Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ - - - - ॥ अथ श्री शीलांगादि रथसंग्रह ।। - - - - MORROGRAMM HERE १ श्री शीलांगरथना चित्रमा आवेला अघरा शब्दोना अर्थ. जे-जेओ भयसन्ना-भयसंज्ञा आरंभं-आरंभने पचिंदि-पंचेंद्रि स अजवा-आर्जव सहित, नो-नथी मेहुणसन्ना-मैथुनसंज्ञा | आउकाय-अपकाय (ना)| अजीव-निर्जिव, जड । सरळता सहित, करति-करता परिग्गहसना-परिग्रहसंज्ञा | पाणीना, तेउकाय-अग्निकाय (ना) | समारंभ-आरंभने,पापने समुत्तिणा-निर्लोभता सहित सोइंदि-श्रोतइंद्रि करावंति-करावता खंति-क्षमा तपजुआ-तपयुक्त वाउकाय-वायुकाय (ना) अणुमोयंति-अनुमोदता चख्खिंदि-चक्षुइंद्रि, आंख जुभा-युक-सहित ससंजमा-संजम सहित पानना मणसा-मनवडे घाणिदि-घ्राणइंदि, नाक ते-ते वणस्सइकाय-वनस्पति सच-सत्य, साधु वयसा-वचनवडे रसणिदि-रसइंद्रि, जीभ काय (ना), मुणी-मुनी भोने सोय-शाच, पवित्रता तणुणा-कायावडे फासिदि-स्पर्शइंदि, चामडी बेइंदि-बोरेंद्रि वंदे-हुँ वांदुर्छ अकिंचगा-अकिंचन, द्रव्य निजिय-जीतीजेणे पुढवीकाय-पृथ्वीकाय(ना) तेइंदि-तेरिंद्रि समदवा-मादवसहित, रहित, पैसा रहित आहारसना-आहारसंज्ञा . मारी विगेरेना | चरिंदि-चौरिदि . कोमळना सहित बंभ-ब्रह्मचर्चा १ ला श्री शीलांगरथना चित्र बहारनी गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. जे-जे | मणसा-मनवडे | सोइंदी-श्रोत्रइंद्रिय, कान खंति-क्षमा मुगो-मुनीयोने नो-नहीं; नथी निज्जिय-जीतीछे जेमणे | पुढवीकाया-पृथ्वीकाय(ना) जुभा-युक्त, सहित वंदे-हुँ वांदुछु. ॥१॥ करंति-करेछे; करता | आहारसन्ना-आहारसंज्ञा आरंभ-आरंभने ! वे-तेश्रो । खंती-क्षमा BroGre

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78