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प्रकीर्णक साहित्य : एक अवलोकन
१७- आराधना कुलक- यह सभी प्रकीर्णकों में सबसे छोटा है। इसमें मात्र ८ गाथाएँ हैं। यह प्रकीर्णक व्रतोच्चार, जीवक्षामणा, पापस्थानत्याग, दुःकृत निन्दा, सुकृतानुमोदन, चतुःशरण ग्रहण, एकत्व भावना का निर्देश मात्र है। इसके कर्ता अज्ञात हैं तथा यह भी पइण्णयसुत्ताइं में प्रकाशित है।
१८-१९- मिथ्यादुष्कृत कुलक- इस शीर्षक से दो प्रकीर्णक उपलब्ध हैं। दोनों कर्ता अज्ञात हैं तथा दोनों का प्रारम्भ मङ्गलाचरण से न होकर विषय से है। एक में १५ तथा दूसरे में १७ गाथाएँ हैं। प्रथम में आराधक द्वारा चारों गतियों के सभी जीवों से अलग-अलग क्षमापणा की गयी है। इसमें पञ्चपरमेष्ठी की निन्दा, दर्शन - ज्ञान - चारित्र और सम्यक्त्व की विराधना, चतुर्विध संघ की अवमानना, महाव्रतों और अणुव्रतों के प्रति स्खलना आदि की निन्दा है।
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दूसरे में आराधक द्वारा संसार-चक्र में विविध योनियों में भ्रमण करते समय जिन-जिन प्राणियों को दुःख दिया गया उनके प्रति क्षमापणा की गयी है। विभिन्न भवों के परिजनों के त्याग के प्रति, राग-द्वेषवश हुए एकेन्द्रिय जीवों का वध, मृषावाद भाषण, परिग्रह, मिथ्यात्व मोह से मूढ़ हो साधु-सेवा, सधार्मिक वात्सल्य एवं चतुर्विध संघ की अभक्ति के प्रति मिथ्यादुष्कृत किया गया है। ये दोनों प्रकीर्णक भी पइण्णयसुत्ताइं में सङ्कलित हैं।
२०- आलोचनाकुलक- इसमें १२ गाथाएँ हैं। इसके कर्ता अज्ञात हैं। इसमें विविध प्रकार के दुष्कृतों की आलोचना की गयी है तथा आलोचना का माहात्म्य बताया गया है । इस ग्रन्थ का भी प्रकाशन पइण्णयसुत्ताइं में हुआ है।
२१ - आत्मविशोधिकुलक- इस प्रकीर्णक में भी लोक के समस्त प्राणियों के प्रति हुए समस्त प्रकार के दुष्कृत्यों की निन्दा की गयी है। इसमें आहार और समस्त शारीरिक क्रियाओं के त्याग का निर्देश है। अन्त में आलोचना द्वारा आत्म विशुद्धि का माहात्म्य बताया गया है। इसमें कुल २४ गाथाएँ हैं और इसका भी एकमात्र संस्करण पइण्णयसुत्ताई में है।
२२- कवच — यह प्रकीर्णक जिनचन्द्रसूरि की रचना है और प्राचीन आगम आलापकों का सङ्कलन होने से प्रामाणिक है। इनका अभी तक मुद्रण- प्रकाशन नहीं हुआ है। इसमें १२९ गाथाएँ हैं। इसमें पण्डितमरण से सम्बन्धित विषय का प्रतिपादन किया गया है ।
इस प्रकार उपलब्ध प्रकीर्णकों में २२ ऐसे हैं जिनमें किसी न किसी प्रकार से समाधिमरण से सम्बन्धित विषयवस्तु ही प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त जो प्रकीर्णक हैं, वे भिन्न-भिन्न विषयों को लेकर रचे गये हैं। उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार हैं।
२३- देवेन्द्रस्तव - प्रस्तुत प्रकीर्णक स्थविर ऋषिपालित की कृति है। इसका निर्देश
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