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RTISTARTETPRARTISTS EVENTS
8. श्री शीलांगादि रथ संग्रह -
चित्र तथा समजुती सहित.
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NSTRIES
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प्रस्तावना. आ पुस्तक प्रगट करवानो हेतु ए छे जे साधु साध्वीजी महाराज ने सज्झाय ध्यान माटे बचा रथ अति उपयोगी अने जबल्लेज मळी शके छे माटे ते छपावी प्रसिद्ध करवा योग्य छे एम केटलाक साधु महाराज तरफथी कहेवामां आव्युं तेथो छपावी प्रगट कर्यु छे. हवं ते पुस्तकनी हस्त लीखीत प्रत एक, महाराजजी साहेब सुखसागरजीर डीसेथो ते काम माटे प्रथम मोकली तेनी नकल करावी लीधी. पछी वडोदरेथी पन्यासजी दानविजयनो महाराजे एक प्रत तेवीन आपी तेनी साये मेव्वणी करी रथ सुधार्या. आटलुं छतां घणी भूलो रहेली मालम पडो ते उपरथी महाराज सिद्धिविजयजीए मुरत तेमना गुरुभाइ बिनय विजयजी उपर मोकलावी आपी अने असल मूळनी गाथाओ सुधरावी. त्यार पछी महाराजजी साहेब सुख सागरजीना उपदेशथी चाणसमे महाराजने वांदवा आवेला भाइ उतमचंद खेमचंदे आ पुस्तक प्रगट करवामां मदद तरीके रु. ४६-४-० मोकली आप्या. ते मोटा उपकार साथे स्वीकार्या अने काम शरु कर्यु, पण आटलेथीज ते कामपार पडे एम नहातुं. तेथी वधु प्रयास करी घणे ठेकाणे ते बावतनी समजण पाडी तेमां मदद मागतां छेवटे डभाइथी महाराजजी साहेब गुणविजयजीना उपदेशशी रु. २५५-०-० मोकलवामां आव्या. तेथी आ काम वधारे सगवडथी अने झडपथी चलावा मांडयु.
प्रथम तो आ पुस्तकनी अंदर एकला सादा एकवीस रथ छापवानो विचार हतो. पण एटलुंज करवाथी थोडा ज्ञानवाळाने अर्थनी समजण नहि पडे माटे अर्थ समजाववानी वधारे आवश्यकता जगायायी तजवीज करतां वकील केशवलाल प्रेमचंद तरफथी तेनी संस्कृत छाया सहित समजुतीनुं लखाण तेमणे पोते करेलुं तैयार हतुं ते मळ्युं तेथी वधारे आल्हाद साथे तेमांथी छुटा .ब्दोना अर्थनी गोठवण मारा मोटा बांधव हीराचंदे करी आपो.
हवे आवी रीते मेटर तैयार करतां वारेघडीए मागधीमां अथवा अर्थमां समजण न पडे त्यारे नागोरी तपागच्छिय भट्टारक सूरिश्वरजी भ्रातृचंद्रजी महाराजे पोतानो अमूल्य वखत रोकी तेमां भूलो सुधारी आपी माटे तेउ साहेबनो उपकार मानुं छु. तेमज बनारसना पंडित भगवनादास हरखचंदे रथ- लखाण सुधारवामां पोतानो किंमति वखत रोक्यो ते माटे तेमनो उपकार मानुई. आ पुस्तक बहार पाडवामां जे जे उदार जैनीभाइओए मदद आपी छे. तेमनां मुबारक नाम मोटा उपकार साथे पुस्तकनी अंते जाहेर करवामां आव्यां छे. .
आ पुस्तक छपावी बहार पाडतां मुफ सुधारवामां बनती काळजी राखतां छतां कंपोझीटरोनी सुधारवामां कसुर रही जवाथी अथवा तो मारा द्रष्टिदोषथी या मतिमंदताथी कानो, मात्रा, मींडी, अक्षर उलटपालट विगेरेनी भूलो रही गइ होय तो तेने माटे हुँ मिच्छामिदुक्कड देउं छं तथा वाचकवर्गने सुधारी वांचवा भलामण करुं छु. ता. २३-२-१२ ली. बा. क.
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॥श्रीशीलांगर॥१॥ जेनीकरंतिमसा निजियाहारसमासोदी फूटबीकाकारं खंतिनुशातिमुलीवंदे॥१॥ खतिशतवमध्वमुत्तालवसंजमेबोधये। मछसोयंचचिणं चपन्नंचाई धम्मो ॥२॥ माएकरलेसन्ना दीयनुमाइसमणधम्माय॥ सोनमसहस्साए अनारससहसमिष्यत्ती॥३॥ कराईशिपिणजोमणमाइणिओरवन्तिकरणा३॥ अाहाराईसचाच सोआरंदिया पंच
जिनो कति नोकरावति गोमयुमो 1८००० 15000
मएसा
वयसा 10.00
नपा
निलियनशियजय
विलियमेह शिनियपति हरसला
[सजा महसन्ता चरिन्दी धारिणदी रसणिंदी फासिंदी
1शरिदीव
नविदालाबसपाश
बनमुबालमुलाला
नं१०
१०.
१०.
१००
ने०
बदाइदा
सोयात्रा सिमुलीबदेसिम
बीकाया धानकायकाया बाछकाया बलस्सइका नं १० रंगनं १० रं१० यानं०
१०
(
खनिजुधासमवाय सधजवा समुत्तिो सक्जुन मुलीवंद नमुशणीनंदेमुणीवनमजीवंतेमुलीवंदे
Aसमझा
सिजुश्रा समुद६ मुजावंदे
WARNATRANCHI
SHENANTEE
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1
।। श्रीदशविक्षचक्रवाल समाचाररथ ॥२॥ मगुत्तोसन्नाली पसपियकीहोयइरियसमिया पुििवजिग्रेस्कंतो इहाकारीममोतस्स ॥ गुतिनामाइति सामियकोहाइसमियलगंजः। भोमारकंती चक्कसमायारिजुत्तोय॥२॥ इच्छामिच्छासहकाराआवरसहिनिक्सिहिम पडिपुच्छंछंदपाल निमन्त वसंघयातहतियां
मणगुणावयासो निगुती
६.००३
६७०.
६०००
सकानी २०००
साध्वी २०००
चरणी 200
बादामनवररका ।
चरिदि
मसामन्य वसामया विसामय
माणम हायोय 100 ५००
L५०० ॥३:32
भासा एसएस निय समिय सनिध्य
100 विलियम तिमिरे कंतीसकती
यसमिय सोहीय ५०य हणजनवारवण MRमिया समिय L.०० वाउजिये वणस्सल रकंती
रखतो
विविदि तीरकंती १०
lefeld
विदि २कसी १०/ररकंती१०
समयकारक
१००
००
0.
बिइंदि
इलाकासाकारी नही करनी सस्स
नहन्तिकारी चादस्मितच निलिहियकार नमोलस राममोलस्स
नमस्स
पुका/पडिपुखकारा/दणकाशा नमानस्सः/नमोलस्स/नालस्स
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॥कामलारयः॥३॥कयचमसरामाला, नियमियवसायनालया। धाजोईयपुटविजिए, अरिहसमरकंबमामि॥॥ अरिहंतसित्साहू, धम्मायरिण्यसंघनुबंदे॥ मुखामिसमासेल, पज्जंताराहलं परमं ॥३॥ चमरलनालसणा-यारपुटबाइजीवाईणं
पचनसर
गरहियदुकडी सकाएमा ६०००
LO..
सारालालंपुल, सहसालारसस्वनि।३॥ दिन सिहगलहर,केवनिहियमयजिmju सुशनिल साहुसमरकं,देवतहप्यसरकी
मा २०००
दिछ। 2000
चरला २०००
खDEथा aNELIO0
जापाइप
माजोय चरिंदाजी०
Phot
दिवसमक
100
खनाAARI
नियभियत्रा नियमियपाहि नियमियखा नियमियसा सस
मोर
श्मीर माणबईया इसपर
बारियाईया ३..
१०० जोईयामाजीईथ भाजीईय भाजाश्या |আলী, विमए सानिए यशवनिमय
10 वरिल्समरासिसमकं लहरसमस कवतिसमसिमरकं. रखमाबेमि खमाविभि समावेमिखमाबेमिखमामि
10
आजीईय/जालोईय रंजीततिरंदाजी
मास्यमक रक्मारमि
30
saeमरयनिसमरकर रमानेमिमामि
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श्रीश्रमण धर्म रथ नहणे सयंसाडू, मासा आहार सनि संवुडझे सोरंदी संवरगो, पुढविजिरे खंतिसंपन्यो ११॥ करपाई तिबिजोगा, मणमाईणि वंतिकरणाई। आहाराई सन्ना, च: सोया इंदिया पंच ॥२॥
नहोस बटणाव
SUNYOOctaudawan
साई"
नहपति अछ मज्ञासा ६०००
६.००
मासा २०००
क्यसा २०००
| नपुण
५०००
काचचिदा
अजीब
१०
हारसन्धिा र हिउ.भयावद्धिन महाससपरिम संवुड सबाल सन्मान सन्नी -५०० ५. ५००
५०० सोश संबाचारिकदी समापिटी संवा जिजिश फासिंही रणी परणा
संबर को १००
१०० पढविजिये आजितेउजियाबार जिवाबण जीवा १०
चणविमु बनकर
रणी
संयरली १००
.
मा
त
१०
मोधिये सच्च संजुने सोयसंमुत्तो।
खलिसपमहबजुत्ती बीवजुत्तीमुत्तिसपना तवसमावती
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॥सामाचारी (भद्रारथ॥५॥ भई नारा जुयाणे, जिए चयण जिण युई करा ॥ पाविषद नियत्तार, श्छाकारं भताए ॥ १॥ सामायारीइ रहोपंच, नमुक्कार सारहि नियुत्तो॥ नाण तुरंगम जुनो, मेश्फुडो परम निवाणं ॥२॥
SA
SETTE RECENTREpsowa
भ ६०००
६.००
नाराजुयाम दाजुयाण चिरपाजुयाए २०१० 2010 २०००
जय जिप जयसिक्षा जणगणा जिगुरु बयण चयेल
बयण ५००
५००
५००
वय ५००
मायानानवतलाहामानवता
माएानियचा
ए.
ला
पामा उयसपयाभशन
निमतामा GIUN
जपयुधासिधुकर
वाया कराण राण
कराग कराण १००
१०० पविहानमाजियचय नियानया अजमाना
पारग यसा नियमावं सारण
यत्ताप
नियताम १
राईभोयरग/कोहाउनिया
नाण
नियताण
१०
१०
इशाकारभ- मिताकारभ-तहानिकारावास्सया निसादिक
तिा एताए भगताए। भर्ण नाणे.भखनाएग
भिपिडितद्वलभिणदणाभाना यापुछणाभय/पाडवलभिज ता६ना . ७.
रो
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विश्या सम्मो ६०००
म एासे जीणो. चय से लोगो एउसे लीए २०००
२०००
१०००
सुद्व्यतुणुकोणे.
५०.
दिसण सएरा सब्ब एल मागो ६०००
मृणो
प्पा द्वारा दरि
१००
सुरखी सतरको सौ.
५००
अबठ्ठा हा दरिया.
१००
सध्यलव कवजती ।
१०
१०
सुकात कोसा.
५००
हा हा दरिश्री
१०० दशितपी
वीरमधि व दहि विद्धे घयुम विवओ ॐ
12
सुभावताए
कोसो.
५००
चाहारी दरित्रो
१००
कि चूलो हरियो
१००
भिरकती। हत
१०
१०
तिमि 7심
ब
गुड मार्च म
ॐ
५
दव्वल के
॥ नियम रथ ॥ ६ ॥ चियाएसमलो, मएसजीलो सुदव्य नए कोसे ॥ (कोसो, पाठांतर) कणाहारी एद रिम्रो, सिथ्यं तयो खीर मविवके ॥१॥ स्वीरं दहिं घयं तिल्लं, गुड योगा हिमेम विवऊं ॥ नगरकण व, नहमवि व भव दसहा ॥२॥
सुश्राबिलन लेव तथा गीत
वो १०
新
काहमपि ममवि सम विषमरकामधिक
६
दुगतन
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॥निंदारथ ॥७॥ मोहबसेणं मासा, देव भये सहसरा सन्नाया जं मै बुई पावं, अखंति मंनेण ते निंदे ॥११॥ मोहे रागे दोसे, मण चयएनएएणि गश्चकंच।। पंच विसय दस सन्ना,जइ धम्मा लेवगा लोया॥२॥
LALE
TION
WEB0SUSHISIS मोहबसे राग बसेदोसबसणं ६.०० ६०००
६०००
२०००
वयसा ताणा २०००
२०००
दयन मणु श्रभवे तिरियभवानारयभवा
KOLS
५००
घसम्मामलोग सन्त्रा
मायासन्चा/लोभसवाय
१०
अमबापाला
याकलएम
सह
गया फास. १०० १.०
१० सपासचा-भी समाये मेहणसमा परिगह सत्र कोसना-।
१०
श्री.१०
१०
-मापासना-//मायासनाची १०
१०
जमेबद.पायजमवरूपाम समतग/समायमनेशन
निटेप
जमे बह पाये जमे बह पावज में बड़ पाये जमेबद्ध पाये जमे बद्ध पाच इन्भरपंतिमतेणे महतेणे तंनिअगऊ पत-अमतिमलेतवर्मतण तं निंदे.१ दे.२ पित निदे३लत निंदे. नंनिंदे ५
नेमबईपाय
ममंग
STRATOPATI
CINPADMANOR
RANCHAR
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________________
नए स
६०००
विदेशी
२०००
सम्मरुर
६०००
हिदिदेगी सम्मत्तकसा
२०००
इ. २०००
चरणसर ६०००
सचिव धम्मसहिन सुक्क साहन ५००
५००
५००
₹५००
सुवाय शयने सुचीन सुपरियडी सुपे ही सुषम्म कही
१००
१००
१००
१००
१०० गुरु चेया या
करो. १०
वायगावे यावच्च करो. १०
सुजी सुन पडिकइथं कोऽ. १
मणो कोइ· २
यविश्वेथाय
च्चक. १०
सुन मीसा निर वे स्को. ३
तवये यावच करो ९०
सुन सुधिचे मनु कोइ ४
तर तथ् या पच करो
१०
सुत्र उम नं कोर.
॥ तपोरथ ॥ ॥
नारु देह विवेगी, अविवनि सुवाय नि || गुरु वेया बच्चकरो, सुई आनाको ॥१॥ आलोइ पडिक मणी, मी से एगनु विषेगनुस्तन्नग ॥ कोड्नेया मूलाय, तहाएव हि तह परिंचे ॥ २॥
साहुवावञ्च साहमिचे कुजयेयाच गणश्यायश्च सबसे पाव
याची करा. १० करो. १०
मुञ्जर पारायण
करो. १०
सुनवरासुर यान सुइला सुर
लय कालं. ७ कोइनरो
एसम्म एं
नियं. ६
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________________
॥संसार रथ॥ण नड़ दिसि पुरि सजीवो, कोही सोईदियस्स सुह हे। जोहण पुढविजीचे, सो संसारं परि नमः ॥ ११॥ संसार भवअडवी, कम्म समगंदीह ठिकतिष्य बह पासो।। हदंदोलिं जीवो, सुगइ भावारि सिधिसुहं ॥२॥
WwwfreeMeic
उहादास अहो दासतारयादास ६०००
६०० पुरिसजानाकोपजीवी २००० २०००
२०००
कोही
माए
जाना
माया ५००
५००
५००
५००
जोहरापा
पाव जोहण अजायण
जोहएच ध्यजीव
दियजीवे
मोहन
१०
शाना सद्विसुर सानपान
हहे १०
जोहरते। दियजीवे
१००
जीवरूगई भावारिसान
१०
सजीव सगा
साई दिय सुह
चरिक दिवसु पालि दिय सरसालाश्य फातिदिय हेनं १०० ह है१००
१०० जाहला पुष्य जोदलशान जोहणाने जाहण या जाहलचएमाध विजीचे -जीचे
जीच. उजीचे स्तावला १०
जीव.२० ७.१० सो संसाराभवाडची सोन कम्मसवर्णदीह उसो नीच रससो लंधर सो पवने पर्वते
पवतेइ
9ोहण
नपाउएनिवरना
यजी
बहुदोजिस मअवश्
बह पदसोप
रिअमर
धन्द६
२
SSSS
TOS
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________________
॥श्रीधर्मरया १०॥ नई दिसिनारिजीयो, दाणं वियर पिसोय विसयमगो॥ पुद विजिए ररकतो, वंतिरखयो जाबजीपति खंतिरक्मो समयो, सज्जयो समुत्तिए नतयजुत्तो।। स संजमो सञ्चजुन, सोअनुभअकिंचगो बंभ।
LAALHASHA
जागा ACCORINGHSDMRAvilandey
उरिसि प्रहरिसितिरिय दिसि ६०००
|६००० नारिजीवो परि सजीवो | कीवजीवो २०७०
२००० दाएं वियरइ सीलं पान नवमतकर भावणं भाव ५०००
५००० ५०००
२०००
५०००
बीर-ग्रजीवरस्कती है।
रिटोर-पंचिरी
ती20 अकिंचणी जाय ।
पिसाच सय विवररुक्सिय विजिम विसविधाएग विस विकास विसय नो १०० मणी १०० रमसो १०० यमको १०० मग १००
भजनजावमा
तो १० किती १०
जीर्वपिनमा
नस्टीररकं-तिइदी ररक
जाब//सोयजुयोजाच
पुट बिजीएरामजीएर- जीए वानजीए वजीएररकंतो १० कंत ररकले १०रकतो१० रकंतो १०
जीवविद"
ना १०
जापा
स संजमोजाव/
खनिश्वमोसमनी जाच सऊगोजा समुत्तिणोजा तय-जुत्ता जॉबजीविजाचदिवजीपंपिजीवंपि
जाऔषपि १
४
दीपि६
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॥श्रीसंयम रथः॥११॥ हिंसइ न सयं मगसा, पेहा संजम जुन सुइरिया । इलाकारण जुम, जाजीवं पुढवि कायंगि ॥१॥
O
हिंसइ नसमें अहसावद को बिनानागुन मना करना
PATRINEMA
हिंसइ नसबंदिसावर नो
६०००
दिसानाम
चयसा
मासा 2000
२००७
२०००
पहासजमवन नवेहसंजमनुन पम संजन पारिडावणी
पाजुने ५०० सुइरियाए सुनासार मुसणासुगहपुरके सुपरिट्टयन
सनि तयार नवसंपयाइ
पाइ
सन्चंदपाइ
जिन १०
संपबाइन
जावयजीव जावभावावर
१००
१००
१००
जीवपि
इस कारण मिची कारकतहानिकारेग आपस्सिया नसी हिवाइजका
चिनरिंदी जाय / जीवंपि.
२४ाश्चमाइजुपाडपुच्चगाई/म
जाजीव पुनाजाजीय चानी जान
जाजीयं जान जाजीचं तेन जाजीचंचाना जाजीचं च-६ पिका कायंपि. कायंपि.
रसइ कार्यवि
बेईदी जाय/तइदाजा कनीया
यि
जीवंपिई
TRANSAR
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जो तेन जेस जो पनुम लेस जो सुकलेस ६०००
६०००
६०००
माणसा
२०००
नवकमो ५००
नवसमिय
'संमती
१०७
सिरुई धरतो
१०
श्रीगमधा नर्मसामि
वयसा
१०००
निरके चो
५००
सरु
लघुका
2000
धरती
१०
एगमो
५००
सामि खनबसमसार बेईयसार
१००
संमती
समतो १००
100
एश्री
५००
आरुइ 'धरतो 'धरती
सुनरुई
१.
नमसाभि नमसामि
सुगुराधारंणाधार धारणा
नभ सामि
딩
खर्डय सार समतो
१००
बीयरुई वरतो
१०
जीवहारि नर्मसामि
अभिगम रुई
धरनो
१०
केवलधारिन सामि . ६
॥शुन जेइयात्रिक रथः ॥ १२ ॥ जोनलेस मासा, जवको नवसमिश्र संमत्तो ॥ निसग्गरुइं घरंतो, आगमधारिं नम॑सामि ॥ ९ ॥ स्वयं खनुवस मियं, वेयगन्नव सामिश्रं च सासलियं ॥ पंचविच समत्तं, पत्रत्तं वीयरागे हिं ॥२॥ सिम्सुवासरुई आएरुइ सुत्त बीय रुई मेव ॥ अभिगम विहाररुइ किरिया संखेव धम्म रुई ॥३॥ आगमसु आग धारणा, य जीयंच होइ चवहारो ॥ केवलमो हिचन दस, दस नव पुवि पुढे मि ॥६॥
विचाररुइ किरियारुइ संखेवरुई घर
घर तो
लो. १०
धरती
१०
नामसामि. ७) मापक धार
हिपरंन नमे
सामि
चिनदस प्रति
नमसामिल
धरुव
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श्रीअहानश्यात्रिकरथ॥१३॥ जो किएह लेस मगसा, इति कहादय अभिगह विचझ॥ फुटविजिए ररकतो, खनिनुए साद वदामि ॥१॥ अभिग्गह मणा भिगहिय, तहा अनिशिवेसिन चेव।। संसड्य मणाभोग, मिचनं पंचहा होई ॥२॥ इचिकहानत्तकहा, देसकहा तहय होई रायकहा। चेन कह विवडीने धम्मबी साहू बंदामि ॥३॥
REATरकतार
जो किराह वजोनीवलेस जो कानले ६००००००
६000
मासा 2000
वयसा २०००
तापा २०००
इचिकहाइयत्त कहाव्य दिसकहाइय राय कहाइया प ५००
५०० ५००
AS
जरिदीए पाचारको सकती-१०ना . .
नो १.
अभिग्गा विम अगानिगह अभिनिवेसिप सिड्य धिवा भोग
थिबऊ१० विवक की १००० विवर्क १०० पुढविजीर आनजीये रकं तेजीये र-चाननीय चाचणस्सइजीयन ररकता
(रकेती-१० खाता-२० रकलो.१० 10 खतिजुड़ीसा मावजुसार सबकासन मुनिजन्मेसा तवजुए साहू
दापि इबंदामि ददामि यंदा मि-५
19वइंदीएक नईटीएर
मंजमजीसाहसञ्चसुश्रसा-सानजी बदामिाईबंदामि.७साहू बैरामिटर
CHOHORANSIT
PP
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द्वितीय प्रकर रथ ॥१४॥ धम्मठीन विमान, मासा कोई जिणितु कंदणं॥ नगगम दोसं अहमे, धम्म सन्न परि हरेड ।।१।। कटप्प विकिञ्चिसि, अभिनग ग्रासरिय सम्मोहा॥ एसान संकिलिला पंचविहा भावणा भलिया॥२॥ दम संजमो बधाया नगामा नप्पायर एस३ परिकम्मे। परि हरण ५ नाग देसण,७चरित अचियत्त संररका ॥३॥
अम्मा मण जीवा, असाह असुत्न पंच विपरीया।। मिती सभेनं, किलितू जीवाण नायव्वं॥४॥
m/sviduival
धम्मदिन वि पुत्रहिन विम-पलोग ठिन मन ० ६००० विमएच ०१
भएणसा २०००
चयसा २०००
तपणा
२०००
कोहं चितिच मा जिदिशतु माय जिलिनालाई जिगिता
प
सीब-सरकापमान
मस्तिोचाया
प्रचियती
a
पार-20
कदम १०
यतिविसिय अभिनासरियासमोर भावों।
१०
२००
१००
१०
अगच१०
साहुन
शुत्तेअसून
असून
नगाम होस गप्पाणायाप्रेसणादोस परिकम्मेलय परिहरगोयया।
यजयं.
190पीवधायज-दिसणायद्याय/GOS
यं. १०
"
१०
१०
१०
१०
अजीम साहुहर
विध धम्मसन धम्म अधम्पस अमन्णे मागसमग्गे अमग्णा
परिहरेइ परिहरेइ सन्न परिहरेड
जीवेजीय प
परिहरेड
रिहरे
VBHATARNADIOSANDASSANNY
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॥इर्या पथिकी रथः॥१५॥ - उपसम धरेण मासा, कोह विमुको यरिय समिन । पुढ पीजिअ रकंतो, अभिहया तेश्यमावेमि ॥१॥ समिति ५ योग३ केंदी,१ बेइंदी २ तेइंदीइ चरिंदी॥ पंचिंदी ५ अजीय सहित अच १० अनिया प्रमुख १० भेद।
सवर धरल
नवलम गिए
सावधगत ६०००
मासा र०००
बयसा २०००
लिया
कोहाबमुक्का माण चिकामा माया विमुको जाहामुका,
५००
८५००मय-५००
य५००
याय पंचिंदीयाय
जीवो १.
अजीवामजान
जान
भाता
डारथा
सनि २००८
यवनत
समिन
असणा सामन १०69
भिडमन समिन
वाशासित रमायल
ठाएगानूरालल
१०१
१०
१००
चमामिएन
पुरककाइयायाम काइय
बहदिवाय
नन् काड्या वानकाइया बास्सइकाजीपी जाबा
जीयो
१०
कलाम
२० अमिहलाते वलि आत.खलानासियात खनालघाड्यातला संवाद लेखा रकमायनि नानि मामि । माय
निमामि
वारदा विधाता परपप्रादेमि.ई लिमामि
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________________
आजोचना रथः॥१६॥ आलोयण परिणओ, मगसा कोढाई यकिन सई॥ पुटपिजी रकंतो, आकंपइ तं वियमि ॥१॥
आकंपइत्ता अएमाण,इना ऊं दि;बायरं व सुहम या।। बन्न सद्दान बहु, जए। अचत्त तस्सेवी ॥२॥
LAKATARA
जिाएगा कपमा ED
प्राजायएगा परिणन BOB
प्राजाया निंदतो ६०००
मासा 2000
वयसा २०००
तएगा २०००
कोहाइ निहिने
मालाचितिकि मायाविलि
किन ५००
जोहाइव शिनि
कबअजीवरकता
५००
ररकता १०
सह
पाणी
फास
अवयलायव
जाधव तस्सेवित विस्त
१००
२००
१००
- १००
मिर
म
प्रदविजापानजीतेन्जीमा ररकतोररकंते। | रकेतो
चाननीय बास्सइजी में रखंतो रकतो
रासहजादायकैती रखतारकली
ररकता
लहानललबहजएण्यम
दिवमिद
अकिएइत रिचडोनि
एभाइवे निॐ गि
जटित
वायरबथा विवऊ मि
जसुङ्मत चिऊनि
चिनने विष केमियपऊ
मिट
RZABNEXAM
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________________
॥रागत्रिकरथ॥१७॥ जे कामराग रहिया, मणसा रेवेसु सह विसयंमि॥ चिन्ता व ल गया, वंति जुआ ने मुगी चंदे॥१॥ चिंतेड़द मिच्छइ,सीई नीससई तहजरेदाहे ।। भच अरोअग मुला, नम्मा पानगइ मरणं ॥२॥
जो कामरागस जो नेहरागरहि जो रिनिराग दिओ
रहिआ.
है०००
पा KCOLLETINOD
1900
मगसा २०००
वयसा २०६०
तणुषा २०७०
देवेसु
मिपतिवण
पापसंदेहेण
गया
परपावरान
MALA
गया
अकिंचएत
विभनयानेमनाय
१७
ननीचंद
| मराभेल तिरि-ग्रेस नरस ५००
५०९ ५०० सह पिसमि रूव निसर्यमा रस विसावा गंधविसर्यम फासविसर्यमा
१०० चितामगरसरायणग- नीसासा ब जरस वई ददया पलंग
गया
गया गया १०
१० पनिहाते अऊपजुआ
मुसिजुआने लव जुनाते ने मुनीवरे मुनाद
मुनीचंदे
मुनी चंदे
सचिचलणे महामनय गया ।ईल गया।
या
१०
१०
जयाने सञ्चजुआने//साश्रम
६.सुनियंत्७/ मुनीटे
मुश्राना
सुनीवंदे
MPONRMANCREASONRARRIRAINRPAN
P
ORE
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________________
जिनाचित्र जे दंसणं य
६०००
६०००
मासा
२०००
पिंड प्राणे पच जा
५००
५००
पढम्य ली लो
२००
दमंच परिहर ता १०
वयसा
२०००
पंति रथमं सा दामि
जिचारित ६०००
नए ला २०००
रुवनुप्रा रूवातीतप्रा
५००
५००
१००
बी यवय जो तय वय लीली वन धियली पंचभ वय जी १०० १०० १०० पायें परिहरणा भोगे यासुरे परिश्रय तो १० परिहरतो हरनो ९.
१०
समय साहू समऊ सा मुनिजुचं वंदामि २ टू वदामि ३ साहू चंदे
तब
हू
ॐ
१०
सा
दे
॥ ज्ञानदर्शन चारित्र रथ ॥ १४ ॥ जेनाएं चित्र मासा, पिंड ज्ञकाल पढमवय जीणो ॥ दष्पं च परिहरंतो, खंतिखमं साहूणं चंदे ॥१॥ पिंडका चिय, पद रूपत्याए मत्रीणो ॥ रूपातितं च पुणे, कम्म स्वयं कुएाइतं मा ॥२॥ दप्पपाषाणा भोग, सुरेई संकिये। सहसा गारो नये पन से वीसी ॥३॥
संकिम सिसागारं भयं विपचिऊ
चीनी
१०
क्र. १०
तो. १०
१०
साहूणं वंदे
लवदे ७ राजम जुस सच्चसा सो
हु
चिसा विचा
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________________
॥पञ्चरकाण रय॥१॥ नाग विकषि यं मपासा, पिंडनमाण सामाइप चय लोगोश नवकार सहिय मुए।गय, कया करिस्सामि भावेण ॥१॥ अपागय अइने, कोडी नियट्टि सागार अपागारा॥ परिमाए. निरपसेसं, संके अध्धाइयं दसहा ॥२॥
JEAAFTERTAIHIFATAFRI
नासचिन चि ६०००
भागमचिन गि
०००
सुविनावि
६०००
CWavirvison
माला २०००
वयसा २०००
नाएगी २०००
५००
पिंडवाणी परत द्या रुसबाग रुवानीय ना५०० ५०० विअ ययलीगी परि हारि वय सहमसंपराज अहरकाय व लीही २०० चयली
यत्रीण
अएसिपा
अभियगह
लीलो १००
असत्ता
संकेयनिय पर
१.
बिदायकवाय
..
याकरिस्सामिमा
नवकार सहि पोरसि सहिय पुरिमटू सहित अ.१०
कासग
अकठाएका
प्रचिल
१०
भाथा.७
अखागय क्या अइन कया क कोरिसहि को नियहि कया कारस्सामि रिस्सामि भावेएन करिस्सामि भाकरिस्सामि भायेग १
वेग ३ भावेए.४
(सागार या करिस्सामि भावेग ५
Fमागारकया/परिमाणकनिरपरेर
सामि भा//कथा करस्सास्स्सिामिभा
परा.
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________________
॥धर्माग रथः॥२०॥ नाणजन मणगुत्तो, दाणेजुत्तोअपढमवयरहो। जिएए विएगो बट्टतो, कोह जयंतो मुगी चंदेगा
moDNADUINDAALANDA
नाएगजुओ। दिविजुयोचरणजुनो ६००० ६०००
EOCO
मपगुचो
वय युत्तो
| नपुगुत्तो २००० २००० 2000 दागजुत्तोय शासजुत्तोय तवेराजुचो जावजुत्तो. ५०० ५००
५०० समयए सुद्धो जीयवयसुद्धो नईयवयसुद्धाचनमवयसुझो पंचमवयसुद्धी १००
१००
५००
उपशाया
एक सिंघधिगमन
वई तो १० भियजबूतोमुरव
सम्पतिवार
यता
सुजयंती
१००१००
१००
विटे.
सांगजयंतीस
मुलिविण
जिरा विणा सिद्धविरामे वहृतो
लीचंद
बेइबिएले
चटुं तो
सुअधिरामे धमथिए। बता
पड़ता
१
.
१०
१०
१०
कोइजयंतो माणजयंती मु- माया-जयंती मुगोवंदे एवंदे.
सुशीद
जोहजयंहासजयतो मुगीचंदे
मुलीचंदे
रिइजयंतोप्राइजयनो घरे.
सीबंदे
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________________
॥कामावस्था रथः॥२१॥ जैनो करन्तिमोहं, मस्सिनि संग सोइंदि। वजिअ वपुसक्कारे, नइति चिन्ते मुणी वंदे॥१॥
जनाकरन्ति जकारन्तिन नाणुमन्ना ई००० ६०००००
make
मासा २००७
चयसालपुएगा
२०००
मोहमपुस्सिव मोई लिरिइने संग ५०० संग५००
मोहं देविधि मारूविलि सग.५०० संग ५००
पक्रियइति
चरइत्तर
अन्तरराझियसयतामा
रहर20
सोइंदि
चरिकंदि १७
फासिन्दि
घाणिन्दि जिनिन्दि
१००
विविसमाप्रयागन्दिर
१०६
१००
रस्सायरल
२०
चलिअम्पु वझिसोहा रेहनिरिक वा विस्मानि सकार सकार. चिरमणे
इविभेगे
सयजचिन्स गए
रस/पिसथल/वकिपा
१०
जए हासजसंसरी JCTOR
१० 104
गयम्भमझ
१०
महाशिन्त थीदेस निरीहगे अदीहरसा-मंगेरइ चिरीपसंत दूहे मुन सुशवर
। सगे बंदे हगे घरे लीचंदै
दहाग अमुच्छ मुत्ति/
मुगाबरे /मुशीयदे
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________________
-
-
-
-
॥ अथ श्री शीलांगादि रथसंग्रह ।।
-
- -
- MORROGRAMM
HERE
१ श्री शीलांगरथना चित्रमा आवेला अघरा शब्दोना अर्थ. जे-जेओ
भयसन्ना-भयसंज्ञा आरंभं-आरंभने पचिंदि-पंचेंद्रि स अजवा-आर्जव सहित, नो-नथी
मेहुणसन्ना-मैथुनसंज्ञा | आउकाय-अपकाय (ना)| अजीव-निर्जिव, जड । सरळता सहित, करति-करता परिग्गहसना-परिग्रहसंज्ञा
|
पाणीना, तेउकाय-अग्निकाय (ना)
| समारंभ-आरंभने,पापने समुत्तिणा-निर्लोभता सहित सोइंदि-श्रोतइंद्रि करावंति-करावता
खंति-क्षमा
तपजुआ-तपयुक्त वाउकाय-वायुकाय (ना) अणुमोयंति-अनुमोदता चख्खिंदि-चक्षुइंद्रि, आंख
जुभा-युक-सहित ससंजमा-संजम सहित
पानना मणसा-मनवडे घाणिदि-घ्राणइंदि, नाक
ते-ते वणस्सइकाय-वनस्पति
सच-सत्य, साधु वयसा-वचनवडे रसणिदि-रसइंद्रि, जीभ
काय (ना),
मुणी-मुनी भोने सोय-शाच, पवित्रता तणुणा-कायावडे फासिदि-स्पर्शइंदि, चामडी बेइंदि-बोरेंद्रि
वंदे-हुँ वांदुर्छ अकिंचगा-अकिंचन, द्रव्य निजिय-जीतीजेणे पुढवीकाय-पृथ्वीकाय(ना) तेइंदि-तेरिंद्रि समदवा-मादवसहित, रहित, पैसा रहित आहारसना-आहारसंज्ञा . मारी विगेरेना | चरिंदि-चौरिदि . कोमळना सहित बंभ-ब्रह्मचर्चा
१ ला श्री शीलांगरथना चित्र बहारनी गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. जे-जे
| मणसा-मनवडे | सोइंदी-श्रोत्रइंद्रिय, कान खंति-क्षमा मुगो-मुनीयोने नो-नहीं; नथी निज्जिय-जीतीछे जेमणे | पुढवीकाया-पृथ्वीकाय(ना) जुभा-युक्त, सहित वंदे-हुँ वांदुछु. ॥१॥ करंति-करेछे; करता | आहारसन्ना-आहारसंज्ञा आरंभ-आरंभने ! वे-तेश्रो
। खंती-क्षमा
BroGre
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________________
Ance
अजव-आर्जव, सरलता सच्च-सत्य
जोर-जोगवडे
सहस्साणं-हजारोन मेयाई-भेदो मजब-मार्दव-कोमळता। सोम-शौच, पवित्रता करणे-करणवढे अठारस-अढार- आहाराइ-आहारादिक मुत्ति-निलभता आकिंचणं-अकिंचनता | सना-संज्ञा
निष्पत्तो-निष्पत्ती ॥३॥ सत्रा-संझा तव-तप ( बंभ-ब्रह्मचर्य
भूपाइ-पृथ्वी आदिक. | करणाई-इंद्रियवाली' चउ-चार संजमें-सजम च-अने
समग+श्रमण, साधु मण इणियो-मनादिक/ सोआई-श्रोत्रादि बोधवे-जाणवा'. जइंधम्मो-यतिधर्म | सीलंग-शीलांग
। बति-होय छे. हवंति-होय छे.
इंदिभायंच॥श्री शीलांगरथ ॥१॥
% 3
जे नो करंति मणसा, निजिय आहारसन्ना सोइंदी॥ पुढवीकायारंभ, खंतिजुआ ते मुणी वंदे ॥१॥
ये नो कुर्वति मनसा, निर्जिताऽऽहार संज्ञा श्रोत्रेन्डियाः॥
पृथिवीकायारनं, कान्ति युतान् तान् मुनीन् वंदे ॥१॥ आहारादि चार संज्ञा तथा श्रोत्रादि पांच इंडियोना विषयना जीतनार तथा क्षमा ( शांति ) वमे सहित एवा जे मुनिराजो मनथी पृथ्वीयादि जीवनो आरंन नथी करता तेने हुं वांदु . ॥१॥
खंतीय मद्दवजव, मुत्ती तव संजमे अ बोधवे॥ सञ्चंसोयं आकिं, चणं च बंभं च जइधम्मो॥२॥
GGBOARD
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________________
कान्ति मार्दव मार्जवं मुक्तिः तपः संयम व बोधव्याः ॥
सत्यं शौच माकिञ्चन्यं, च ब्रह्म च यतिधर्मः ॥ २ ॥
शांति, मृडुता, सरळता, निलजता, तप, संयम, सत्य, शौच, अपरिग्रहधारिप ने ब्रह्मचर्य एटला (दश) यति (साधु) ना धर्म बे. ॥ २ ॥
जो करणे सन्ना, इंदिय भूमाइ समणधम्मोय ॥ सीलिंग सहस्साणं, अठ्ठारसगस्स निप्पत्ति ॥ ३ ॥
योगः करणं संज्ञा, इन्द्रियं भूम्यादि श्रमण धर्मश्र ॥
शीलांग सदस्राणां अष्टादश सहस्र निष्पत्तिः ॥ ३ ॥
योग, करण, संज्ञा, इंडिय, भूमिं विगेरे ने श्रमण धर्म या बने क्रमपूर्वक बोलतां अढार हजार ( जांगा ) शीलांगरथना थाय बे. ॥ ३ ॥
करणाई तिण्णि जोगा, मणमाइणिओ हवन्तिकरणाई (भेयाइं ) ॥ आहाराई सन्ना, चउ सोआ ईदिया पंच ॥ ४॥
करणानि त्रीणि योगा, मन यादीनि तु जवन्ति करणानि ॥ आहारादयः संज्ञा चतस्रः श्रोत्राणि इन्द्रियाणि पञ्च ॥ ४ ॥
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________________
॥
१
शालागादि रथसग्रह.॥४॥
GEOGGAGE
(करवं, करावq अने अनुमोदb) ए त्रण करण अने (मन, वचन अने काय)आ योग क्रियामा | साधनरुप . थाहार, नय, मैथुन थने परिग्रह ए चार संज्ञा जे. श्रोत्र ( कान ) चक्कु (आंख) अने घाण (नाक) रसना (जीन) अने स्पर्श ( चाममी) ए पांच इन्जियो बे. ॥४॥
. नूम्यादयो नव जीवा, अजीव कायश्च श्रमण धर्मश्च ॥
. दान्त्यादि देश प्रकारः एवमिति प्रनावये देतां ॥ ५॥ पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु, वनस्पति, बेन्ज्यि, तेन्जिय, चौरेन्ष्यि, पंचेन्द्रिय ए पृथ्व्यादि नव जीवकाय तथा अजीवकाय एम दश काय . तथा बीजी गायामां कह्या मुजब दश प्रकारनो श्रमण धर्म एवी | रीते आ मूळ गाथानी नावना करवी. ॥५॥
पृथिवि आपः तेजः, वायुः वनस्पति सन्जिय त्रीनिधये ॥ - चतुष्पञ्चेन्ड्यि जीवाऽऽरम्नं वर्जयेद् दशधा ॥६॥ पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु, वनस्पति, बेन्जिय, तेन्जिय, चौरेडिय अने पंचेन्द्रिय तथा अजीव एप्रमाणे | ए दशनो दश प्रकारे आरंन वर्जे. ॥६॥ (श्रा रथनी पांचमी तथा बही गाथा मूळ मळो भावी नयी.)
SONGrenoNOMICROPare
Reut
५ जा दसविध चक्राळ सामाचारी रयना चित्रमा आवेजा अवा शब्दोना अर्य. मणगुचो-मनगुप्तिवाळो | सहिडी-सम्यक दर्शन सहित य-अने, वळो । इरिय-र्या-वालवामा ।
सदोष वयगुत्तो-वचनगुप्तिवाळो सच्चरणी-चारित्र सहित मामो-मान, अहंकारवाळो सपिभो-समितिवाळो गिहिनिख्खिाग-रहित कायगुत्तो-कायगुप्तिवालो पसमिय-उप्रशांत पाम्पोछे | मायो-कपटवाळो भासा-भाषा
आहार लेयो सन्नाणी-संज्ञा सहित । कोहो-कोर | लोहो-लोपत्राको एसगा-पगा, बेंताली-डिग छेवू, ग्राग करवू
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________________
शीलागादि रथसंग्रह ॥ ५ ॥
காடுரனூர்
रिकरण - प्रक्षेप करवो परिवण-पठव जिए - जीवोने रख्खंतो- रक्षण करतो
आउ - अपकाय (ना) इच्छाकारी - आपनी इच्छाहोय तो ( पण मारा वलात्कारथी नहि ) अ
मुक करूं
मिच्छाकारी - कंपण दोष लाग्यो होय ता (मिच्छामि दुकडे) मारुं पाप मिथ्या
मनगुत्तो- मनगुप्तिवाळो सन्नाणी- सम्यक् ज्ञानवाळो समयको हो - उपशांत क्रो
वा
इरियसमिओ-इर्या समि
तिवाळो
याओ एम कहे ते. तहत्तिकारी - गुरु जे आज्ञा करे ते (तहत्ति) तेमज अथवा आप कहो छो ते प्रमाण एम कही तेमना
पुढवीजिए - पृथ्वी कायना जीव
का प्रमाणे कर. आवस्सियकारी - कंड अवश्य कामने माटे उपाश्रयनी बहार जनुं पडे त्यारे " आवस्सहि" एम कहेतुं ते निस्सिहिय-बहारतुं काम करी उपाश्रयमां पेसतां
• पुछते दणकारी आहार लावी गुरु आदिकने बतावी आप मने आयी लइ पावन
करो एम कहे ते. निमंत्रणकारी - साधर्मिक
वीजा दसविध चक्रवाळ रचना चित्र बदारनी गाथा योना अधरा शब्दांना अर्थ.
समाचारी
रख्खंतो- रक्षण करतो इच्छाकारी - इच्छाकार स माचारवालो
जुचो सहित इच्छा - इच्छाकार, इच्छा कारेण कहे ते मिच्छा-मिच्छाकार -मि
नमो-नमस्कार थाओ तस्स - तेवा मुनीने ॥ १ ॥ गुत्ति-गुप्ति नाणा - ज्ञानादिक विगं - त्रिक; त्रण
च्छामिदुकडं देवं ते तकारा - तहत्तिकार - गुरु कहे ते तइत्ति (प्रमाण) एम
कहे
" निस्सिहि" एटले बहारतुं कामनिषेध एम कहे ते आपुच्छकारी - गुरुने एकवार पूछते अथवा पोमाटे पूजते. पडिपुच्छाकारी - एकथी वधारेवार ( परने माटे )
विगेरेने आहारने माटे निमंत्रणा करवी वे संपदा एटले पोताना गच्छ भणकुं अथवा गुरु आज्ञाथी परगच्छना आचार्य पासे जड़ तेमनी रजा लइ हुं मागुरुनी आज्ञाथी आपनो पासे रही भणत्रा इच्छु एम कही तेमनी पासे भतुं तथा अधिकज्ञान
मेळवते.
कोहाइ- क्रोधादिक चार कषाय पसमिय- प्रशांत धरला समि-समिति
पण - पांच चवळी अने भोमाइ- पृथ्वीकायादिक चक्कसमायारी - चक्रवाळ
29/1
॥५॥
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________________
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ६ ॥
आवस्सही - आवसिहि, उपाश्रयनी बहार जतां आवस्तिही कवी ते निस्सिहि-निस्सिहि-बहारथी अंदर आवत बहारनुं
काम निषेधवारूप निस्सिहि कवी ते. आपुच्छकारी - आहारादिक गोचरी माटे एकवार रजा
मागवी ते
पडिपुच्छं-- एक करतां वधारेवार पुछ ते च्छंदा - आहार लावी गुरुदिकने बतावो मांथकवा क
निमंत-सार्मिकोने निमंत्र करते उवसंपयाकारी - ज्ञान भ
माटे पोताना गुरु
निश्राये पण ते
॥ श्री दसविध चक्रवाळ सामाचारिरथ ॥ २ ॥
मणगुत्तो सन्नाणी, पसमिय कोहो य इरिय समिओय ॥ पुढवीजीए रख्खंतो, इच्छाकारी नमो तस्स ॥ १ ॥
मनोगुप्तः सञ्ज्ञानी, प्रशमित क्रोध श्रेर्या समित च ॥ पृथिवी जीवान् रक्षन् इच्चाकारी नमस्तस्मै ॥ १ ॥
मनोगुप्तिवमे सहित, सम्यक्ज्ञानवाळो, प्रशांत वे क्रोधादि जेना, इर्यासमितिवाळा, इछाकार समाचारि साचवतो, पृथिवी विगेरेना जीवनुं रक्षण करतो जे, (होय) तेने नमस्कार था ॥ १ ॥
गुत्ती नाणाइतिगं, पसमिय कोहाइ समिइ पणगं च ॥ भोमाई रख्खंतो, चक्क समायारि जुत्तो य ॥ २ ॥
gree Q
॥६॥
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________________
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ७ ॥
गुप्ति ज्ञानादि त्रिकं, प्रशमित क्रोधादि समिति पञ्चकं च ॥ म्यादीन् रक्षन्, चक्र समाचारी युक्तश्च ॥ २ ॥
प्रशमित कर्या
क्रोधादिक ते जेणे एवो, त्रण गुप्ति, ज्ञानादिकत्रिक, पंचसमिति ने पृथ्व्यादिक जीवोनुं रक्षण करतो, चक्रवाळ समाचारि युक्त होय. ॥ २ ॥ इवा मिथ्या तथाकार, यावश्यिकी नैषेधिकी च ॥ . प्रचन्ना प्रति प्रश्न: बन्दना तथा निमन्त्रणो संपदा दशधा ॥ ३ ॥ saro fnar ( मिठामिदुक्क मं देवुं ), तह त्ति करवी, जतां यावस्सदी कदेवी, यवतां निस्सिदी कदेवी, प्रछना ( कोइ कार्य माटे गुरुने पूवुं ), प्रतिपृष्ठा ( वारंवार पूबवुं ), बंदना (कोइ पण साधुने निमन्त्रण कर ), निमंत्रणा ( आहार लाव्या पहेलां निमन्त्रण कर), उपसंपदा ( ते ज्ञानादिकनी श्रद्धा करवी, एम दस प्रकारे साधुनी सामाचारी बे ॥ ३॥
अथ श्री श्रीजा खामणा रथना चीत्रमां आवेला घरा शब्दांना अर्थ.
कामने अनुमोदनार नाणी - सम्यक्ज्ञानी दिठ्ठी - सम्यकदृष्टि चरणी - सम्यक् चारित्र
वाळो
नियमियअसणोअ - निय
कयच उसरणो- अरिहंत, सिद्ध, साधु अने जैनधर्म
ए चारनुं शरण करनार गरिहियदुकडो- पापनी
निंदा करनार सुकाणु मोयण - सारा
मित आहारवाळो नियमियपाणोअ - नियमित पाणी पीनार नियमिय खाइमोअ - नियमित खादिम वापरनार नियमिय साइमोअ - नियि
मित स्वादिमवाळो नाण- ज्ञान (ना) अइयारं - अविचारने दंसणं-दर्शन (ना) चरण - चारित्र (ना) तब-तप (ना)
Q By ই ঊকই ঊke ঊ- Boy Goes G
119 11
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________________
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥७॥
DBOORDEGOR.
saree
विरिय-वीर्यवल (ना) वाउ-चायग (ना) अरिह-अरिहंतनी ओहि-अवधिज्ञानीओनी आलोइय-आलोवीने वण-वनस्पति (ना)
समख्खं-समक्ष
मणजीण-मनःपर्यवज्ञानी पुढवि-पृथ्वीकाय (ना) बेइंदी-बेरिद्रि जीए-जीवोने
खमावेमि-खमावुछ तेइंदी-तेरिदि
मुयजीण-श्रुतकेवळीनी आउ-अपकाय (ना);पा- चरिंदी-चउरिद्रि
सिद्ध-सिद्धोनी
साहू-साधु महाराज (नी)। 'णी (ना) पंचिंदी-पंचेंद्रि
गणहर-गणधरोनी देव-देव तेउ-अग्नि (ना) अजीए-अजीवोने
केवली-केवळज्ञानीओनी | अप्प-आत्मानी त्रीजा खामणा रथना चित्र बहारनी बुटी गाथाना शब्दोना अर्थ. कयचउसरणो-चार शरण समख्खं-समक्ष
__आराधनाने | पुण-वळी करनार खमावेमि-खमावुछ ॥१॥ | परम-मोटो, उत्कृष्ट ॥२॥ सहसा-हजार नाणी-ज्ञानी अरिहंत-अरिहंत भगवान चउ-चार
अट्ठारस-अढार नियमिय-नियमित कर्यु सिद्ध-सिद्धभगवान सरण-शरण
हवंति-थाय छे छे जेणे. साहू-साधुओने
नाण-ज्ञान
गणहर-गणधर' असणो-अशन, भोजन धम्मायरिए-धर्माचार्योने असणाइयारं-अशनना अ- | ओहि-अवधिज्ञानी नाण-ज्ञानना य-वळी
तिचारने य-अने अइयार-अतिचार
संघउ-संघोने
पुढवाइ-पृथ्वी आदिक मणयजीणाणं-मनःपर्यवज्ञानी अलोइअ-आलोवीने वंदे-नमस्कार करुंछु जीवगाइणं-जिवादिकोना | सुयजीण-श्रुत केवळी पुढवि-पृथ्वीकायना वुच्छामि-कहीश
आराहणगाणं-आराधन-क- देव-देवनी- . . . . जीए-जीवोने समासेणं-संक्षेपे, टुंकामा
रनाराओने | अप्प-आत्मा अरिहंत-अरिहंतनी पज्जंताराहणं-मरण वखतनी रासीणं-समूहने | सख्खीहिं-साक्षीए ॥४॥
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॥३॥
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शीलांगदि रथसंग्रह. ॥ ए॥
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॥ अथ श्री दामणारथ॥ ३॥ कयचउसरणो नाणी, नियमियअसणोअनाणअइयारं॥ आलोइय पुढविजिए, अरिहसमख्खं खमावेमि॥१॥
कृत चतुश्शरणो ज्ञानी, नियमिताऽशन श्चातीचारम् ॥ _ आलोच्य पृथिवी जीवान् , अर्दत् समदं दमयामि ॥१॥ चार शरणने करनार, मित आहारवाळो ज्ञानी एवो हुं अतिचारने आलोग्ने पृथ्वी विगेरेना जीवोने अरिहंतनी साहीए. खमा. ॥१॥
अरिहंत सिद्ध साहू, धम्मायरिए अ संघउ [जओ] वंदे॥ बुच्छामि समासेणं, पजता राहणं परमं ॥२॥
' अर्हत् सिद्ध साधून, धर्माचार्यान् च संघं तु वंदे ॥
वक्ष्ये समासेन पर्यन्ताऽऽराधनं परमं ॥२॥ (पागंतर) .... अरिहंत, सिद्ध, साधु, धर्माचार्य अने संघने हुं वांऽबुं अने संदेपे करीने उत्कृष्ट एवं पर्यंत (वटर्नु) आराधन हुं कहीश ॥२॥ चउसरण नाण असणाइयार पुढवाइ जीवगाइणं रासीणं]॥ आराहण गाणं पुण, सहसा अट्ठारस हवन्ति ॥ ३॥
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शीलांगादि रथसंग्रह.॥ १०॥
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चतुश्शरण ज्ञानाशनाति, चार पृथिव्यादि जीवकादीनां (जीवराजीनां)।
आराधनं पुन: सहस्राण्यष्टादश जवन्ति ॥ ३ ॥ चार शरण, ज्ञान, अशन (नोजन ), अतिचार, पृथ्वी विगेरे जीव समूहर्नु आराधन, ए प्रमाणे अढार हजार थाय डे ॥३॥
अरिहंत सिद्ध गणहर, केवली ओहिय मण जिणाणंच ॥ सुयजिण साहु समख्खं, देवतह अप्प सख्खीहिं ॥४॥
अईत् सिद्ध गणधर, कवलि अवधि मन:पर्यव जिनानां ॥
श्रुत जिन साधु समदं, देवस्य तथा आत्म सादिनिः॥४॥ अरिहंत, सिद्ध, गणधर, केवळी, अवधिजिन, मनः पर्यवजिन, श्रुतजिन, साधु, देव (श्रावक) तथा पोतानी साक्षीवमे खमाबुलु. ॥४॥
श्री श्रमण धर्मरथना चित्रना अघरा शब्दोना अर्थ. | न हणेइ-नयी हणतो. संवुडओ-संवृत ... मुत्त-मुक्त .
| घाणिदी-घाणइंद्रिने नासिनेव हणावेइ-हणावतो नथी रहिओ-रहित
परिग्गह-परिग्रह
काने हणतं-हणताने
भयसनाए-भयसंज्ञावाळो । सोइंदि-श्रोत्रइंद्रि | निम्भिदि-जीमइंद्रिने, रसना अणुमन्नइ-अनुमोदे वजिओ-वर्जित
संवरणो-वश राखनार
इंदिने आहार सनि-आहारसंज्ञा | मेहुण-मैथुन
चरिखदी-चक्षु इंदिने फासिदि-स्पर्शइदिने
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शोलांगादि रथसंग्रह.॥११॥
खंतिसंपनी-क्षमाए संपूर्ग [मुति-निर्लोभतायाळो
सच संजुत्तो-सत्य युक्त विमुक्को-रहित मद्दवजुत्तो-मार्दव (कोपळ - | तव समाउत्तो-तपयुक्त
सोयसंजुत्तो-शौच युक्त वंभचेरठिओ-ब्रह्मचर्यमांस्थित, ता) युक्त | संजमंमि-संजमने विषे अजब-आर्जन (सरळता) | थिरो-स्थिर
किंचण-कंइपग
ब्रह्मचर्य पाळनार श्रमण धर्मरथ बहारनी गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. हणेइ-मारे
संवुडओ-संवृत्त, रोकनार | करणाइं-करणादि-करवू, क- आहाराइ-आहारादिक सयं-पोते . सोइंदी-श्रोत्रंद्रि, कान
राबवु अने अनुमोदबुं सना-संज्ञाओ संवरणो-वश राखनार साहू-साधु
तिनि-त्रग
चउ-चार पुरविजीए-पृथ्वीकायना मणसा-मनवडे
जीवोने
जोगा-मन वचन कायाना योग सोया-श्रोत्रादि आहारसंनि-आहारादि सं. खंति-क्षमा
मणमाइणिउ-मनादिक इंदिया-इंदिगो ज्ञाथी | संपन्नो-युक्त ॥१॥ हवंति-छे
पंच-पांच NRU REAKIKIKAKIKI ॥ श्री श्रमणधर्म रथ ॥४॥
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न हणेई सयं साहू, मणसा आहारसन्नि संवुडओ। सोइंदीसंवरणो, पुढवि जिए खंति संपन्नो ॥१॥
न हन्ति स्वयं साधु मनसा, आहार संझा संवृत्तः ॥ .श्रोत्रेन्स्यि संवरणः पृथिवी जीवान् शान्ति संपन्नः ॥१॥
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आहारादि संज्ञाथी संवृत, पांचे इन्धियोनुं संवरह करनार, दमायुक्त साधु पोते पृथियो । र, जीवोने मनवमे हणतो नथ। ॥ १॥
करणाइं तिनि जोगा, मण माईणिउ हवन्ति करणाइं॥ आहाराई सन्ना, चउसोया इंदिया पंच ॥२॥
करणानि त्रीणि योगा, मनादीनि तु जवन्ति करणानि ॥
आहारादयः संज्ञाश्चतस्रः श्रोत्राणि इन्ज्यिाणि पञ्च ॥॥ त्रण करण, करवं, करावq तथा अनुमोदq. अने मन विगैरे त्रण एटले मन, वचन अने काय ते रीते त्रण जोग थाय. आहारादि चार संझाओ ने श्रोत्र इंद्रियादिक पांच इंजियो. ए रीते बोल साथे जोमवाथी आ रथ थायडे. ॥॥
शोलागादि रथसंग्रह. ॥१५॥
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समाचारि अथवा नजरथ ५ माना चित्रमा आवेला अघरा शब्दोना अर्थ. भई-कल्याण
जईण-यत्न करनार | वायग-वाचक, उपाध्याय | अबंभ-अब्रह्मचर्य वुट्टी-वृद्धि
जिणवयण-जीनेश्वरोना वचन | पाणिवह-पाणीनो वध परिगह-परिग्रह कित्ती-कीर्ति . गण-गच्छ
अलिय-अलिक-जुहूं राईभोयण-रात्रिभोजन नाण-ज्ञान थुइ-स्तुति वय-व्रत
कोहाउ-क्रोधथी जुयाणं-युक्त
कराणं-करनाराोने तेय-स्तेय-चारी माणाउ-मानथी दिठि-द्रष्टि सिद्धि-सिद्धि
नियत्ताणं-नियममा राखनार, मायाउ-मायाथी चरण-चारित्र । सरि-आचार्य
कबजे रोखनार | लोहाउ-लोभथी
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शीलांगादि रथसंग्रह ॥ १३ ॥
● Qoutes प्रकर
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इच्छाकारं - इच्छाकार भणंताणं भणताने मिच्छाकारं - मिच्छाकारीने
भद्दे - कल्याण
नाण- ज्ञान जुआ-युक्त जिण - जीनेश्वरोनां
तहत्तिकारं - तहत्तिकार आवस्सिय- आवरसहि निसिद्दियं - निस्सिहि ५ मा समाचारी रथ बहारनी करा - करनार (ने) पाणिवह - प्राणीनोवध, जीव हिंसा
नियत्ताणं - नियममां राखनार इच्छाकारं - इच्छाकारने भणतागं-भणनारा
वयण- वचन
धुई-स्तुति
आपुच्छणा- आपुच्छकारी समाचारी पडिपुच्छगा - फरी पुछते गाथाना अघरा शब्दोना सामायारि-समाचारी नो
रहो- स्थ
पंच-पांच
नमुकार - नमस्कार सारहि - सारथी ए निउत्तो-जोडेलो
छंदणाच्छंद्रना निमंतणा - नोतरुं देवं - कहेतुं उवसंवया - उपसंपदा
अर्थ
नाण- ज्ञान तुरंगम-घोडा जुतो - युक्त नेइ-लइ जाय छे फुडा-स्फुट, प्रगट परम- मोटुं निव्वाणं - मेक्षि
॥ श्री सामाचारीरथ ॥ ५ ॥
भई नाण जुयाणं, जिणवयण जिणथुई कराणं ॥ पाणिवह नियत्ताणं, इच्छाकारं भणंताणं ॥ १ ॥
ज्ञान युतानां यतोनां जिनवचन जिन स्तुति कराणं ॥ प्राणिवध निवृत्ताना, मिवाकारं जातां ॥ १ ॥
जिनना वचननी स्तुति करनार, ने जिननी स्तुति करनार, ज्ञान सहित, प्राणीवध (घात) श्री निवृत्त थला ने इछाकार समाचारीने साचवता (जणता) एवा यतिश्रनुं कल्याण थायो ॥१॥
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॥९
॥
शीलागादि रथसंग्रहः ॥१४॥
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सामायारीइ रहो पंच, नमुक्कार सारहि नियुत्तो॥ नाण तुरंगम जुत्तो, नेई फुडो परम निवाणं ॥२॥
सामाचार्याः रथः पंच नमस्कार सारथि नियुक्तः ॥
ज्ञान तुरंगम युक्तो, नयति स्फुटः परम निर्वाणं ॥२॥ _____पांच नमस्काररुप सारथिवाळो, ज्ञानरुप घोमाथी युक्त, एवो सामाचारीनो स्कूटरय परम | निर्वाण प्रत्ये लश् जाय ॥२॥
AKALENLARKHANNEL ६ग नियमरथना चित्रमा आवेला अघरा शब्दोना अर्थ. अविरय-अविरति | चय-वचनना
| अवट्ट-अपार्ध
तेटलं अन्न अणसण-अनशन तणु-कायाना
आहारो-आहारवाळो भिख्ख-भिक्षा (थी) मण-मनवाळो सुदव्वत्त-सारा द्रव्यपगानो । अद्ध-अर्चा
गेह-धेर देसअणसणमणो-देशथी अ- | अणुकोसो-अहंकार रहित पत्त-माप्त
दव्व-द्रव्यवडे नशनना मनवाळो | सुखित्तत्त-साराक्षेत्रपणानो | किंचूणो-काइक
आंबिल-आंबिल तपवाछु सव्वअणसणमणो-सर्व अण- | सुकालत्त-सारा कालपणामां| सिध्य-अन्नना दाणा (थी) सु-रुडो सणना मनवाको सुभावत्त-सारा भावपणानो
सिक्थ अलेव-लेप विनानी चीन(थी। मण-मन
अप्पाहार-अल्प आहारवडे | तवो-तप करनार इगहाणी-एक्केकनो हानी संलोणो-सलीनतावाळो, सं- | उणुदरिओ-उनोदरिवाळो-भू- कवल-कोळीया (यो) | इग-एक
कोची राखनार | ख करतां ओछु जमनार | दत्ति-एकवारमा जेटलु अपायुं भत्त-भोजन
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17॥१५॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ १५॥
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खीरम-धने दहि-दहिने | गुडं-गोळने
मंसं-मांसने अवि-पण घयं-गीने कडाई-तळावेला
मरुखण-माखण वजे-वर्ने : | तिल्लं-तेलने
| मज्ज-मदिराने
महुं-भध ६ वा नियमरथ बहारनी गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. अविरय--अविरति अप्प-थोडं
| वज्जे-वर्जे ॥१॥ मज्ज-मद्य अणसणमणो-अनशनना मन- आहार-आहारवडे खीरं-दुधने .
मंसं-मांस वाळो | उणुदरियो-उणोदरि करनार | दहि-दहिने
मख्खण-माखण मण-मनने सिथ्थतवो-अन्नना दाणाथी | घयं-धीने.
महुं-मध संलीणो-संकोची राखनार तप करनार तिल्लं-तेलने
भवे-थाय सुदबत्त-सारा द्रव्यपणानो खीरं-खीरने .
गुड-गोळ
दसहा-दस प्रकार ॥२॥ तणुक्कोसो-शरीरने कष्ट देनार अवि-पण
ओगाहिम-तळेला पकवान
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॥ श्री नियमरथ ॥ ६॥ अ विरयाण सणमणो, मणसंलीणो सुदवतणुक्कोसो॥ अप्पाहारोणुदरिओ, सिथ्थतवो खीरमवि वजे ॥१॥
अविरतानशन श्रमणः, मनः संखीनः सुव्य त्वानुत्कर्षः ॥ अल्पाहारोनोदरिकः, सिक्थ तपाः दीरमपि वर्जयेत् ॥१॥
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॥१६॥
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥१६॥
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___ अविरत (उपवासादि विना) नूख्यो रहे, मनवमे सन्लीन, सारा अव्यपणाना अहंकारथी बारहित, अल्पाहारथी छनोदरी करनार, सक्थथी. (एक दाणानी संख्यावमे) तप करनार साधु दूधने पण वर्जी दे (खाय नदि) ॥१॥
खीरं दहिं घयं तिलं, गुडओ गाहि मज विवजं ॥ __मंसं मख्खणवज्जे, महुमविवज्जे भवे दसहा ॥२॥
दीरं दधि घृतं तैलं, गुमोऽवगादिम मद्यपि वर्जम् ॥ ॐ मांसं म्रक्षणं वर्जयेत्, मध्वपि वर्जयेत् नवे दशधा ॥२॥
दूध, दहिं, घी, तेल, गाळ, तळेलां पकवान, मद्य, मांस, माखण, मध था दस विगई (विकृति) ने डोमी दे. ॥२॥
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मा निंदारथना चित्रमा श्रावेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. मोहवसेणं-मोहना वशथी | तिरिय-तिर्यंच (ना) फास-स्पर्श
कोह-क्रोध रागवसेणं-गगना वशथी | नारय-नारकी (ना) असण-आहार
माण-मान-अहंकार दोसवसेणं-द्वेशना वशथी सद्द-शब्द
सन्नाए-संज्ञाबडे
माया-कपट देव-देव (ना) रुख-रुप भय-भयनी
लोभ-लोभ मणुअ-मनुष्य (ना) रस-रस .
मेहुण-मैथुन ।
ओघ-ओघ भवे-भवने विषे गंध-गंध : परिग्गह-परिग्रह
लोग-लोक
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जं-जे
.
___ शीलांगादि रथसंग्रहः ॥ १७ ॥
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अखंतिमंतेण-अक्षमावान | अतवमतेण-तप रहित अकिंचण मंतेण-आर्कचन मे में अमहवतेण-मार्दवरहित एवा में असंजममतेण-असंजमवाव्य ।
वाळा बद्ध-बांध्यु
अणज्जवंतेण-सरळता रहित | असच्चमंतेण-असत्यवाळा | अबंभमतेण-अब्रह्मवाळा पावं-पाप
अमुत्तिमंतेण-निलेभतारहित | अस्सोयमंतेण-अशौचवाळा | ..
" मा निंदारथ बहारनी गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ.... मोहवसेणं-मोहनावशथी | मे-में
| राग-रागने विषे
च-वळी मणसा-मनवडे बधं-बांध्यु दोसे-द्वषने विषे
पंच-पांच देवभवे-देवना भवमा पावं-पाप
विसय-विषय
मण-मन्न : सद्द-शब्दादि पांच विषय अखंतिमंतेण-अक्षमावाळाएवा वयण-वचन
सन्ना-मंज्ञा असण-अशनादि दस | तं-तेने
तणुणि-काया
जधम्मा-यतिर्म सन्नाए-संज्ञावडे निंदे-निंदुछु ॥१॥ गइ-गति
सेवणा-आसेवना मोहे-मोहने | चउक-चतुका चारनोजथ्यो लोया-लोको
॥२॥
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॥श्री निंदारथ ॥४॥
मोहवसेणं मणसा, देव भवे सद्द असण सन्नाए ॥ जं मे बद्धं पावं, अखंतिमंतेण तंनिंदे ॥१॥
मोहवशेन मनसा देव नवे शब्दाऽशन संझ्या ॥ यद्मया बई पापं, अदान्ति दमेण तन्निन्दे ॥१॥
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__ मोहना वशथी, देवादि चार नवोमां, शब्दादि पांच विषयोथी अने अशनादि दस संज्ञा| वझे अदान्तिवाळा में जे पाप मनथी कर्यु , ते पापने निंछ . ॥१॥
मोहे रागे दोसे, मण वयण तणूणि गइ चउकं च॥ पंचविसय दससन्ना, जइ धम्मासेवणा लोया ॥२॥ ___ मोहो रागो मेषः, मनो वचन तनूनि गति चतुष्कं च ॥
पंचविषयाः दश संज्ञाः यति धर्माऽऽसेवना सोकाः ॥२॥ मोह, राग, द्वेष ए त्रण; मन, वचन, काया, ए त्रण; चार गति, पांच विषयो अने दश संज्ञा ले. तेथी रहित थर हे लोको यतिधर्मनी आसेवना करो. ॥२॥
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शीलांगादि रथसंग्रहः॥ १०॥
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७ मा तपरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. नाणरुई-ज्ञाननी रुचीवाळो । उवहि-उपधि (ना).
सुअणुपेही-सारी अनुप्रेक्षा सम्मरुई-सम्यकत्वनी रुची- | सम्मत्तकसाइ-समाप्तकषाये | सुवायणीओ-सारी वाचना
करनार वाळो | अट्ट-आर्तध्यान
. आपनार सुद्धम्मकही-सारो धर्म कहेनार चरण-चारित्र (नी) विवजिओ-रहित
सुपुच्छणीओ-सारो पूछवा गुरु-गुरु रुई-रुचीवाळो रुद्ध-रौद्रध्यान
योग्य वेयावच्चकरो-वैयावच्च करनार देह-शरीर (ना) धम्म-धर्म
सुपरियट्टी-सारुं परावर्तन: वायंग-वाचक विवेगी-विवेकवाळो | सहिओ-सहित
करनार । थविर-स्थविर साधु
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शीलांगादि रथसैग्रद् ॥ १ ॥
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तव - बाह्यतपं अंतरतव - अभ्यंतरतप
साहु-साधु
साहम्मि - साधर्मिक कुल-कुळनी गण- गच्छ (नी)
संघ-संघनी
वैयावच्ची - वैयावच्च करनार सुज्जर-शुद्ध करे आलोइड-आलोइने कोइ कोइ
. पडिकमणो- पडिकमणाथी मीसेन - मिश्रतावडे
छ मां तपरथनी बहारनी गाथायना घरा शब्दोना
नाणरुइ - ज्ञाननीरुचिवाळो (१) | गुरु-गुरु देह - शरीर (ना) विवेगी- विवेकवाळो
अ-आ
विवज्जिओ-रहित सुवायणिओ-सुवाचक
वेयावच्चकरो - वैयावचनो करनार.
सुज्ज-शुद्धि करेले आलोइडं-आलोवीने कोइ कोइ
निरवेरको निरपेक्ष
विवेगओ - सारा विवेकथी उग्गओ - कायोत्सर्ग (थी) सुतवणओ - सारा तपथी निचं - हमेशां छेउ-छेदथी
पडिकपणओ-पडिकमणथी मिसेणउं - मिश्रण करीने विवेग-विवेक उसग्ग-कायोत्सर्ग छेया-छेदथी
मूला-मूल (थो)
सयकाल - सदाकाळ |मूलाउ- मूळपी नरो - माणस
अणवद्वि-अनवस्थितपणामां सम्म सम्यकमकारे
पारविए - पारने जाणनार
अर्थ
य-वळी, अने तहा - तेमज अणवडिय - अनवस्थित तह - तेमज पारंचिए - पारांचित
॥ श्री तपोरथ ॥ ८॥
Trees देहविवेगी, अट्टविवज्जिओ सुवायणिओ ॥ गुरु वेयावच्च करो, सुज्झइ आलोइउं कोइ ॥ १ ॥
॥ १५ ॥
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॥२
॥
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झानरुचिः देहविवेकी, आर्तवर्जितः सुवाचनिकः ।।
गुरु वैयावृत्यकरः, शुध्यति आलोच्य कोऽपि ॥१॥ ज्ञानरुचि, देहविवेकी श्रादि ध्यानथी रहित, सुवाचनिक, ( सारी वाचना थापनार,) 5) गुरुनी सेवा करनार एवो कोइ ( यति) आलोचिने शुद्ध थाय जे. ॥१॥
आलोइउं पडिक्कमणउ, मीसेणउ विवेग उस्सग्गा। __ कोई छेया मूलाय, तहाण वठिय पारंचिए ॥२॥
आलोच्य प्रतिक्रमणत:, मिश्रण विवेकोत्सर्गेच्यः तपोमतिः॥
कोपि बेदात् मूलाच, तथा नवस्थित स्तथा पारांचितः ॥२॥ ___ आलोग्ने प्रतिक्रमण करवाथी, मिश्रणथी, विवेकथी, उत्सर्गथी, तपमा बुद्धि राखवायी, बेदथी, मूळथी, अनवस्थितपणाथी, अने पारांचितथी को शुद्ध थाय ॥२॥
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥३०॥
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ए मा संसाररथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. उदिसि-उर्ध्वदिशिमां । जीवो-जीव
माणी-मानी | सुहहेउ-सुखने माटे अहोदिसि-निची दिशिमा कीव-नपुंशक क्लिव मायी-कपटी
चरिंखदिय-चक्षु इंद्रिय(ना) तिरिय-तिर्छि दिशिमा नारि-नारि, मादा लोभी-लोभी
घाणिदिय-नाक (ना) पुरिस-पुरुष
कोही-क्रोधी | सोइंदिय-श्रोत्र इंद्रिय, कान रसणिदिय-जीभ (ना)
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॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥१॥
फासिंदिय-स्पर्श इंद्रिय (ना'; बेईदिअ-वेइंद्रिय (ना) । लंघेइ-ओळधेछे
समणुभ्भवइ-सम्यकप्रकारे अ-या चामडीना. तेइंदिय-तेइंद्रिय (ना) कम्मस-कर्म, पाप
नुभवे जो-जे
चरिंदिय-चौरिंद्रियना सवग्ग-वर्ग-समुह . सुगई-सारी गति हणइ-मारे-हणे पंचिंदिय-पंचेंद्रियना परचेइ-प्रवर्त
पाउए-पामे पुढवि-पृथ्वीकायना अजीवे-अजीवना
दीह-दीर्घ
भावारिसो-रागदेश, भाव वैजीए-जीवोने सो-ते
ठिई-स्थिति आउ-अपकाय (ना) संसार-संसारने
तीन्व-तीत्र तेउ-अग्निना, तेउकायना परिभ्भमइ-भमेछे रस-रस
निथ्थरइ-काढ वाउ-वाउकायना भवाडवी-भव अटवी बहुपए-घणा स्थानको प्रत्ये सिद्धि-सिदिने वणस्सइ-वनस्पति (ना) | न-न
| दंदोलिं-समुदाय
सुई-मुख ए मा संसाररथनी बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ.॥ उदिसि-उर्ध्व दिसि हे-हेतु
दीहं-दीर्घ पुरिस-पुरुष - जो हणइ-जे हणे ठिइ-स्थिति
दंदोलि-समुदाय जीवो-जीव | भवअडवी-भव अटवी (ने) तिव्व-तित्र
सुगइ-मुगतिने कोही-क्रोधी
भावारि-भावशत्रु कम्मस-कर्मः पाप बहुपए-घणा स्थानक प्रत्ये
सिद्धि-मोक्ष सोइंदियस्स-श्रोतइंद्रियना | वगं-समुह
सो-ते
| सुई-मुख ॥श्री संसाररथ ॥ ए॥
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उढदिसि पुरिसजीवो, कोही सोइंदियस्स सुहहेउं॥ जो हणइ पुढवि जीवे, सो संसारं परिभ्भमइ ॥१॥
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काशा
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ५ ॥
ऊर्ध्वदिशि पुरुषजीवः क्रोधी श्रोत्रेन्षियस्य सुखहेतुम् ॥
यो दन्ति पृथ्वी जीवान् , स संसारं परि--नाम्यति ॥१॥ जे क्रोधी पुरुष जीव उर्ध्व दिशामा इन्जियोना सुखने माटे पृथिवी विगेरेना जीवोने हणे ठे ते संसारमा परिब्रमण करे . ॥१॥ ___ संसारं भवअडवी, कम्म समग्गं दीहठिइ तिवबहुपएसो॥ दुहदंदोलिंजीवो, सुगई भावारि सिद्धि सुहं ॥२॥
संसारं नवाटवीं, कटमषवर्ग दीर्घ स्थिति तीवं (रसं) बहु प्रदेशः॥
दुःखमालिंजीव:, सुगति नावारि सिदिसुखं ॥२॥ संसार, नवाटवी, पापनो वर्ग, दीर्घ (लांबी) स्थिति, तिबरस ने बहुस्थान ब्रमण, दुःखनो समूह, सुगति, नावशत्रुथी निस्तार अने मोक्षसुख आटला पदार्थोमांथी पूर्वोक्त जीव आगळना| सात (पदार्थ) ने मेळवे बे अने पाउळना त्रण (पदार्थ) ने मेळवतो नथी. ॥२॥ ..
१० मा धर्मरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. उड्ढ-उर्व, उंची नारि-नारी
| दाणं-दान , | तब-तपने दिसि-दिशामां, जीवो-जीव वियरइ-आपछे
अणुतप्पइ-तपेछे अहो-नीची, अधो. पुरिस-पुरुष
सीलं-शीयळवत
भावणं-भावनाने तिरिय-त्रिछि | कीव-नपुंसक
पालइ-पाळेछे
भावइ-भावेछ ।
DirenGranGODOGGEORom
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|el॥१३॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ५३॥ REGARDaroGEGOR
विसीय विसयमणो-श्रोत इंदि- द्रियना विषयथी विरक्त | बाउजीए-वायुकायना जीवोने | समद्दवो-मार्दव सहित । यना विषयथी विरक्त मनवाळो
वणजीए-वनस्पतिना जीवोने | सअज्जवो-आर्जव सहित : मनवाळो. विफासविसयमणा-स्पर्श इंद्रिय बेइंदि-बेइंद्रि जीवना ...| समुत्तिणो-मुक्ति सहित चख्खु विसयमणो-चक्षु इंद्रिय | ना विषयथी विरक्त म-| तेइंदी-तेइंद्रिय जीवना तवजुत्तो-तपथी युक्त . . नाविषयथी विरक्त मनवाळो. नवाळो.
चउरींदि-चौरेन्द्रि
ससंजमो-संजम सहित विजिभ्भ विसयमणो-जीभ ई- पुढविजीए-पृथ्वीकायनाजीवोने पंचिंदी-पंचेंद्रियना सच्चजुओ-सत्ययुक्त
द्रियना विषयथी विरक्त रख्खंतो-रक्षण करतो अजीवे-अजीवोने . सोयजुओ-शौचयुक्त मनवाळो
आउजीए-अपकायना जीवोने खंतिखमो-क्षमामा समर्थ | अकिंचणो-इपण परिग्रहरहित विघाणविसयमणो-नासिकाई- तेउजीए-तेउकायना जीवोने | जावजीवपि-जावजीव पण | बंभजुओ-ब्रह्मचर्ययुक्त
१० मा धर्मरथनी बहारनी गाथार्जना बटा शब्दना अर्थ.
पुढविजीए-पृथ्वीकायना जी- त्याग सहित | ससंजमो-संजम सहित नारिजीवो-नारि जीव | वोन | सअज्जवो-आर्जवसहित, स- | सच्चजुओ-सत्य युक्त दाणं-दान रख्खंतो-रक्षण करतो
रळता सहित वियरइ-आपेछे ...
सोअजुओ-शौचयुक्त, पवित्रता विसोय-श्रोत्र इंद्रियना
खंतिखमो-क्षमा करवामां समर्थ समुत्तिणो-मुक्ति सहित, नि.- युक्त विसयमणो-विषयथी विरक्त जावजीवंपि-जावजीव पण | भता सहित . अकिंचणो-कंइपण परिग्रह रहित मनवाळो । समदवो-मार्दव सहित, मान | तवजुओ-तपयुक्त | बंभ-ब्रह्मचर्यव्रत ।
॥श्री धर्मरथः॥१०॥
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उड्ढ दिसि नारिजीवो, दाणंवियरइ विसोय विसयमणो॥ पुढविजिए रख्खंतो, खंतिखमो जावजीवंपि ॥१॥
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॥
४॥
शीलांगादि रयसंग्रह. ॥२४॥
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ऊर्ध्वदिसि नारीजीवो, दानंवितरति विश्रोतविषयमना: ॥
पृथिवी जीवान् रदान, दान्तिक्षमो यावजीवमपि ॥१॥ पांच इन्डीयना विषयश्री विरक्त, दमामां समर्थ, जीवे त्यां सुधी पृथ्वी विगेरेना जीवाने हैरक्षण करनार, उर्ध्व दिशामां नारीनो जीव दान आपे ले. ॥१॥
खंतिखमो समद्दवो, सअजवो समुत्तिणोउ तवजुत्तो॥ सस्संजमो सच्चजुओ, सोअजुओ अकिंचणो बंभं ॥२॥
दान्तिक्षमः समार्दवः, सार्जव: समुक्ति स्तपोयुक्तः ॥
ससंयमः सत्ययुतः शौचयुतोऽकिञ्चनोब्रह्म (धरश्च)॥२॥ कमावसे युक्त, मार्दव सहित, आर्जव सहित, मुक्तिसहित तपथी युक्त, संयमवाळो, साचुं है | बोलनार, शौचयुक्त, निष्परिग्रही अने ब्रह्मचारी. ॥५॥
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११ मा संयमरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. हिंसइ-हिंसा करे हिंसा-हिंसाने
उवेह-उपेक्षा
भासाए-भाषा समितिवडे न-नहि
अणुमन्नइ-अनुमोदना करे | पमज-प्रमार्जना एसणाए-एषणा समितिवडे सयं-पोते पेहा-प्रेक्षा
पारिहावणिआ-परिष्ठापनिका सुगह मुख्खे-जयणाए लेवू हिंसावइ-हिंसा करावे.. .संजम-संजम
मु-सारी रीते
मुक नो-नहि जुओ-युक्त
| इरियाए-र्या समितिवडे परिवओ-पारिष्ठापनिका
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॥२५॥
समितिथी | आपुच्छणाइ-आपृच्छाए सहित सुधी
| वणस्सइ-वनस्पति इच्छाकारेण-इच्छाकारवडे पडिपुच्छणाइ-प्रतिपृच्छाएसहित पुढविकायं-पृथ्वीकायने बेइंदी-बेरिद्रि जुओ-सहित सच्छंदणाइ-च्छंदनाए | (अ)पि-पण
तेइंदी-तेइंद्रि मिच्छाकारेण-मिच्छाकारि तहसिकारेण-तहत्तिकारि
मुनिमंतणाइ-मुनिमंत्रणवडे | आउकायं-अपकाय, पाणी | चरिंदी-चौरिदि आवसिआए-आवस्सिहिवडे | उपसंपयाइ-उपसंपदाए तेउकार्य- अग्नि
पंचिंदी-पंचेंद्रि निसीहि-निसीहिवढे | जाजीवं-ज्यां सुधी जीवं त्यां वाकायं-वायरो
अजीवं-अजीव ..११ मा संयमरथनी बहारनी गाथाउना लुटा शब्दोना अर्थ. हिंसइ-हिंसा करे । पेहा-प्रेक्षा
सु-सारीपेठे
[सुधी
जाजीवं-ज्यां सुधी जीबुं त्यां सयं-पोते संजम-चारित्र इरियाए-इफ समितिवडे
पुढविकायं-पृथ्वीकायने मणसा-मनवडे
जुओ-युक्त, सहित इच्छाकारण-इच्छाकारि | अपि-पण.
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वायरा
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥५॥
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॥श्री संयमरथ ॥ १२॥ हिंसइ न सयं मणसा, पेहासंजमजुओ सुइरियाए॥ इच्छाकारेणजुओ, जाजीवं पुढवि कायपि ॥१॥
हिनस्ति न स्वयं मनसा, प्रेक्षा संयम युतः स्वीर्यया ॥
इच्गकारेणयुतः, यावजीवं पृथिवी कायमपि ॥१॥ .. ... सारी ा समितिबाळो, प्रेदासंयमथी युक्त, श्छाकार नामनी समाचारी सहित एवोसाधु मनवमे पृथ्वीकायने पण जीवे त्यां सुधी पोते नथी हणतो ॥१॥.
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॥१६॥
जो-जे
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥६॥
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१२ मा शुनलेश्यात्रिकरथना चित्रमा आवेली गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ.
| सासाणंमि-सासादन बीयरुइं-बीजरुचि | धारणा-धारणा तेउ-तेजो
खउवसम-क्षयोपशम अभिगम-अभिगम जीअ-जीत, ब्रह्मचर्य लेस-लेश्या सार-सार विथ्यार-विस्तार
ववहारि-व्यवहारवाळो पउम-पद्म वेईय-वेदक किरिया-क्रिया
केवलधारि-केवळज्ञानने धासुक्क-शुक्लं खईय-क्षायक संखेव-संक्षेप
रण करनारो उबक्कमो-उपक्रम निसर्ग-निसर्ग
धम्म-धर्म
मणपज्जव-मनः पर्यव
ओहि-अवधि निख्खेवो-निक्षेपो रुई-रुचिने..
आगमधारि-आगमने धारण
धर-धारण करताने अणुगमो-अनुगम धरतो-घारण करतो
करनारने
चउदस-चौद णओ-नय उवएस-उपदेश नमंसामि-नमस्कार करुंछु
पुचि-पुर्विने उपसमिय-उपशमिक आण-आज्ञा
सुअगणधारिं-श्रुत गणधरने संमत्तो-समकितवाळो सुत्त-सुत्र
आणाधारि-आज्ञा धारिने | पुन्वधरं-पूर्वधर १२ मा शुनलेश्यात्रिकरथना बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. जो-जे
धरंतो-धारण करतो सासणिअ-सास्वादन । सुत्तरुइ-सूत्ररुची तेउलेस-तेजो लेश्यावाळा | आगमधारि-आगममा घा-पंचविहं-पांच प्रकारचें बीयरुइ-बीजरुची मणसा-मनवडे ' रण करनारने च-वळी
अभिगम-अभिगमरुची उवक्कमो-उपक्रम नमंसामि-नमस्कार करुंछ | सम्मत्तं-समकित
विच्छाररुइ-विस्ताररुची उपसमिय-उपशमिक एवा | खइयं-क्षायक
पन्न-कथुछे
किरिया-क्रियारुची संमचो-समिकतवाळो खोवसमियं-क्षायोपशमिक वीयरागेहिं-वितरागोए संखेव-संक्षेपरुची निसग्ग-निःसर्ग... वेयग-वेदक
उवएसरुई-उपदेशरुची धम्मरुइ-धर्मरुची | रुइं-रुचीवाला (ने) स्वसामिअं-उपशमिक आणारुइ-आज्ञारुची | आगम-आगमने धारणकरनार
BEEGGLEBRRORRBara
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सुअ-श्रुतने धारण करनार । जीयंच-जीत व्यवहार, ब्रह्म- | केवल-केवळज्ञानी आणा-आज्ञाने धारण करनार.
मण-मनःपर्यवज्ञानी.. धारणाय-धारणाने धारण क- ववहारो-व्यवहार धारण क- | ओहि-अवधिज्ञानी रनार
.. रनार चउदस-चौद
नव-नव पुन्धि-पूर्वधर पुढमथ्य-एवी रीते पृथक् ।
पृथक
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शोलांगादि रथसंग्रहः ॥१७॥ Dore no one we are one ore
-
॥शुजलेश्यात्रिकरथ ॥१२॥ जो तेउलेस मणसा, उवक्कमो उवसमिअ संमत्तो॥ निसग्ग रुइं धरतो, आगमधारिं नमसामि ॥१॥
यस्तेजो वेश्या मनसा, नपक्रम औपशमिक सम्यक्त्वः॥
निसर्गरूचिंधरन्, आगमधारिणं नमस्यामि॥१॥ • जे तेजो लेश्यावाळा मनवमे, उपक्रममा, औपशमिक ले सम्यकत्व जेनुं श्रने जे निसर्ग | रुचिने धरे ले तेवा आगम धारीने हुँ नमस्कार करुं .॥१॥ __खइयं खओवसमियं, वेयग उवसामिअंच सासणिअं॥
पंचविहं च समत्तं, पन्नत्तंवीयरागेहिं ॥२॥
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रमलांगादिरय संग्रह ।
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कायिकं कायोपशमिकं वेदकौपशमिकं चं शासनीयं ॥ पञ्चविधं च सूत्रं, प्रज्ञप्तं वीतरागैः ॥ २ ॥
वीतरागोए पांच जातनुं सम्यकत्व कर्तुं बे ते या प्रकारे क्षायिक, क्षायोपशमिक, वेदक, पशमिक ने सास्वादन. ॥ २ ॥
निसग्गुवएसरुई, आणरुई सुत्त बीयरुईमेव ॥ अभिगम विथ्थाररुई, किरिया संखेव धम्मरुई ॥ ३ ॥
निसर्गोपदेशरुचिः आज्ञारुचिः सूत्र वीज रुचिरेव ॥
निगम विस्तार रुचिः क्रिया संक्षेप धर्मरुचिः ॥ ३ ॥
निसर्गरुची, उपदेशरुची, सूत्ररुची, बीजरुची, श्रनिगमरुची, विस्ताररुची, क्रियारुची, संक्षेपरुची अने धर्मरुची या दश प्रकारनी रुची जीवने होय छे. ॥ ३ ॥
आगमसुअ आणा धारणा य, जीयं च होइ ववहारो ॥ केवलमणोहि चउदस, दस नव पुवि पुढमध्य ॥ ४ ॥
आगम श्रुताऽऽज्ञा धारणा, च जितश्च भवति व्यवहारः ॥ केवल मनोsवधि चतुर्दश, दश नव पूर्वी प्रथमोऽत्र ॥ ४ ॥
॥ २७ ॥
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॥श्णा
___ आगमने धरनार, श्रुतगुणने धरनार, आज्ञाधरनार, धारणा धरनार, ब्रह्मचर्य धरनार,अथवा ) || जीतव्यवहार धरनार, केवळझान धरनार, मनःपर्यवझानवाळो अवधिज्ञानवाळो चौद पूर्वधर | दशपूर्वधर अने नव पूर्वधर . ४
(पागंतर) आगम श्रुतागुणाऽऽज्ञाधारणा ब्रह्मा च केवलधारी॥ मनःपर्यवावधिधारि, चतुर्दश दश नव पूर्वधारिणाम् ॥ ४॥
शीलागादि रथसंग्रह ॥ २५ ॥
VO. GLORDarareer
१३ मा अशुनलेश्यात्रिकरथना चित्रमा आवेली गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. जो-जे देस-देश
जीए-जीवोने । अज्जव-आर्जवतावाळा किण्ह-कृष्ण राय-राज
ररकतो-रक्षण करतो मुत्ति-निर्लोभता
आउ-अपकाय ठेस-लेश्यावाळो अभिग्गह-अभिग्रहीक
तब-तप
खंतिजुर-क्षमायुक्त नील-नील विवज-विवर्जित
संजम-चारित्र
साहू-साधुन काउ-कापोत अणभिग्गह-अनभिग्रहीक वंदामि-बांदूंछ
सच्च-सत्य इथ्यि-स्त्री अभिनिवेसिय-अभिनिवेषिक मद्दव-मार्दव
सोम-शौच कहाइय-कथाओने संसइय-संशयिक
जुए-युक्त
अकिंचणो-अकिंचन भत्त-भक्त अणाभोगं-अनाभोगिक । स-सहित
बंभ-ब्रह्मवर्ष १३ मा अशुनलेश्यात्रिकरथनी बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. जो-जे
| इथ्थिकहाइ-स्त्री कथाओने विवज-वर्जित | खंतिजुए-समायुक किण्हलेस-कृष्णलेश्यावाळा य-वळी . पुढविजीए-पृथ्वीकाय जीवोने साहू-साधुने मणसा-मनवडे | अभिग्गह-अभिग्रहीक रकंतो-रक्षण करतो । चंदापि-वांदुई
36GOOGRAM
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॥३॥
अभिग्गह-अभिग्रहीक | संसइयं-संशयिक अणाभिगहिअं-अनाभिग्रहोक अणाभोग-अनाभोगीक तहा-तथा
मिच्छत्तं-मिथ्यात्व अभिणिवेसियं-अभिनिवेशिक पंचहा-पांच प्रकारे चेव-निश्चे
होइ-छे (२)
| इथ्यिकहा-वी कथा
भत्तकहा-भक्तकथा देसकहा-देशकथा . तय-तेमन
रायकहा-राजस्था चउ-वार विवज्जते-बनता | धम्मथ्यी-धर्मायों (३)
-
-
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥३०॥
GOOG GAPACID-6 9468-69TAS
ORDERDOSESEGORG
॥ श्री अशुभलेश्यात्रिक रथ ॥ १३ ॥ जो किण्हलेस मणसा, इथ्थिकहाइय अभिग्गह विवजं ॥ पुढविजिएरख्खंतो, खंतिजुए साहूवंदामि ॥ १॥
ये कृष्णलेश्या मनसा, स्त्री कथायां चानियद विवर्जम् ॥
पृथिवी जीवान् रदतः क्षमायुतान् साधून् वन्दे ॥१॥
जे कृष्णलेश्यावाळा मनवमे वर्जित, अनिग्रह मिथ्यात्व अने स्त्रीकथाने वर्जता पृथिवी १ आदि जीवोने पाळे जे तेवा क्षमायुक्त साधुऊने वांउडं. ॥१॥
अभिग्गह मणाभिगहियं, तहा अभिणिवेसियं चेव ॥ संसइय मणाभोगं, मिच्छत्तं पंचहा होई ॥२॥
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३१॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ३१॥ nove an ano man ang
आनियहिक मनानिग्रहिकं, तथाऽऽनिनिवेशिकं चैव ॥
सांशयिक मनानोगं, मिथ्यात्वं पञ्चधा नवति ॥२॥ मिथ्यात्व पांच जातर्नु होय . (१) अनिग्रहिक, () अनन्निग्रहिक, (३) अन्तिनिवेशिक, (s) सांशयिक अने (५) अनानोग. ॥२॥
इथ्थिकहा भत्तकहा, देसकहा, तहय रायकहा ॥ चउहकह विवज्जते, धम्मथ्थी साहू वंदामि ॥३॥
स्त्रीकथा नक्तकथा, देशकथा तथा च राजकथा ॥
चतस्त्रो विवर्जयतो, धर्मार्थिनः साधून वन्दे ॥ ३ ॥ स्त्रीकथा, नक्तकथा, देशकथा श्रने तेमज राजकथा. आ चार विकथाने वर्जता धर्मार्थी साधुने नमुंडं. ॥३॥
BRAORRRRRRRRBIGG
१४ द्वितीय प्रकररथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. धम्मडिओ-धर्मार्थी मनसा-मनवडे | माणं-मानने - अभिउगं-अभियोगिक भावना वि-पण वयसा-वचनवडे मायं-मायाने
आमुरियं-आमुरिक भावना मणुओ-माणस
तणुणा-कायावडे लोह-लोभने पुनहिओ-पुन्यार्थी कोहं-क्रोधने
कंदप्पं-कंदर्प भावना भावना संमोहभावणं-संमोह भावना परलोगठिओ-परलोकाथि जिणित्तु-जीतीने - देवकिन्विसियं-देवकिल्विपिक उग्गमदोसं-उद्गमदोष-आ
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शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ३५॥
ROGROGROGroo
पनारथी (पोतानाथी) दोष परिहरणो वघाय-अकल्पनीक। करीने विनयादिकथी विनय | अमग्ग-उन्मार्ग लागे ते,सगासंबंधीना का- उपकरणनी सेवावडे उप
न करे ते. मग्ग-मार्ग रणथी उत्पन्न थयो ते दोष.
घात थाय ते. | संरख्खणोवघाय-शरीरादि- जो-जीटने लिये उप्पाअणाय-उत्पादना दोष-| जणयं-करनालं
फनी बाबतमा संरक्षण (मूर्छा)
जीव-जीवने काइ पण कारणथी आहा- नाणोवघाय-प्रमादधी श्रुत. वडे करीने उपघात थाय ते.
जीवे-जीवने विषे रमां दोष उपजावी आहार | ज्ञाननी अपेक्षाए उपघात | अधम्मे-अधर्मने विषे लेवो ते जेवा के धात्री थाय ते. | धम्म-धर्म
अजीवं-अजीवने " दोष विगेरे. | देसणोवघाय-शंकादिकवडे | सन्न-संज्ञाने
असाहु-असाधुने विषे एसणादोसं-गवेषण करवी ते करीने उपघात थाय ते | परिहरेइ-परिहरे छे. साहुं-साधुने
तपास करवी ते. चरित्तोवघायं--समितिना भं-! धम्मे-धर्मने विषे असुत्ते-असुत्रने विषे परिकम्मेण-वस्त्र पात्रादि ग- गादिक वडे करीने उप- | अधम्म-अधर्म
सुत्तं-मुत्रने गरवा मठारवावडे उपघात
घात थाय ते. - अमग्गे-उन्मार्गने विषे मुत्ते-मुत्रने विषे ते परिकर्म उपघात. । अचियत्तोवधायं-अपितिवडे . मग्गे-मार्गने विषे | अमुत्तं-अमुत्रने
१४ द्वितीय प्रककररथना बहारनी गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. धम्मट्टीओ-धर्मार्थी | उग्गमदोसं-उद्गम दोषने, ।
भावना | संकिलिछा-संक्लिष्ट वि-पण
आपनारथी दोष लागे ते. | कंदप्प-कंदर्प भावना पंचाविहा-पांच प्रकारनी मणुओ-मनुष्य
अहम्मो-अधर्मने विषे अभिउग-अभियोगिक भावना| भावणा-भावना मणसा-मनवडे धम्म-धर्मनी
आसुरिय-आसुरिक भावना | भणिया-कहेली के कोहं-क्रोधने सन्न-संज्ञाने
सम्मोहा-सम्मोह भावना दस-दश जिणित्तु-जीतीने परिहरेइ-परिहरे छे एसा-ए
संजम-चारित्र कंदप्पं-कंदर्पने देवकिन्विसि-देवकिल्विशिक | उ-तो
| उवधाया-उपघात करनारा
RROGRA6GORRRRRRROR
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शीलागादि रथसंग्रह. ॥ ३३ ॥
Que Data ট ঊক
उगम - उद्गम दोष सगा संबंधीना कारणथी उत्पन्न थयो ते आपनारथी दोष
लागे ते.
उपाय - उत्पादन दोष, कांइ पण कारणथी आहारमा दोष उपजावी आहार लेवो जेवा | के धात्री दोष विगेरे एसणा - गवेषणा करवी, तपा
स करवी ते. परिकम्मेण - वस्त्रपात्र गठारवा मारवावडे उपघात थाय ते
परिकर्म उपघात परिहरण - अकल्पनीक उपकरणनी सेवा बडे जे उप
घात थाय ते. नाण-प्रमादथी श्रुतज्ञाननी अपेक्षाए उपघात थाय ते. दंसण- शंकादिकवडे करीने
mat
उपघात थाय ते, चरित-समितिना भंगादिकवडे करीने उपघात थाय ते. अचियत्त - अप्रितिवडे करीने विनयादिकथी विनय करवो ते संरख्खा - शारिरीक संबंधी मूर्छावडे उपघात थाय ते. अधम्म-अध अमग्ग-उन्मार्ग अजीवा - अजीव
असाहु-असाधु अमुत्त- असुत्र पंच-पांच
विवरिया - विपरीत मिच्छत्तं मिथ्यात्व दसभेयं दश भेदवाळं किलिङ- माठा परिणामवाळा,
लिष्ट
जीवाण - जीवोने
नायन्त्रं - जाणवो
॥ श्री द्वीतीय प्रकररथ ॥ १४ ॥
धम्मट्ठीओ विमणुओ, मणसा कोहं जिणित्तु कंदष्पं ॥ उग्गमदोसं अहमो, धम्मसन्नं परिहरेइ ॥ १ ॥ धर्मार्थ्यपि मनुजः मनसा, क्रोधमपि जित्वा कन्दर्पम् ॥
उद्गम् दोषम धर्मे, धर्म संज्ञां परिहरति ॥ १॥
मनव क्रोधाने कंदर्पने (कामने ) तथा उद्गमदोष परिहरीने धर्मार्थी माणस पण धर्ममां धर्मसंज्ञा परिहरे बे. ॥ १ ॥
తెలంగాణ ం ం ం ం ండా బాంద్
॥ ३३ ॥
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|॥३४॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥३४॥
INOGROLOGRABPOROGRA
कंदप्प देवकिविसि, अभिओग आसुरिय सम्मोहा ॥ एसाउ संकिलिहा, पंचविहा भावणा भणिया ॥२॥
कन्दर्प देवकिल्विषा, नियोगा आसुरिक सम्मोहा ॥
एषातु संक्लिष्टा, पञ्चविधा नावना नणिता॥२॥ (१) कंदर्प, (५) देवकिब्बिश, (३) अनियोग, (४) श्रासुरिक, (५) सम्मोहनावना आ पांच प्रकारनी क्लिष्ट नावना कहेली . ॥ २॥ दससंजमोवघाया,उग्गम १,उप्पाय२.णेस ३, परिकम्मे४॥ परिहरण५,नाण६,दसण७,चरित्त८,अचियत्त९,संरख्खा॥३॥
दश संयमोपघाता, उद्गमो त्पादेषणाः परिकर्मः ॥
(परिहरण) ज्ञान दर्शन, चारित्राऽप्रियत्व संरदाः ॥ ३ ॥ दस संयमना उपघातक ले. (१) उद्गम, (२) उत्पाद, (३) एषणा (8) परिकर्म, (२) परिहरण, 6|| (६) ज्ञान, (७) दर्शन, (७) चारित्र, (ए) श्रचियत्त, (१०) संरक्षा ॥३॥
GONOMEGREGORROREGARDORare
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३५॥
MarBroGr
शोलांगादि रथसंग्रह. ॥३५॥
अधम्मा मग्गजीवा, असाहु असुत्त पंचविवरीया॥ मिच्छत्तं दसभेयं, किलिठ्ठ जीवाण नायवं ॥४॥
अधर्मा मार्गजीवा, असाधुर सूत्रं पञ्चविपरीताः॥
मिथ्यात्वं दशनेदं, क्लिष्टजीवानां ज्ञातव्यम् ॥ ४॥ धर्ममां अधर्म संज्ञाने, मार्गमा उन्मार्ग संझाने, अजीवमा जीव संज्ञाने, साधुमां असाधु संज्ञाने ने सूत्रमा असूत्र संझाने परिहरे ले. ॥४॥
(पागंतर) धर्मेऽधर्म स्तुमार्गे, जन्मार्गो जीवेजीव बोहव्यः ॥ साधुन साधुः सूत्रम सूत्रं चैव परिदरति ॥४॥
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. १५ ापथिकारथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. उवसम-उपशम | माण-मानथी
एसणा-दोष रहित आहार | पुढवि-पृथ्वी धरेण-धारंण करनारावडे | माया-कपटथी
लेवो ते. काइय-कायाको सविवेगेण-विवेकना धरनार लोह-लोभथी
भंडमत्त-पात्रा तथा मात्रकनी | आउ-अप संवर-संवर, पापर्नु रोकवू | इरिया-जवू आवq
समिविवाळो तेउ-अमि कोह-क्रोधथी
समिओ-समितिवाळो बच्चमत्त-लघुनिति अने व- वाउ-बायरो विमुको-विमुक्त | भासा-भाषा
डिनिति । वस्सइ-वनस्पति
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॥३६॥
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥३६॥
बेइंदीया-बेइंद्रीवाळा | अभिहया-सामा आवताहण्या|
भीते घस्या | उद्दविया-भय पमाड्या | तेइंदीया-त्रणइंद्रीवाला ते-तेमने
संचाइया-शरीरे शरीर मेळव्यां |
डाणाओ-एक स्थानकथी चरिंदीया-चार इंद्रीवाळा | खमावेमि-खमाबुंछु संघट्टीया-पीडा करी पंचिंदीया-पांचइंद्रीवाळा | वत्तिया-धूळे करी ढांक्या | परियाविया-दुःखी कर्या
ठाणं-चीजे ठेकाजे अजीवा-अजीव | लेसिया-भाय साथे अथवा | किलामिया-यकव्या । विणासिया-नाश कर्या
१५ ापथिकारथनी बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. ॥ उवसम-उपशम | पुढवि-पृथ्वी
समिति-पांच समितिवालो | पंचिंदी-पंचेंद्री धरेण-धारण करनाराबडे जीए-जीवोने
योग-त्रण जोग
अजीव-जीवपिनाना मणसा-मनवडे रख्खंतो-रक्षण करतो
एकेंदी-एक इंद्रीयवाला सहित-सहित कोह-क्रोध अभिहया-सामा आवता ह
एवं-ए प्रकारे विमुक्को-विमुक्त
बेइंदी-ये इंद्री वाळा
ण्या होय य-च, बळी
तेइंदी-त्रग इंद्रोवाळा अभिया-सामा आवता हण्या | इरियासमिओ-इर्या समितिवाळो खमावेमि-खपावुछ. चरिंदी-चरिंद्री | प्रमुख-विगेरे
-
SRIDGGEORGGGon
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-
| ते-तेमने
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। उत्सम धरेण सणासा, कोहविमकोय इश्यिसमिओ
॥श्री शरियापथिकिरथ ॥ १५॥ उवसम धरेण मणसा, कोहविमुक्कोय इरियसमिओ॥ पुढविजिए रख्खंतो, अभिहया ते खमावेमि॥१॥
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॥३॥
शीलांगादि रथसग्रहः ॥ ३७॥
उपशम धरेण मनसा, क्रोधविमुक्तश्च र्यासमितिश्च ॥
पृथिवी कायिक जीवा, अनिदतास्तान् दमयामि ॥१॥ हुँ उपशमवाळा मनवमे क्रोधथी विमुक्त अने यादि पांच समितिवाळो थने माराथो हणाएला पृथिविकायना जीवोने खमा ढुं. ॥१॥ समिति५ योग३ एकेंदी१ बेइंदीर तेइंदी३ चउरिंदी४॥ पंचिंदी५अजीवसहित एवं१० अभिहया प्रमुख दस भेद॥२॥
' SAKASIKKISTE+ - १६ आलोचना रथना चित्रमा आवेली गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. आलोयणा-आलोचना ते. | माया-पटने | तं-तेने
छन-छा, (छानु) कय-कर्यु छे
| लोहाइ-लोम विमेरे विवज्जेमि-विशेष प्रकारे हुँ । सदाउलं-धगा लोकना शब्द मणो-मनजेणे . सदं-शब्दने
आलोवे ते. परिणी-परिणत थएलो, पचरकं-आंखने
अणुमाइ-अनुमानेकरी रिणमी छे जेने एवो | धाणं-नाकने
बहुजगयं-घगा लोक भेगां निंदतो-निंदा करतो जिम्भं-जिभने
वायर-बादर, मोटकुं
- आलोवे ते. कोहाइ-क्रोधादिकने फासं-स्पर्शने
वयणं-वचन
! अवयत्त-अव्यक स्वरे आनिजिउ-जीतीने आकंपइ-आकंपभपथको (अ- ज-ज
लोवे ते. माणा-मान शुद्ध आहारपाणी लावी | दिलं-दीढुं
तस्सेवि-जे आलोवे टु होय ते विणिजिउ-विशेषप्रकारे जीतीने गुरुने ते देखाडी आलोवेते) | मुहुर्म-सुक्ष्म
फरी सेवे ते.
६.COMRAGONARORA
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शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ३८ ॥
१६ मा आलोचनारथनी बढ़ारनी गाथाना बुटा शब्दांना अर्थ.
दी - वीजाए दीठे पाप आलोवे ते. वायरं वादरजने आलोवे ते. सुमं सूक्ष्मनेज आलोवे ते. छन्नं- जानुमा पग प्रगटपणे न आलोवे ते सदा उलं - शब्दाकुलं, उतावळे
आलोयणा-आलोचना परिणयी - परिणामवाळो मणसा - मनवडे
कोहा-क्रोधादिक विवज्जि - विशेष प्रकारे वर्जीने स- शब्द आकंपइत्ता-धुजेछे, कंपेछे
(१)
तं तेने विवज्जेमि-बर्जु छु अकंप - अशुद्ध आहारपाणी गुरु मिति देखाडी आलोवे ते, अणुमा गइत्ता-घणा अपराधे थोडं आलो ते.
शब्दे आलोवे ते बहुजणयं - गांभेगां आलोवे. पण प्रगट न आलोवे ते अवयत्त-अगीतार्थ पासे आ
लोषण ले ते तस्सेवी - नेपाप आलोग्धुं होय ते फरोथो सेवे ते (२)
॥ श्री यलोचनारथ ॥ १६ ॥
आलोयणपरिणओ, मणसा कोहाइ वज्जिउं सद्दं ॥ पुढविजिए रख्खंतो, आकंपइ तं विवजेमि ॥ १ ॥
आलोचना परिणतो, मनसा कोधादि वर्जितः शब्दं ॥
पृथिवी जीवान् रक्षन्, च्याकम्पते तद् विवर्जयामि ॥ १ ॥ आलोचनाना परिणामवाळो, मनव क्रोधादि यने शब्दादि पांच विषयोथी रहित पृथिवी विगेरेना जीवोनुं रक्षण करतो जे याकंपे बे तेने वर्जु ढुं. ॥ १ ॥
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॥ ३८ ॥
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आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता जं दि8 बायरं व सुहुमं वा.॥ छिन्न सहाउलं बहु, जण अवत्त तस्सवि॥२॥
१७ मा रागत्रिकरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ.
शीखांगादि रथसंग्रह. ॥३५॥
जे-जेओ विसयमि-विषयने विषे जस्स-यश
मुनी-मुनीओने कामराग-विषय भोगना रा- | रुव-रुप
दहणा शरीरना अंगने बाळे ते वंदे-हुं वांदुर्छ गथी रस-रसना
अरुचि-अणगमो
अज्जव-सरळपणुं रहिआ-रहित गंध-गंध महामुच्छ-महामुर्छा
समद्दवा-मार्दव सहित नेह-स्नेह फास-स्पर्श उम्मच-उन्मत्त
मुत्ति-निळेभता दिठि-दृष्टि . चिंता-चिंता
तव-तप देवेसु-देवोमां | अवथ्थं-अवस्थाने
पाण-माण
संजम-चारित्र मणुएसु-मनुष्योमा ण-नथी . संदेहं-संदेहने
सच्च-सत्य . तिरिएसु-तिर्यंचोमा गया-पायां
मरण-मरण
सोअ-शौच नरएसु-नरकने विषे दसण-दर्शन
खंति-क्षमा
अकिंचणा-किंचन रहित सद्द-शब्दना | नीसासा-निश्वास जुभा-युक्त
बंभ-ब्रह्मचर्य १७ मा रागत्रिकरथनी बहारनी गाथार्जना बुटा शब्दना अर्थ. जे-जेभो |मणसा-मनवडे
| विसयंमि-विषयमा | गया-पाम्या कामराग-काम रागवडे | देवेसु-देवोने विषे चिन्तावथ्थं-चिंतावस्थाने खंतिजुआ-क्षमाए करीने युरहिआ-रहित-वगरना | सह-शब्द
ण-नदि
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||॥४०॥
ते-तेओने
| दठु-जोवाने. मिच्छइ-इच्छे | जरे-ताव आवे मुणी-मुनिओने दीहं-दीर्घ
दहि-दाह थाय | वंदे-हुं वांदुर्छ (१) | नीससइ-निसासो ले । भत्त-आहारनी | चिंतेइ-चितवन करे तह-तेमज
अरोअ-अरुची .
मुच्छा-मूर्छा .. उम्माय-उन्माद. . पाणइ-माणनो संदेह | मरणं-मरण (२)
! शीखांगादि रथसंग्रह. ॥४०॥
॥ श्री रागत्रिकरथ ॥१७॥ जे कामराग रहिआ, मणसा देवेसु सदविसयंमि ॥ चिन्ताऽवथ्थं ण गया, खंति जुआ ते मुणी वन्दे॥१॥
ये कामराग रहिता, मनसा देवेसु शब्द विषये ॥ PL .. चिन्तावस्थां न गता दान्ति युतान् तान् मुनीन् वन्दे ॥१॥
जे काम रागथी रहित, देवादि नवमां, शब्दादि विषयोमां, मनवमे चिन्तावस्थाने नथी|| है || पाम्या तेवा दमावाळा मुनिने अनिवंऽडं ॥१॥
चिंतेइ ठुमिच्छइ, दीहं नीससइ तह जरे दाहे ॥ भत्त अरोअग मुच्छा, उम्मायं पाउणइ मरणं ॥२॥
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॥
१॥
चिन्तयति इष्टुमिनति, दीर्घ निःश्वसिति तथा ज्वरो दाघः ॥
नक्तारोचो मूर्ग, उन्मादः प्राण ( संदेदः) मरणं ॥२॥ कामनी दस अवस्था कहे जे. (१) चिंतव, (५) जोवा श्ववं, (३) दीर्घ निश्वास लेवो, (४) | ज्वर थाववो, (५) दाद थवो, (६) थाहारनी अरुची, (७) मूळ, (७) उन्माद, (ए) प्राणनो | संदेह, (१०) मरण; श्रादस कामावस्था ॥२॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ४॥
१७ ज्ञानदर्शन चारित्ररथनी अंदर आवेली गाथायोना अघरा शब्दोना अर्थ. || जे-जेओ
वयं-व्रत
| आव जसु-वारंवारआवर्तन | वंदामि-बांद छ नाणं-ज्ञानने लीणा-लीन
___ करवु ते. | समदवं-मार्दवसहित अंचिय-युक्त बीय-बीजा वज्जतो-वर्जतो
सअजवं-आर्जव सहित,कपट दसणं-दर्शनने तइय-त्रीजा संकिय-शंकावाळाने -
रहितपणे व-दळी, अथवा
विवज्जतो-वर्जन करतो चउथ्य-चोथाः
मुत्तिजुअं-निर्लोभता युक्त चारित-चारित्रने
सहसागारं-सहसात्कारने पिंडध्य-पिंडस्थ पंचम-पांचमा
भयं-भयने
| तवजुअं-तपयुक्त . . .... ज्झाणं-ध्यानने दप्प-दर्प, अहकारने पओसं-प्रदोषने
संजमजुअं-संजमयुक्त पदथ्य-पदस्थ परिहरंतो-त्याग करतो विमंसा-विचारणा
सच्चजुअं-सत्ययुक्त रुवथ्थ-रुपस्थ पमाय-प्रमादने
खंति-क्षांति (थी) सोअजुअं-शौचयुक्त: रुवातीत-रुपातीत अणाभोग-अजाणपणाने | ख-खम,
अकिंचणं-द्रव्यरहित पढम-पहेला
आसुरे-आसुर +-साह-साधुने
भजुअं-ब्रह्मचर्ययुक्त
DOGDIRDarBCDaroGRAarRDEGORMERA
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॥४
॥
२७ मा ज्ञानदर्शन चारित्ररथना चित्र बहारनी गाथाना बुटा शब्दानो अर्थ.॥ जे-जेभो लीणा-लीन
| रुवज्झणं-रुपस्थ ध्यान | आसुरे-आसुर नाणचित्र-ज्ञानांचित | दप्प-दर्पने
आलीगो-लीन
| आवइ-वारंवार आवर्तन ज्ञानबडे सहित परिहरंतो-त्याग करतो
रुवातीतं-रुपातीतने
मुअ-मूत्र
पुणो-वळी मणसा-मनवडे (एप्त) खंतिखम-क्षमाए करीने युक्त
कम्पखयं-कर्मक्षयने
संकिए-शंकित पिंडथ्य-पिंडस्थ साहूणं-साधुओने कुणइ-करेछे
सहसागारो-सहसात्कार; एकदम झाण-ध्यान वंदे-चांदुर्छ (१) दप्प-अहंकार .
भये-भय पढम-प्रथम
अंचिय-युक्त | पमाय-प्रमाद
पओसे-प्रदोष वय-व्रत(मा) पदथ्य-पदस्थ
अणाभोग-अजाणपणे अनाभोगे विमसो-विमर्श, विचार (३)
शीखांगादि रथसंग्रह. ॥ ४२ ॥
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GEOGRABODOBRAR
-
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॥ श्री ज्ञानदर्शन चारित्ररथ ॥ १७ ॥ जे नाणंचिअ मणसा, पिंडथ्थज्झाण पढमवयलीणा॥ | दप्पं च परिहरंतो. खतिखमं साहूणं वंदे ॥१॥
ये झानमेव मनसा, पिंमस्थध्यान प्रथमव्रतलीनः॥ - दर्प च परिदरतः दान्ति दमान् साधून वन्दे ॥ १॥ जे ज्ञानी डे अने मनवमे पिंमस्थादि चार ध्यान अने प्रथम व्रतमां लीन बे, दर्पनो जेणे त्याग कयों ने एवा क्षमा राखवाने समर्थ साधूर्जने ९ वांउंडं ॥१॥
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४३॥
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शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ३ ॥ Doom van arvo on ane arono
पिंडथ्थज्झाणं चिय, पदथ्थ रुवथ्थज्झाण मल्लीणो॥ रुवातीतं च पुणो, कम्मखयं कुणइ तं झाणं ॥२॥
पिंमस्थध्यान मेव, पदस्थं ध्यानं रूपस्थध्यान मालीनः॥
रूपातीतं च पुनः, कर्मदयं करोति ध्यानं ॥२॥ पिमस्थध्यान, पदस्थध्यान, रुपस्थध्यान, रुपातित ध्यानमां लीन थएलो जीव कर्मक्षय करेले.॥२॥ दप्प पमायाणा भोग, आसुरे आवईसु अ संकिए ॥ सहसागारो भए, पओसे अवीमंसो ॥३॥
दर्प प्रमादाऽना नोगा, सुरे आरतिषु च ॥
संकितं सदसाकारो, जयं पदोषश्च विमर्शः ॥ ३॥ दर्प, प्रमाद, अनालोग, श्रासुर, वारंवार आवर्तन, शंकावालु, सहसाकार, नय, प्रदोष श्रने विमर्ष ॥३॥
१ मा पच्चरकाणरथनी चित्रनो गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. आगम-सिद्धांत | झाण-ध्यान
। रुवातीय-रुपातीत विउ-जाणनार मुए-सुत्रोने
सामाइय-सामायिक
SONOMIRMEGreenerBARDS
A
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नाण-ज्ञान
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वि-पण
पिंडथ्य-पिंडस्थ
रुखथ्य-रूपस्थ
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5Cinema
12
।
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लीणोलीन | पुरिमट्ठ-पुरिमद
अणागर्य-अनागत, भविष्यमा । अगागार-आगार रहित छेय-छेदोपस्थापनीय एकासण-एकास' कया-क्यारे
परिमाण-परिमाण परिहारि-परिहारविशुद्धि एकठाणे-एकलठाणु करिस्सामि-करीश
कडं-करेलुं ... सुहुमसंपराय-सूक्ष्म संपराय | आंबिल-आंबिल, भावेण-भावे करीने अहख्खाय-यथाख्यात अभ्पत्त-उपवास
निरवसेसं-समस्त, निरव शेष,
अइकंत-अतिक्रांतने . नवकार-नोकार अणसण-अनशन कोटि सहि-कोटि सहित.
बधुं सहिय-सहित
अभिग्गह-अभिग्रह निट्टि-नियंत्रित 1 संकेयवियं-सकेन थइ गएलु पोरसि-पोरसि
विगइ-विगय | सागारं-आगार सहित अद्धाइयं-अर्थातीत - १५ मा पच्चरकाणरथना बहारनी गाथाना अघरां शब्दोना अर्थ. नाण-ज्ञान
वय-व्रत
| करिस्सामि-करोश (१) | अणागारा-आगार रहित विउ-जाणनार लीणो-लीन
भावेण-भावथी ... परिमाण-परिमाण मणसा-मनवडे नवकार सहियं-नवकार स- अइक्कंते-अतिक्रांत निरवसेसं-समस्त, निरवशेष पिंडथ्थ-पिंडस्थ हित, नोकारसी | कोडो-कोटि
सांके-संकेतवालु झाण-ध्यान अणागयं-अनागत, भविष्य | नियटि-नियंत्रित
अद्धाइयं-अर्थातीत सामाइय-सामायिकना कया-कयारे ... | मागार-आगार सहित दसहा-दश प्रकारे(२) ..
॥श्री पच्चरकाणरथ ॥२०॥
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शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ४ ॥
-- BLOGROGRBroGROOMorn
ProRRECERESone
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नाणविऊवि य मणसा, पिंडथ्थज्झाण सामाइयवयलीणो॥ नवकार सहिय मणगय, कया करिस्तामि भावेण ॥१॥
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४५
शीलांगादि रथसग्रह. ॥ ४५ ॥
BarteBOORPraraGROO
ज्ञानविदपि च मनसा, पिंमस्थध्यान सामायिकव्रतलीनः ॥
नमस्कार सहितमनागतं, कदा करिष्यामि नावेन् ॥१॥ मिस्थादि चार ध्यानमा रहेलो अने सामायिकादि पांच चारित्रयी युक्त एवो हुँ ज्ञाननो जाणनार पण नमस्कार (नोकारसी) सहित अनागत पच्चख्खाण क्यारे (मनथी) करीश ? ॥१॥
अणागय अइकंते कोडी नियट्टि सागार अणागारा॥ परिमाण निरवसेसं, संकेअं अद्धाइयं दसहा ॥२॥
अनागत मनिक्रान्तं, कोटि नियन्त्रित साकार मनाकारम् ॥
परिमाण निरवशेष, सांकेतं अर्यातीतं दशवा ॥२॥ दस जातर्नु पच्चरकाण . अनागत, अतिक्रान्त, कोटि सहित, नियंत्रित, सागार (आगार सहित) अनागार (आगार रहित), परिमाणकृत, निरवशेष, सांकेतिक (संकेतवालु) अने अद्धा पच्चरकाण. ॥२॥
+MEAKENLEAMKARENCE २० धर्मागरथनी अंदर आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. नाण-ज्ञान मणगुत्तो-मनगुप्तिवाळो । जुत्तो-युक्त
| पढम-पहेलु जुगो-युक्त वयगुत्तो-वचनगुप्तिवालो - शील-शीयल
वय-व्रते (करीने) दिछी-दृष्टि, समकितदृष्टि तणुगुत्तो-कायगुप्तिवाळो तवेण-तपे करीने सुद्धो-शुद्ध चरण-चारित्र दाण-दान
|बीय-बीजा
:DGROGRAILOGreeLoote
| भाव-भाव
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॥४६॥
तईय-त्रीजा चेई-चैत्य
सम्म-सम्यक्त्व. हास-हास्य चउथ्थ-चोया सुअ-श्रुत सिद्धांत कोह-क्रोध
रइ-रति पंचम-पाचमा धम्म धर्म जयंतो-जीततो
अरइ-अरति जिण-जीनेश्वर भगवानना मुणि-मुनि
वंदे-चांदुर्छ विणए-विनयमां गुरु-आचार्य
सोग-शोक
माण-मान बट्टतो-वर्ततो उवज्झाय-उपाध्याय - माया-कपट
भय-भय सिद्ध-सिद्धना संघ-चतुर्विध संघ लोह-लोभ
कुच्छ-दुगंच्छा - २० मा धर्मागरथना चित्र बहारनी गाथाना बुदा शब्दना अर्थ. नाण-ज्ञान दाणे-दानने विषे पढम-पेहेला
| विणए-विनयने विषे जुओ-युक्त
जुत्तों-सहित, युक्त वयसुद्धो-व्रते करीने शुद्ध(१) बटुंतो-वर्ततो मणगुत्तो-मनगुप्तिवाळो य-वळी
जिण-जीनना
जयंतो-जीततो
शीलांगादि रथसंग्रह.॥४६॥
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॥श्री धर्मागरथ ॥ २० ॥ नाणजुओ मणगुत्तो, दाणेजुत्तोअ पढमवय सुद्धो॥ जिणविणए वर्सेतो, कोह जयंतो मुणीवंदे ॥१॥
झान युतो मनोगुप्तो, दाने युक्तश्च प्रथम व्रत शुभः ॥ जिनविनये वर्तमानान् क्रोधं जयतो मुनीन्वन्दे ॥१॥
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NDard
ज्ञानयुक्त, मनवमे गुप्त, दानमां तत्पर अने प्रथम व्रतमां शुद्ध तथा जिनविनयमा रहेता 2
O क्रोधने जीतता एवा मुनीयोने (हुं) वांदुं बुं ॥१॥
॥४७॥
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥७॥
NAGABRDara
. १ मा कामावस्थारथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. जे-जेओ , वपु-शरीरनो
| पुव्वरइ-पुर्वे सुख भोगवेलुं ते | अंग-स्वीना शरीर(मां) नो-नहि सक्कार-सत्कार
सरण-याद करवू रइ-रति, मिति(मां). करन्ति-करेछे सोह-शोभा
विलासे-सुखने निरीहगे-इहाविनाना कारन्ति-करावे छे देह-शरीरनी
रइए-रतिवाळो
पसंत-प्रशांत अणुमन्नन्ति-अनुमोदेछे निख्खिवण-निक्षेप न-नहि
देहे-देहवाळा मोहं-मोहने विरमणे-विरमणने विषे, । इथ्यि-स्त्री(नो)
अमदे-मदविनाना मणुस्सिथ्थि-मनुष्यनी स्त्री(ना) विराम पाम्याछे तेमने विष चिन्ते-चिंता करनारा देहग्गिणो-देहने विषे जे संग-संगने विस्सारिअ-विसायी छे मुणी-मुनीोने ..
अनि नथी तिरिइथ्थि-तिर्यचनी स्त्रीने इथ्थि-स्त्री.
वंदे-वांदुर्छ
अमुच्छ-मुर्छा रहित देविथ्थि-देवांगना अंगे-अंगोने
थ्थी-स्त्री
मुत्ति-निर्लोभतावाला रुविथ्थि-रुपवाळी स्त्री
गय-गयो छे सयल-सकळ
देस-स्वीना शरीरमा अमुक सोइंद्रि-श्रोतइंदि विभूसण-शोभा
मय-मद अमुक भागने जोवानी
मज्जे-मद्य चख्खिंदि-चक्षुइंद्रि चयए-त्याग करनार
. इच्छा रहित
विसय-विषय घाणिन्दि-घ्राणइंद्रि सराए-स्मरणे
निरीहगे-निरिच्छक
परिसग्गे-संसर्ग जेमनो एवा जिभ्भिन्दि-रसइंद्रि जण-माणस
अ-नहि
अपाण-आत्माने । फासिन्दि-स्पर्शइंद्रि हासे-होसिमां
दीह-दीर्घ, लांबा संवहगे-सम्यक् प्रकारे वहन वजिअ-त्याग को छे संसणे-प्रशंसा करवी ते - उसासगे-उच्छवासवान
करनारा
DrEGRABPawRBAGES
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॥
२१ मा कामावस्थारथनी चित्र बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. ॥ . जे-जेओ.
मणुस्सिथ्यि-मनुष्यनी स्त्री | वपुसक्कारे-शरीरनो सत्कार | चिन्ते-विचार करनार नो-नहि संग-संग न-नहि
मुणी-मुनिओने करन्ति-करेछे सोइंदि-श्रोतइंद्रिय इथ्यि-स्त्री(नो)
वंदे-बांदुर्छ मोह-मोहने
बज्जिअ-वज्र्योछे, त्याग कर्योछे
(१)
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शीलांगादि रथसंग्रह. ॥४॥
॥ श्री कामावस्थारथ ॥ २१ ॥ जे नो करन्ति मोहं, मणुस्सिथ्थि संग सोइंदि॥ वजिअ वपुसक्कारे, न इथ्थि चिन्ते मुणीवंदे ॥१॥
ये नो कुर्वन्ति मोदं, मनुष्य स्त्रीसंग श्रोत्रेन्श्यिम् ॥
वर्जित वपुस्स तारान् न स्त्री चिन्तान् मुनीन् वन्दे ॥१॥ . जेलो मनुष्यनी स्त्रीना संगनो मनथी पण मोह करता नथी तथा पांचे इंन्छियोने तथा | शरीरना सत्कारने वर्जेलो ने अने जेओ स्त्रीनी चिन्ता (विचार) करता नथी एवा साधुओने ९ वांदुं हुं ॥१॥
BarelDrRRORMORRBare
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शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ४ ॥
श्री शीलांगरथनी गणतरी करवानी समजुती. जोए करणे सन्ना, इंदिय भोमाइ समण धम्माय।।
सीलंग सहस्साणं, अट्ठारसगस्स निप्पत्ती ॥१॥ ___अर्थः-योग त्रण, करण त्रण, संझा चार, इंजिय पांच, नोमाश्के० पृथ्वीकायादिक दश, श्रमणधर्म दश, ए रीते शीलांगना जे अढार हजार नेद तेनुं निःपत्ती के निपजQ थाय तेज कहे . ॥१॥
... हवे विशेषे एनी संख्या देखामे . करणाइ तिन्निजोगा, मणमाईणी हवंति करणाइं॥
आहाराईसन्ना, चउसोया इंदिया पंच ॥२॥ 'अर्थः-इहां प्रथम योग पनी सूत्रनां बंध सारु बीजा वखाणीये बीए. योग त्रण, ते मनो | | योगादिक जाणवा. श्हां गाथाने धुरे करणार एटले कर जेनी आदिमांडे एवा त्रण करण तथा आहारादि चार संज्ञा जाणवी. अने सोया के श्रोत्रादिक पांच इंजियो जाणवी... भोमाई नव जीवा, अजीव काओय समण धमोय ॥ खंताइ दस पयारो, एवं ठिई भावणा एसा ॥३॥
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शीलांगादि रथसंग्रह. ॥५०॥
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अर्थः-लोमा के. पृथ्वीकायादिक नवजीव अने अजीव साथे दश थाय. श्रमण धर्म ते खां| त्यादिक दस प्रकारे एवंके० ए रीते विश्के० यंत्र पटादिक उपर लखवो. नावना ते एसाके आ| गळ केद्देशे. ॥ ३ ॥
तेहिज देखाडे जे. न करइ मणेण आहार, सन्नविप्पजढगोउ निअमेण॥ सोइंदिअ संवरणे, पुढविजिए खंति संजुत्तो॥ ४॥ . इय मदवा इजोगा, पुढवीकाए हवंति दस भेआ॥ आउक्कायाईसुवि, इअ एए पिंडिअं तु सयं ॥५॥ सोइंदिएण एवं, सेसेहिवि जइमं तओ पंच॥ . आहारसन्न जोगा, इअसेसाहिं सहस्स दुगं ॥६॥ एवं मणेण वयसा, इएसु एवं तुछ सहस्साइं॥ न करे सेसेहिं पिअ, एए सव्वेवि अट्ठारा ॥७॥
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शीलांगादि रथसंग्रह ॥ १ ॥ AGRAMRAKASOOR
अर्थः-श्हां नकरश्के० करणलकण प्रथम योग स्विकार्यों डे, ते मनसा ए प्रथम करण . आदारसन्न विप्पजढगोउत्तिके आहार संझा विरहित थतांज प्रथम संझा तथा आवश्यताए। | करी निरोधन कयों ने रागादिक गुण जेनो, एवी श्रोजियनी प्रवृत्ति तेथी प्रथमें जिय कदेली.
एवी रीतीए शुं न करे ? ते कहे . पृथ्वीकाय जीवारंन करे नहीं एवं तात्पर्य जे. एणे प्रथम | जीवस्थान कमायुक्त के दांति संपन्न एणे करी प्रथम श्रमणधर्म नेद जाणवो. ए प्रकारे करी एक शीलांग आविर्नावित ले. एटले मने करी आहार संज्ञारहित थको श्रोत्रेजियनो संवर करी क्षमायुक्त पृथ्वीकाय जीवारंन करे नहि. ए शीलनुं प्रथम अंग आविर्नावित एटले प्रगट डे. हवे | शेष जे ते पण अतिदेशे करी देखामे .
___ एज प्रकारना पूर्वोक्त अनिलाषे करी मार्दवादि योगात् के० मार्दव श्रार्जवादि दशपद संयोगे करी, एटले जेम पूर्वे दमायुक्त एक नेद थयो तेम मार्दवने संयोगे बीजो नेद, तेमज | आर्यवने संयोगे त्रीजो नेद, ए रीते पृथ्वीकायनो आश्रय करी एटले पृथ्वीकायारंन एवा अनि
लाये करी, दशयति धर्मे करी, दश नेद ते दश शीलविकल्प थाय . ते वळी अप्पकायादि नव 5 स्थानने विषे पण अपि शब्दे करी दशमा स्थाननी पेरे आक्रमण करीए, ते वारे सर्वनेद प्राकृत पणे करी एकत्र कर्याथी एकसो संख्या थाय .
ते मात्र श्रोत्रेन्डियने सो नेद थाय . तेमज बाकीनी चुक्षुरादिक इंजियोना पण ए पूर्वो|क्तरीतीए सो सोनेद थायजे. ए एम सर्व संख्या एकीकरीए ते वारे पांचसें थाय जे. केके
ओना पांच प्रकार ले माटे पांचसे थाय. ते मात्र एक आहार संज्ञा योगेकरी आ नेद थया ले.
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शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ५५ ॥
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हवे शेष नयसंझादिक त्रणेना पण पांचसे पांचसे नेद ए पूर्वोक्त रीतेज थाय. एम सर्वना मळी ने बे हजार नेद थाय . ए बे हजार तेमात्र मनोयोगने प्राप्त थएला . तेमज वचन अने काय एना पण बबे हजार नेद थाय . एम एकंदर संख्या हजार थाय . ए ड हजार मात्र न करोति ए मर्यादाए प्राप्त थया. तेमज शेष न करावे तेना पण उ हजार अने अनुमति न था | एना पणं ब हजार नेद , ए सर्व मेलळीए त्यारे शोलना नेद एकत्र कर्या उतां अढार हजार थाय.. एक योगे करी अढार हजारज थाय जे. एम कं नया पण बे इत्यादिक संयोग जन्य नंग जो आ स्थळे लीधा होय तो एना घणाज नेद थाय . एटले एक बे इत्यादिक संयोगे करी संयोगने विषे सात विकल्प थाय . एवाज करणने विषे, संज्ञाने विषे, इंजियोने विषे, पृ. थ्वीकायादि विगेरेने विषे एक हजार तेवीस नंग थाय. ए प्रमाणे दमादिकने विषे पण श्राराशीनो परस्पर गुणाकार कर्यो होय तो त्रेवीस अबज, चोराशी क्रोम, एकावन लाख, त्रेसठ हजार | बसेंने पांसठ. ३,४,५१,६३,२६५ नेद थाय . तो पड़ी अढार हजारज केम कह्या एवं को पूजे तेने उत्तर कहे के जो श्रावक धर्मनी पेठे बीजा नंग करी सर्व विरतीनी प्रतिपत्ति थाय तो ते गणना योग्य . एक पण शीलांगना नंगना शेष सदनाव ले एटले नेद थता नथी. एवं न जाणवू. कारण अन्यथा सर्व विरतीज थनार नहि एना यंत्रनी स्थापना पहेला शोलांगरथश्री | जाणी लेवी. ए प्रमाणे बाकोना वीस रथनी गणना समजी लेवो. विशेष हकीकत गुरुगमथी जाणी लेवी.
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अनुक्रम. रथनु नाम.
२६
०.
अनुक्रमणिका. रथनो रथना अर्थ, गाथा, ने। रथनो
रथना अर्थ, गाथा, ने समजुतीनुं पानु. अनुक्रम. रथर्नु नाम.
समजुतीनुं पार्नु.; १ शीलांग रथ.
१२ शुभलेश्यात्रिक रथ. २ दस विध चक्रवाल समाचारि रथ.
१३ अशुभलेश्यात्रिक रथ. ३ खामणा रथ.
१४ द्वीतीय प्रकर रण. ४ श्रमण धर्म रथ.
१५ इपिथिका रथ. ५ सामाचारि रथ.
१६ आलोचना रथ. ६ नियम रथ.
१७ रागत्रिक रथ, ७ निंदा रथ.
१८ ज्ञान दर्शन चारित्र रथ. ८ तप रथ.
१८ १९ पञ्चख्खाण रथ. ९ संसार रथ.
२० धर्माग. रथ, १. धर्म रथ.
२२ २१ कामावस्था रथ. ११ संजम रथ.
शीलांगरथनी गणतरी करवानी समजुती. ४९ . आ पुस्तक उपावी बहार पामवामां उदार सहायकोनां नामनी टीप तेमणे नरेला
रुपीयानी रकम साथे नीचे मजब.रुपीमा.. नाम. गाम डभोइना.
रुपीआ. नाम. ५० शा मोहनलाल नाथाभाइ
२० शा. ब्रजलाल रायजी. ५० बाइ उजम शा. रणछोडदास पीताम्बरनी विधवा. ६४ परचुरण रकमथी मदद. २५ नाथाभाइ दोलतचंद.
५० शा. हरीलाल छोटालाल अमदावादवाळा. २५ शा नरोतम हरीलाल.
४६। शा. उत्तमचंद खेमचंद २१ शा. नेमचंद तलकचंद.
३५१। कुल.
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________________ இலகல்கல்ல CYC श्री शीलांगादि रथ संग्रह. समाप्त. बारSEARS