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११० : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक से बहादुर है; किन्तु वह व्यक्ति जो अपनी कनिष्ठिका को उठाये बिना भी और बिना किसी भय के मृत्यु का सामना करने के लिए तैयार है, निश्चित रूप से अधिक बहादुर हैं। जब तक कोई व्यक्ति अपने हाथ में तलवार रखना चाहता है, तब तक यह स्पष्ट है कि उसने पूर्ण निर्भयता की स्थिति प्राप्त नहीं की है। दूसरी ओर ऐसे व्यक्ति को कोई भय प्रभावित कर ही नहीं सकता जिसने स्वयं को अहिंसा की तलवार से सुसज्जित कर लिया है।"१०
गांधीजी का मत है कि अहिंसा के साधक के सामने एक ही भय होता है और वह है ईश्वर का भय। अहिंसक व्यक्ति को नश्वर शरीर की तुलना में आत्मा की शाश्वतता में विश्वास होता है। “आत्मा की शाश्वतता का ज्ञान हो जाने मात्र से वह अपने नश्वर शरीर का मोह छोड़ देता है और वह इस सत्य को जान लेता है कि हिंसा द्वारा नश्वर और स्थूल चीजों की ही सुरक्षा की जा सकती है, जबकि अहिंसा द्वारा आत्मा और आत्मसम्मान की रक्षा की जा सकती है।' ११
गांधीजी ने स्वीकार किया कि समस्त व्यक्ति अहिंसा के पालन में समान रूप से सक्षम नहीं हो सकते, क्योंकि अहिंसा के लिए आवश्यक निर्भीकता और आत्मबल को सब व्यक्तियों में समान रूप से उत्पन्न नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार किसी व्यक्ति के अहिंसक आचरण की प्रकृति उसके पास उपलब्ध आत्मबल और निर्भीकता की मात्रा के अनुपात में निश्चित होती है। अत: इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अहिंसा की तीन श्रेणियों को स्वीकार किया है- १. जागृत अहिंसा, २. औचित्यपूर्ण अहिंसा, ३. भीरुओं या कायरों की अहिंसा।
जागृत अहिंसा वह है जो व्यक्ति के अन्तर्रात्मा की पुकार पर स्वाभाविक रूप से जन्म लेती है। इसे व्यक्ति अपने आन्तरिक विचारों की उत्कृष्टता अथवा नैतिकता के कारण स्वीकार करता है। इस प्रकार की अहिंसा में असम्भव को भी सम्भव में बदल देने की अपार शक्ति निहित होती है। औचित्यपूर्ण अहिंसा वह है जो जीवन के किसी क्षेत्र में विशेष आवश्यकता पड़ने पर औचित्यानुसार एक नीति के रूप में अपनायी जाए। यद्यपि यह अहिंसा दुर्बल व्यक्तियों की है, पर यदि इसका पालन ईमानदारी और दृढता से किया जाय तो यह काफी शक्तिशाली और लाभदायक सिद्ध हो सकती है। कायरों की अहिंसा निष्क्रिय अहिंसा है। अत: कायरता और अहिंसा, पानी तथा आग की भाँति एक साथ नहीं रह सकते।१२ गांधी की अहिंसा की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिह्न; जेहादी हिंसा
वर्तमान में विश्व के समक्ष आतंकवाद की समस्या मुँह फाड़े खड़ी हुई है। आतंकवाद क्या है इसकी आजतक सर्वसम्मत परिभाषा नहीं दी गयी है। कोई इसको एक प्रवृत्ति मानता है तो कोई अपनी बात, अपने मत, अपने विचार को दूसरों से हिंसा
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