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१०८ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक पर बल दिया और स्पष्ट किया कि अहिंसा का मर्म किसी को क्षति न पहुँचाने की स्थूल व भौतिक क्रिया की अपेक्षा इस क्रिया के पीछे विद्यमान मन्तव्य में निहित है। इस प्रकार नकारात्मक या निषेधात्मक विचार के रूप में अहिंसा का अर्थ है, किसी भी प्राणी को विचार, शब्दों या कार्यों से हानि न पहुँचाना। किन्तु यह नकारात्मक अर्थ तभी पूर्ण होता है जबकि इसके मूल में इस नियम की सकारात्मक प्रेरणा मात्र के प्रति निरपवाद प्रेम आवश्यक रूप से विद्यमान हो।
गांधीजी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के प्रति जागृत प्रेम या करुणा, अहिंसा का सटीक मापदण्ड है। उन्होंने उदाहरण दिया 'यदि मैं किसी ऐसे व्यक्ति पर जो मुझ पर आक्रमण करने आये, बदले में प्रहार न करूँ, तो मेरा यह कृत्य अहिंसक हो भी सकता है और नहीं भी। यदि मैं भय के कारण उस पर प्रहार न करूँ तो यह अहिंसा नहीं है; किन्तु यदि मैं पूर्णतया सचेतन होकर प्रहार करने वाले के प्रति करुणा और प्रेम के कारण उस पर हमला नहीं करता हूँ तो यह निश्चित रूप से अहिंसा है।'
गांधीजी के अनुसार अहिंसा का सार साक्षात प्रेम में समाविष्ट है उन्होंने स्पष्ट किया कि अपने मित्रों और सम्बन्धियों से प्रेम करना तो सहज भाव है। सच्चा अहिंसक दृष्टिकोण वह है जो व्यक्ति को अपने विरोधियों और शत्रुओं से भी प्रेम करने के लिए प्रेरित करे। उन्होंने कहा- “अहिंसा उस व्यक्ति के प्रति प्रेम-संवेदना और सेवा के भाव में निहित है जिसे घृणा करने के लिए कारण उपस्थिति हो। ऐसे व्यक्ति के प्रति प्रेम करने में जो हमें प्रेम करता है अहिंसा निहित नहीं है, अपितु यह तो स्वाभाविक नियम है।"३ गांधीजी के अनुसार सच्ची अहिंसा वह है जो निःस्वार्थ और निरपेक्ष हो।
___ गांधीजी की यह मान्यता है कि अहिंसा का विचार कोई जड़ सिद्धान्त नहीं है, अपितु एक गुणात्मक और नैतिक आस्था है। अतः विशिष्ट परिस्थितियों में अहिंसा का नियम किसी को न मारने के स्थूल विचार की अपेक्षा, दूसरों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम
और उन्हें पीड़ा व कष्ट से मुक्त करने की निर्मल प्रेरणा से निर्दिष्ट होता है। उन्होंने ऐसी परिस्थिति को स्वीकार किया जबकि किसी दूसरे प्राणी के शरीर को नष्ट कर देने अथवा उसके प्राण ले लेने को भी हिंसा न माना जाये। गांधीजी ने स्पष्ट किया यदि कोई प्राणी ऐसी पीड़ा से कराह रहा है जिसका उपचार असम्भव है, तो उसे उस असहनीय पीड़ा से मुक्त करने की दृष्टि से मार डालना हिंसा नहीं माना जायेगा। गांधीजी ने अपने.आश्रम में एक बछड़े को विष दिलवाकर मरवा दिया, क्योंकि वह असहाय पीड़ा से तड़प रहा था और यह भली-भांति निश्चित हो चुका था कि उसकी पीड़ा को कम करना तथा उसके प्राणों को बचाना असम्भव था। जब कुछ लोगों ने गांधीजी के इस निर्णय के अहिंसक होने में सन्देह किया तो गांधीजी ने स्पष्ट किया कि यह कृत्य पूरी तरह अहिंसक था, क्योंकि उसके पीछे कोई स्वार्थ भावना नहीं थी, अपितु बछड़े को कष्ट से मुक्त करने का उद्देश्य निहित था। गांधीजी ने दृढ़तापूर्वक कहा “यदि मेरा पुत्र भी इस स्थिति में
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