Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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१॥
चिन्तयति इष्टुमिनति, दीर्घ निःश्वसिति तथा ज्वरो दाघः ॥
नक्तारोचो मूर्ग, उन्मादः प्राण ( संदेदः) मरणं ॥२॥ कामनी दस अवस्था कहे जे. (१) चिंतव, (५) जोवा श्ववं, (३) दीर्घ निश्वास लेवो, (४) | ज्वर थाववो, (५) दाद थवो, (६) थाहारनी अरुची, (७) मूळ, (७) उन्माद, (ए) प्राणनो | संदेह, (१०) मरण; श्रादस कामावस्था ॥२॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ४॥
१७ ज्ञानदर्शन चारित्ररथनी अंदर आवेली गाथायोना अघरा शब्दोना अर्थ. || जे-जेओ
वयं-व्रत
| आव जसु-वारंवारआवर्तन | वंदामि-बांद छ नाणं-ज्ञानने लीणा-लीन
___ करवु ते. | समदवं-मार्दवसहित अंचिय-युक्त बीय-बीजा वज्जतो-वर्जतो
सअजवं-आर्जव सहित,कपट दसणं-दर्शनने तइय-त्रीजा संकिय-शंकावाळाने -
रहितपणे व-दळी, अथवा
विवज्जतो-वर्जन करतो चउथ्य-चोथाः
मुत्तिजुअं-निर्लोभता युक्त चारित-चारित्रने
सहसागारं-सहसात्कारने पिंडध्य-पिंडस्थ पंचम-पांचमा
भयं-भयने
| तवजुअं-तपयुक्त . . .... ज्झाणं-ध्यानने दप्प-दर्प, अहकारने पओसं-प्रदोषने
संजमजुअं-संजमयुक्त पदथ्य-पदस्थ परिहरंतो-त्याग करतो विमंसा-विचारणा
सच्चजुअं-सत्ययुक्त रुवथ्थ-रुपस्थ पमाय-प्रमादने
खंति-क्षांति (थी) सोअजुअं-शौचयुक्त: रुवातीत-रुपातीत अणाभोग-अजाणपणाने | ख-खम,
अकिंचणं-द्रव्यरहित पढम-पहेला
आसुरे-आसुर +-साह-साधुने
भजुअं-ब्रह्मचर्ययुक्त
DOGDIRDarBCDaroGRAarRDEGORMERA
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