Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 38
________________ ॥९ ॥ शीलागादि रथसंग्रहः ॥१४॥ GGGGAGGGGED GRG सामायारीइ रहो पंच, नमुक्कार सारहि नियुत्तो॥ नाण तुरंगम जुत्तो, नेई फुडो परम निवाणं ॥२॥ सामाचार्याः रथः पंच नमस्कार सारथि नियुक्तः ॥ ज्ञान तुरंगम युक्तो, नयति स्फुटः परम निर्वाणं ॥२॥ _____पांच नमस्काररुप सारथिवाळो, ज्ञानरुप घोमाथी युक्त, एवो सामाचारीनो स्कूटरय परम | निर्वाण प्रत्ये लश् जाय ॥२॥ AKALENLARKHANNEL ६ग नियमरथना चित्रमा आवेला अघरा शब्दोना अर्थ. अविरय-अविरति | चय-वचनना | अवट्ट-अपार्ध तेटलं अन्न अणसण-अनशन तणु-कायाना आहारो-आहारवाळो भिख्ख-भिक्षा (थी) मण-मनवाळो सुदव्वत्त-सारा द्रव्यपगानो । अद्ध-अर्चा गेह-धेर देसअणसणमणो-देशथी अ- | अणुकोसो-अहंकार रहित पत्त-माप्त दव्व-द्रव्यवडे नशनना मनवाळो | सुखित्तत्त-साराक्षेत्रपणानो | किंचूणो-काइक आंबिल-आंबिल तपवाछु सव्वअणसणमणो-सर्व अण- | सुकालत्त-सारा कालपणामां| सिध्य-अन्नना दाणा (थी) सु-रुडो सणना मनवाको सुभावत्त-सारा भावपणानो सिक्थ अलेव-लेप विनानी चीन(थी। मण-मन अप्पाहार-अल्प आहारवडे | तवो-तप करनार इगहाणी-एक्केकनो हानी संलोणो-सलीनतावाळो, सं- | उणुदरिओ-उनोदरिवाळो-भू- कवल-कोळीया (यो) | इग-एक कोची राखनार | ख करतां ओछु जमनार | दत्ति-एकवारमा जेटलु अपायुं भत्त-भोजन DONGGRICONSOREDARBRBre

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