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शीलांगादि रथसैग्रद् ॥ १ ॥
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तव - बाह्यतपं अंतरतव - अभ्यंतरतप
साहु-साधु
साहम्मि - साधर्मिक कुल-कुळनी गण- गच्छ (नी)
संघ-संघनी
वैयावच्ची - वैयावच्च करनार सुज्जर-शुद्ध करे आलोइड-आलोइने कोइ कोइ
. पडिकमणो- पडिकमणाथी मीसेन - मिश्रतावडे
छ मां तपरथनी बहारनी गाथायना घरा शब्दोना
नाणरुइ - ज्ञाननीरुचिवाळो (१) | गुरु-गुरु देह - शरीर (ना) विवेगी- विवेकवाळो
अ-आ
विवज्जिओ-रहित सुवायणिओ-सुवाचक
वेयावच्चकरो - वैयावचनो करनार.
सुज्ज-शुद्धि करेले आलोइडं-आलोवीने कोइ कोइ
निरवेरको निरपेक्ष
विवेगओ - सारा विवेकथी उग्गओ - कायोत्सर्ग (थी) सुतवणओ - सारा तपथी निचं - हमेशां छेउ-छेदथी
पडिकपणओ-पडिकमणथी मिसेणउं - मिश्रण करीने विवेग-विवेक उसग्ग-कायोत्सर्ग छेया-छेदथी
मूला-मूल (थो)
सयकाल - सदाकाळ |मूलाउ- मूळपी नरो - माणस
अणवद्वि-अनवस्थितपणामां सम्म सम्यकमकारे
पारविए - पारने जाणनार
अर्थ
य-वळी, अने तहा - तेमज अणवडिय - अनवस्थित तह - तेमज पारंचिए - पारांचित
॥ श्री तपोरथ ॥ ८॥
Trees देहविवेगी, अट्टविवज्जिओ सुवायणिओ ॥ गुरु वेयावच्च करो, सुज्झइ आलोइउं कोइ ॥ १ ॥
॥ १५ ॥