Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 167
________________ १६२ : श्रमण / जनवरी - जून २००२ संयुक्तांक प्रवचन एवं ध्यान-साधना का कार्यक्रम चल रहा है। प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर में तीन दिवसीय मौन, ज्ञान- ध्यान शिविर सम्पन्न प्राच्य विद्यापीठ में परम श्रद्धेय गुरु भानुविजयजी महाराज (पाटण- गुजरात) एवं डॉ० सागरमलजी के मङ्गल सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में सर्वमङ्गल परिवार (भोपाल-इन्दौर-उज्जैन- शाजापुर) के सौजन्य से दिनांक २८, २९ और ३० मार्च २००२ को आयोजित तीन दिवसीय मौन, ज्ञान-ध्यान शिविर सानन्द सम्पन्न हुआ। इस शिविर में स्थानीय धर्मप्रेमियों के अतिरिक्त गुजरात एवं मध्यप्रदेश के विभिन्न नगरों से पधारे लगभग १२५ शिविरार्थियों ने सम्मिलित होकर ज्ञान-ध्यान साधना का लाभ लिया। शिविर की दिनचर्या प्रतिदिन प्रातः ४.३० बजे से आरम्भ होकर रात्रि को १०.०० बजे सम्पन्न होती थी, जिसके विभिन्न सत्रों में प्रवचन के अतिरिक्त ध्यान, योगासन एवं प्राणायाम एवं रेकी के विशेषज्ञों की सेवाओं का शिविरार्थियों ने उत्साहपूर्वक लाभ लेकर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त किया । अन्तिम दिन समापन समारोह के अवसर पर शिविरार्थियों ने शिविर के अपने अनुभव बताये। साथ ही भाव-विभोर होकर गुरुवर भानुविजयजी महाराज एवं सम्माननीय डॉ० सागरमलजी साहब के प्रति श्रद्धापूर्वक नमन किया और श्री एस०डी० कोटक (ध्यान विशेषज्ञ, गुजरात), श्री चन्द्रशेखरजी (योग एवं प्राणायाम विशेषज्ञ), डॉ० सुधा जैन (प्रेक्षा ध्यान विशेषज्ञ - पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी), श्रीमती चित्रा बहन (रेकी मास्टर - देवास), प्रज्ञा बहन- गुजरात तथा श्री विमल भण्डारी - भोपाल (भक्ति गीतों के गायक) के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित की और सर्वमङ्गल परिवार के प्रत्येक सदस्य श्री शेखरजी गेलड़ा, इन्दौर, श्री सुरेशभाई देशलेहरा- इन्दौर, श्री यशवंत भाई- उज्जैन, श्री शान्तिलालजी - भोपाल, श्री नरेन्द्रभाई, श्री नन्दलालजी शाजापुर - के प्रति इस तीन दिवसीय व्यवस्थित, समुचित व सुन्दर आयोजन के लिये धन्यवाद ज्ञापित किया । महापुरुषों व अपने पूर्वजों के इतिहास को दोहराना आवश्यक साध्वी डॉ० अर्चना जीरा (पंजाब) "वह कौम हमेशा जिन्दा रहती है जो अपने पूर्वजों को याद रखती है इसके विपरीत उनका अस्तित्व शीघ्र मिट जाता है जो अपने बुजुर्गों को भूल जाती हैं। इसलिए महापुरुषों की जन्म जयन्तियों व पुण्य स्मरण के बहाने अपने पूर्वजों के इतिहास को अवश्य दोहराना चाहिए, क्योंकि आने वाली पीढ़ियां उनके महान् चरित्र से प्रेरणा व नसीहत प्राप्त करती हैं। प्रधानाचार्य पूज्यश्री सोहनलालजी महाराज व आचार्यसम्राट् श्री आत्मारामजी महाराज अपने समय के मूर्धन्य विद्वान्, तपस्वी, प्रवक्ता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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