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५० : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक इसमें कुल ६३ गाथाएँ हैं। इसकी प्रथम गाथा में विषयवस्तु का नाम निर्देश इस प्रकार किया गया है- (क) सावधयोग की विरति, (ख) उत्कीर्तन, (ग) गुणियों के प्रति विनय, (घ) क्षति की निन्दा, (च) दोषों की चिकित्सा और (छ) गुणाराधना। पुन: इनका अलग-अलग निरूपण किया गया है। तत्पश्चात् चतुर्दश स्वप्न का वर्णन, मङ्गल-अभिधेय, चतुशरण गमन, दुष्कृतगर्हा, सुकृतानुमोदन रूप तीन अधिकार हैं। इसके बाद अरिहन्त, सिद्ध, साधु
और केवलिप्रज्ञप्त धर्म- इन चार आश्रयों का शरण लेने और जन्म-जन्मान्तर में आत्मा ने यदि कोई दुष्कृत आचरण किया हो तो उसकी निन्दा का निरूपण है। अन्त में चतुःशरण ग्रहण, दुष्कृतगर्हा, सुकृतानुमोदन का फल बताया गया है। यह प्रकीर्णक-बाबू धनपत सिंह मुर्शिदाबाद, बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद, आगमोदय समिति, हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, महावीर जैन विद्यालय एवं जैनधर्म प्रसारक सभा से मूल रूप में, तत्त्व विवेचक सभा से गुजराती, देवचन्द लालभाई फण्ड से संस्कृत, हीरालाल हंसराज-जामनगर से गुजराती तथा मनमोहन यशस्मारक से हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हो चुका है।
१०- प्राचीन आचार्य विरचित आराधनापताका- इस प्रकीर्णक में कुल ९३२ गाथाएँ हैं। सम्पूर्ण ग्रन्थ का वर्ण्यविषय, बत्तीस द्वारों में विभक्त है। ये हैं- (१) सल्लेखना द्वार, (२) परीक्षा द्वार, (३) निर्यामक द्वार, (४) योग्यत्व द्वार, (५) अगीतार्थ द्वार, (६) असंविग्न द्वार, (७) निर्जरणा द्वार, (८) स्थान द्वार, (९) वसति द्वार, (१०) संस्तार द्वार, (११) द्रव्यदान द्वार, (१२) समाधिमान विरेक द्वार, (१३) गणनिसर्ग द्वार, (१४) चैत्यवन्दन द्वार, (१५) आलोचना द्वार, (१६) व्रतोच्चार द्वार, (१७) चतुःशरण द्वार, (१८) दुःकृतगर्हा द्वार, (१९) सुकृतानुमोदना द्वार, (२०) जीवक्षमणा द्वार, (२१) स्वजनक्षमणा द्वार, (२२) संघक्षमणा द्वार, (२३) जिनवरादि क्षमणा द्वार, (२४) आशातनाप्रतिक्रमण द्वार, (२५) कायोत्सर्ग द्वार, (२६) शक्रस्तव द्वार, (२७) पापस्थानव्युत्सर्जन द्वार, (२८) अनशन द्वार, (२९) अनुशिष्टि द्वार, (३०) कवच द्वार, (३१) नमस्कार द्वार और (३२) आराधनाफल द्वार। इसमें उनतीसवाँ अनुशिष्टि द्वार १७ प्रतिद्वारों में विभक्त है- (१) मिथ्यात्व परित्यागअनुशिष्टि प्रतिद्वार, (२) सम्यक्त्वसेवनानुशिष्टि प्रतिद्वार, (३) स्वाध्यायानुशिष्टि प्रतिद्वार, (४) पञ्चमहाव्रतरक्षानुशिष्टि प्रतिद्वार, (५) मदनिग्रहानुशिष्टि प्रतिद्वार, (६) इन्द्रियविजयानुशिष्टि प्रतिद्वार, (७) कषायविजयानुशिष्टि प्रतिद्वार, (८) परिषहसहनानुशिष्टि प्रतिद्वार, (९) उपसर्गसहनानशिष्टि प्रतिद्वार, (१०) प्रमाद अनुशिष्टि प्रतिद्वार, (११) तपश्चरणानुशिष्टि प्रतिद्वार, (१२) रागादिप्रतिशेषानुशिष्टि प्रतिद्वार, (१३) निदान वर्तनानुशिष्टि प्रतिद्वार, (१४) कुभावनात्यागानुशिष्टि प्रतिद्वार, (१५) सल्लेखना अतिचार परिहरणानुशिष्टि प्रतिद्वार, (१६)द्वादश शुभ भावनानुशिष्टि प्रतिद्वार और (१७) पच्चीस महाव्रत भावना अनुशिष्टि प्रतिद्वार। यह प्रकीर्णक महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से मूल रूप में पइण्णयसुत्ताइं में संगृहीत है।
११- आराधना पताका (वीरभद्र)- यह प्रकीर्णक आचार्य वीरभद्र रचित है। इसमें
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