Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 7
________________ ॥सामाचारी (भद्रारथ॥५॥ भई नारा जुयाणे, जिए चयण जिण युई करा ॥ पाविषद नियत्तार, श्छाकारं भताए ॥ १॥ सामायारीइ रहोपंच, नमुक्कार सारहि नियुत्तो॥ नाण तुरंगम जुनो, मेश्फुडो परम निवाणं ॥२॥ SA SETTE RECENTREpsowa भ ६००० ६.०० नाराजुयाम दाजुयाण चिरपाजुयाए २०१० 2010 २००० जय जिप जयसिक्षा जणगणा जिगुरु बयण चयेल बयण ५०० ५०० ५०० वय ५०० मायानानवतलाहामानवता माएानियचा ए. ला पामा उयसपयाभशन निमतामा GIUN जपयुधासिधुकर वाया कराण राण कराग कराण १०० १०० पविहानमाजियचय नियानया अजमाना पारग यसा नियमावं सारण यत्ताप नियताम १ राईभोयरग/कोहाउनिया नाण नियताण १० १० इशाकारभ- मिताकारभ-तहानिकारावास्सया निसादिक तिा एताए भगताए। भर्ण नाणे.भखनाएग भिपिडितद्वलभिणदणाभाना यापुछणाभय/पाडवलभिज ता६ना . ७. रो

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