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गांधी चिन्तन में अहिंसा एवं उसकी प्रासंगिकता
(जेहादी हिंसा के सन्दर्भ में)
राजेन्द्र सिंह गुर्जर
गांधी-चिन्तन का केन्द्रीय तत्त्व सत्य व अहिंसा है। सत्य का अर्थ है - जिसकी सत्ता है, जो शाश्वत है। सत्य को एक निरपेक्ष सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया। उन्होंने सत्य की महत्ता को स्वीकारते हुए ईश्वर सत्य है, के स्थान पर सत्य ही ईश्वर है, कहना अधिक उपयुक्त समझा। गांधी जी के अनुसार निरपेक्ष सत्य सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान और शाश्वत है। अहिंसा का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि अहिंसा हिंसा न करना ही नहीं है बल्कि मनसा, वाचा व कर्मणा से किसी भी जीव को हानि या ठेस न पहुँचाना है। व्यक्ति सभी जीवों के प्रति सदैव दयालुतापूर्ण व्यवहार करे।
समग्र रूप में देखा जाये तो गांधी जी की विचारधारा, उनका चिन्तन सत्य तथा अहिंसा पर टिका हुआ था। उनकी विचारधारा सत्य और लोककल्याण की ओर ले जाने वाली थी। अत्याचार के विरुद्ध अहिंसा तथा सत्य को ही प्रभावशाली एवं अमोघ शस्त्र उन्होंने स्वीकार किया।
· गांधी जी के अनुसार अहिंसा वह साधन है जिसके द्वारा सत्य की साधना की जा सकती है। गांधी जी ने स्पष्ट किया कि सत्य की प्राप्ति के लिए अहिंसा अनिवार्य साधन है। अत: अहिंसा स्वयं में साध्य न होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसके बिना सत्य की साधना ही असम्भव है। अहिंसा गांधीजी का आविष्कार नहीं है बल्कि अहिंसा का आदर्श भारतीय उपनिषदों, बुद्ध तथा महावीर स्वामी के दर्शन में शताब्दियों पहले प्रतिपादित किया गया था। अहिंसा के सम्बन्ध में गांधीजी का योगदान यह है कि उन्होंने नवीन सन्दर्भ में अहिंसा के सिद्धान्त को परिमार्जित किया और मानवीय आचार के एक जीवन्त नियम के रूप में उसकी पूर्ण व्यवस्था की।
स्थूल और परम्परागत अर्थ में अहिंसा एक नकारात्मक शब्द है जिसका अर्थ हैं, 'हिंसा न करना' अथवा 'हिंसा का अभाव'। किन्तु गांधीजी अहिंसा के नकारात्मक अर्थ को अपूर्ण मानते थे। उन्होंने अहिंसा के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पक्षों *. शोधच्छात्र, गांधी अध्ययन केन्द्र, राजनीति विज्ञान विभाग, राजस्थान
विश्वविद्यालय, जयपुर.
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