Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 124
________________ खरतरगच्छ आद्यपक्षीयशाखा का इतिहास .. ११९ के अन्तिम पट्टधर आचार्य जिनचन्द्रसूरि का वि०सं० २०००/ ई०स० १९४४ में देहान्त हो गया । " महो० विनयसागरजी की सूचना के अनुसार वर्तमान में इस शाखा से सम्बद्ध कुछ यति विद्यमान है। ११९ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के मुनिजनों का जो विद्यावंशवृक्ष तैयार होता है, वह इस प्रकार है : -> वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरिजिनचन्द्रसूरि अभयदेवसूरि (नवाङ्गीटीकाकार) → जिनवल्लभसूरि- → जिनदत्तसूरि मणिधारी जिनचन्द्रसूरि → जिनपतिसूरिजिनेश्वरसूरि जिनप्रबोधसूरि जिनचन्द्रसूरि जिनकुशलसूरिजिनपद्मसूरि → जिनलब्धिसूरिजिनचन्द्रसूरि → जिनोदय-सूरि →> -> → जिनराजसूरि जिनभद्रसूरि (खरतरगच्छ - मुख्यशाखा) जिनवर्धनसूरि (खरतरगच्छ-पिप्पलकशाखा के प्रवर्तक) जिनचन्द्रसूरि Jain Education International जिनसागरसूरि जिनसमुद्रसूरि जिनदेवसूरि (खरतरगच्छ-आद्यपक्षीयशाखा के प्रवर्तक) सुमतिहंस (वि०सं० १६८६-१७३० के मध्य विभिन्न कृतियों के रचनाकार) 1 I जिनसिंहसूरि ( वि० सं० १६१७-२७) प्रतिमालेख / जिनचन्द्रसूरि 'प्रथम' ( वि० सं० १६३९-७२) प्रतिमालेख जिनहर्षसूरि (वि० सं० १७१२) प्रतिमालेख जिनलब्धिसूरि (वि०सं० १७५० में नवकारमहात्म्यचौपाई के कर्ता) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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