, ४१६, ४२६, ४३२, ४७६, ४७९; ६, पृ० ४९९, ५०६, ५२२, ५२४; ७, पृ० ६१०. १८. वही, ६, पृ० ५४१-४२, ५५२, ७, पृ० ६५२-५३-५४, ६५८, ६६१, ६६८. १९. वही, ३, पृ० १८४; ५, पृ० ३९८; ८, पृ० ८०७. २०. वही, १८७; ४, पृ० २४०, २७९, ३५०, ३५३; ६ पृ० ५७८, ५८३; ८ पृ० ८२८-२९, ९ पृ० ८७, ९०४, ९२५, ९३६, ९५३-५४. २१. वही, ४, पृ० २३४, २३७, ३२६; ६ पृ० ४९४-९५-९६, ५५०. २२. वही, ४, पृ० २७८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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