________________
हिन्दी काव्य परम्परा में अपभ्रंश महाकाव्यों
का महत्त्व
साध्वी डॉ० मधुबाला*
हिन्दी-साहित्य के भिन्न-भिन्न कालों पर अपभ्रंश-साहित्य का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। प्रभाव से हमारा तात्पर्य यह नहीं कि हिन्दी-साहित्य में अनेक प्रवृत्तियाँ एकदम नयी थी या ये प्रवृत्तियाँ सीधे अपभ्रंश-साहित्य में आविर्भूत हुईं और वे उसी रूप में हिन्दी-साहित्य में प्रविष्ट हो गयीं। प्रभाव से हमारा यही अभिप्राय है कि भारतीय-साहित्य की एक अविच्छिन्न धारा चिरकाल से भरत खण्ड में प्रवाहित होती चली आ रही है। वही धारा अपभ्रंश-साहित्य से होती हुई हिन्दी-साहित्य में प्रस्फुटित हुई। समय-समय पर इस धारा का बाह्य रूप परिवर्तित होती रहा; किन्तु मूलरूप में परिवर्तन की सम्भावना नहीं। - अपभ्रंश कथाकाव्य तथा हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्यों की कथावस्तु की तुलना करने पर स्पष्ट हो जाता है कि दोनों प्रकार के काव्यों की कथावस्तु में बहुत कुछ साम्य है। केवल दोनों के उद्देश्य विशेष में अन्तर हैं। अतएव कथा के वर्णन तथा घटनाओं के मोड़ और चरित्र-चित्रण में भेद लक्षित होता है; किन्तु कथा प्रकार में, प्रबन्ध-रचना में तथा शैली में हिन्दी के प्रेमाख्यानक एवं सूफी काव्यों पर अपभ्रंश के कथा-काव्यों का प्रभाव दिखायी पड़ता हैं। इस प्रकार कथानक रूढ़ियों और काव्य-रूढ़ियों में अद्भुत साम्य है। इसी प्रकार कामावस्थाओं, स्त्री-भेद, नख-शिख-वर्णन आदि सभी रीतिकालिक प्रवृत्तियों का दोनों में समावेश मिलता है।
___ यद्यपि हिन्दी के सूफी काव्यों में सज्जन-दुर्जन वर्णन, आत्म-विनय-प्रदर्शन तथा काव्य की प्रेरणा आदि काव्य-रूढ़ियों का पालन नहीं हुआ; किन्तु मंगलाचरण, आत्म-परिचय तथा कथा-रचना का उद्देश्य एवं गुरु-परम्परा का निर्देश प्रेमाख्यानों में मिलता है। इसी प्रकार अपभ्रंश-कथाकाव्य की भाँति प्रेमाख्यानक-काव्यों में कहीं-कहीं कथा की प्राचीनता का उल्लेख देखा जाता है। यही नहीं कई कथाएँ साम्प्रदायिक मत एवं वादों से रहित शुद्ध प्रेमकथाएँ कही जा सकती हैं, जिनमें प्रेम के अलौकिक रूप का वर्णन न होकर लोकप्रचलित यथार्थ प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। वस्तुत: आरम्भिक सूफी कवि उदार तथा लोकयुगीन प्रवृत्तियों से प्रभावित थे; किन्तु परवर्तीकाल में भारतीय जीवन की लोककथाओं को अपना कर सूफी
*. जैन दिवाकर सामायिक साधना भवन, इन्दौर, मध्य प्रदेश। Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org