Book Title: Sramana 2002 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ ५२ : श्रमण/जनवरी-जून २००२ संयुक्तांक (२) स्थान, (३) विकटना, (४) सम्यक्, (५) अणुव्रत, (६) गुणव्रत, (७) पापस्थान, (८) सागार, (९) चतुःशरणगमन, (१०) दुष्कृतगर्दा, (११) सुकृतानुमोदन, (१२) विषय, (१३) संघादि, (१४) चतुर्गति जीवक्षमणा, (१५) चैत्य-नमनोत्सर्ग, (१६) अनशन, (१७) अनुशिष्टि, (१८) भावना, (१९) कवच, (२०) नमस्कार, (२१) शुभध्यान, (२२) निदान, (२३) अतिचार और (२४) फलद्वार। ___ इसके प्रकाशित संस्करण हैं- (१) बालाभाई ककलभाई-अहमदाबाद (मूल), (२) महावीर जैन विद्यालय, बम्बई (मूल), (३) विजयसिद्धिसूरि ग्रन्थमाला (मूल), (४) मनमोहन यशमाला, मुम्बई (मूल तथा अंग्रेजी, हिन्दी अनुवाद) दो संस्करण। १३- आराधना पञ्चक- प्रस्तुत प्रकीर्णक में ३३५ गाथाएँ हैं। यह प्रकीर्णक स्वतन्त्र ग्रन्थ न होकर उद्योतनसूरि के कुवलयमाला से उद्धृत अंश है, परन्तु पइण्णयसुत्ताई, भाग-२ में प्रकीर्णक के रूप में सङ्कलित है। इसमें अन्तकृत केवलियों के नामनिर्देशपूर्वक कर्मक्षमणा का निरूपण किया गया है। इसके पश्चात् भगवान महावीर की प्रेरणा से मणिरथ मुनि एवं दूसरे अन्य कामगजेन्द्र मुनि, वज्रगुप्तमुनि एवं स्वयम्भूदेव मुनि का संलेखनाग्रहण ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य की आराधना, पञ्चमहाव्रत, रक्षा-ममत्व त्याग, संवर्जीव क्षमापणा, दोषप्रतिक्रमण, पण्डितमरण की प्रेरणा से उसकी आराधना तथा उनके सिद्धिगमन का विस्तार से वर्णन किया गया है। १४- आराधना प्रकरण- इस प्रकीर्णक के कर्ता अभयदेवसूरि हैं। इसमें ८५ गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ मरणविधि के छः द्वारों में विभक्त कर रचा गया है। छ: द्वार हैं- (१) आलोचना द्वार, (२) व्रतोच्चार द्वार, (३) क्षमणाद्वार, (४) अनशनद्वार, (५) शुभभावना द्वार और (६) नमस्कार भावना द्वार। यह ग्रन्थ पइण्णयसुत्ताई के भाग-२ में मूलरूप में सङ्कलित है। १५- जिनशेखर श्रावक प्रति सुलसाश्राविकारचित आराधना- इस प्रकीर्णक में ७४ गाथाएँ हैं। इसमें प्रत्यासन्न मरण-प्रेरणा अर्थात् अन्त सन्निकट होने पर अनशन की प्रेरणा, अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुओं का स्वरूप निरूपण एवं उनकी वन्दना, नमस्कार-माहात्म्य तथा मङ्गल चतुष्क, लोकोत्तम-चतुष्क, शरणचतुष्क, आलोचना और व्रतोच्चार का निर्देश है। अन्त में सर्वजीवों की क्षमापणा तथा वेदना सहने और अनशन करने का उपदेश है। यह प्रकीर्णक भी पइण्णयसुत्ताइं भाग-२ में सङ्कलित है। १६- नन्दनमुनि आराधित आराधना- इसमें कुल ४० गाथाएँ हैं। यह संस्कृत-भाषा में लिखा गया है। इस प्रकीर्णक में नन्दनमुनिकृत दुष्कृतगर्दा, सर्वजीव क्षमणा, शुभ भावना, चतुःशरण ग्रहण, पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार, अनशन प्रतिपत्ति रूप छ: प्रकार की आराधना का वर्णन किया गया है। इस प्रकीर्णक का भी एकमात्र संस्करण पइण्णयसुत्ताई में सङ्कलित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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