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११४ : श्रमण / जनवरी - जून २००२ संयुक्तांक
श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनसिंहसूरिभिः
इसी तिथि और वारयुक्त एक प्रतिमा धर्मनाथ की भी प्राप्त हुई है। इस पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार यह प्रतिमा भी जिनसिंहसूरि द्वारा ही प्रतिष्ठापित हुई थी। वर्तमान में यह प्रतिमा पंचायती मन्दिर, लस्कर - ग्वालियर में संरक्षित है। *
यद्यपि उपरोक्त अभिलेखों में कहीं भी खरतरगच्छ की आद्यपक्षीयशाखा का उल्लेख नहीं है बल्कि वि०सं० १६२७ की पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में तो प्रतिमाप्रतिष्ठापक जिनसिंहसूरि को खरतरगच्छ की बृहत्शाखा से सम्बद्ध बतलाया गया है, परन्तु इस काल में खरतरगच्छ की आद्यपक्षीयशाखा को छोड़कर किन्हीं अन्य शाखाओं में इस नाम के कोई आचार्य नहीं हुए हैं अतः उक्त प्रतिमालेखों में उल्लिखित जिनसिंहरि को खरतरगच्छ की आद्यपक्षीयशाखा से सम्बद्ध मानने में कोई बाधा नहीं है।
जिनसिंहसूर द्वारा प्रतिष्ठापित एक अन्य प्रतिमा भी प्राप्त हुई है, जो पंचायती मन्दिर जयपुर में संरक्षित है। इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में जिनसिंहसूरि का उल्लेख करते हुए उनके गुरु जिनदेवसूरि और प्रगुरु जिनसमुद्रसूरि का भी नाम दिया गया है। चूंकि इस लेख का कुछ भाग घिस गया है, अतः यह प्रतिमा कब स्थापित की गयी, यह ज्ञात नहीं हो पाता। चूँकि इनके पट्टधर जिनचन्द्रसूरि छारा प्रतिष्ठापित सर्वप्रथम जिनप्रतिमा वि०सं० १६२९ की है, अतः यह निश्चय ही वि०सं० १६३९ के पूर्व की होगी। महो० विनयसागर ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है
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सार्वभौमराजेश्वर राजाधिराज महाराज श्रीराजसिंह विजयराज्ये वर्षे वैशाख मासे सितपक्षे भाषणसंतानीय ऊकेशवंशे भांडागारिकगोत्रे भंडारी नगराज पुत्र भं० अमरा तत्पुत्र माना नारायण नरसिंह सोमचन्द संगार अचलदास कपूरदासादिपरिवार श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं आद्यपक्षीय श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनदेवसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिभिः श्रीमज्ज............
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वि०सं० १६३९ से १६७२ तक के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनके शिष्य जिनचन्द्रसूरि का नाम मिलता है। इनका विवरण इस प्रकार है :
रत्नचन्द
के
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