Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ४ ॥
श्री शीलांगरथनी गणतरी करवानी समजुती. जोए करणे सन्ना, इंदिय भोमाइ समण धम्माय।।
सीलंग सहस्साणं, अट्ठारसगस्स निप्पत्ती ॥१॥ ___अर्थः-योग त्रण, करण त्रण, संझा चार, इंजिय पांच, नोमाश्के० पृथ्वीकायादिक दश, श्रमणधर्म दश, ए रीते शीलांगना जे अढार हजार नेद तेनुं निःपत्ती के निपजQ थाय तेज कहे . ॥१॥
... हवे विशेषे एनी संख्या देखामे . करणाइ तिन्निजोगा, मणमाईणी हवंति करणाइं॥
आहाराईसन्ना, चउसोया इंदिया पंच ॥२॥ 'अर्थः-इहां प्रथम योग पनी सूत्रनां बंध सारु बीजा वखाणीये बीए. योग त्रण, ते मनो | | योगादिक जाणवा. श्हां गाथाने धुरे करणार एटले कर जेनी आदिमांडे एवा त्रण करण तथा आहारादि चार संज्ञा जाणवी. अने सोया के श्रोत्रादिक पांच इंजियो जाणवी... भोमाई नव जीवा, अजीव काओय समण धमोय ॥ खंताइ दस पयारो, एवं ठिई भावणा एसा ॥३॥
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